'सिंधु सभ्यता' भारतीय संस्कृति की ऐतिहासिक विरासत के आरंभिक बिंदुओं में से एक है। इस सभ्यता को 'प्रथम नगरीय क्रांति' भी कहा जाता है क्योंकि भारत में पहली बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के अंतर्गत हुआ था। 'सिंधु नदी' तथा इसकी सहायक नदियों की उपत्यकाओं में इस सभ्यता के प्रथम स्थल का पता चला था, इसलिए सर्वप्रथम इसे 'सिंधु सभ्यता' नाम से अभिहित किया गया। सुमेरियन, बेबीलोनीयन तथा मिस्र की सभ्यताओं की समकालीन 'हड़प्पा सभ्यता' अपने नगर-नियोजन तथा जल-निकास प्रणाली के लिए प्रमुख रूप से जाना जाता है। मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा 'सिंधु सभ्यता' के विशिष्ठ नगर है जो क्रमशः 'सिंधु' तथा 'रावी नदी' के तट पर स्थित है। उत्खनन में पता चला कि 'सिंधु सभ्यता' के ज्यादातर सड़के ग्रिड व्यवस्था द्वारा व्यवस्थित थी, ये सड़के एक दूसरे को प्रायः समकोण पर काटती थीं। सामान्यतः भवन निर्माण में पकी ईंटों का प्रयोग किया जाता था। यद्यपि इस सभ्यता के किसी भी पुरास्थल से मंदिर का साक्ष्य नहीं मिला है किन्तु सूर्य पूजा, मूर्ति पूजा, अग्नि पूजा एवं मातृ देवी के उपासना का साक्ष्य अवश्य मिले है। सिंधु सभ्यता से प्राप्त मुहरें, मनके और मृदभाण्ड एवं लघु कलाएँ उनके सौन्दर्य बोध को इंगित करती है।
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हड़प्पा (Harappa) :
- 'सिंधु सभ्यता' (Indus Valley Civilization) का प्रथम उत्खनन कार्य 'हड़प्पा' नामक स्थान पर ही किया गया था, इसीलिए 'सिंधु सभ्यता' को 'हड़प्पा सभ्यता' (Harappan Civilization) के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1826 में 'चार्ल्स मेसन' ने हड़प्पा के टीलों के बारे में लिखा था। 'कनिंघम' ने 1853 ईसवी में इसका दौरा किया।
- 'जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 ईसवी को 'दयाराम साहनी' ने वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब राज्य में स्थित 'साहीवाल जिलें' (पहले मोंटगोमरी जिला कहा जाता था) में रावी नदी के बाएँ तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थल का अन्वेषण किया।
- 'हड़प्पा' शहर के महतपूर्ण खोजों में 'कर्मचारियों के निवास' , 'अन्नागार' , 'मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ' इत्यादि प्रमुख रूप से शामिल है।
- नृत्य करते हुए पुरुष की मूर्ति 'नटराज' हड़प्पा से ही प्राप्त हुआ है। इसका धड़ 'चुना पत्थर' से बना हुआ है एवं यह अपने दाहिने पैर के बल पर खड़ा है वही बायाँ पैर नृत्य की मुद्रा में ऊँचा उठा हुआ है। इस मूर्ति को नटराज के आदि रूप का द्योतक माना जाता है। इसकी ऊँचाई 7 से 8 इंच के लगभग है।
- हड़प्पा से एक समूह में दो कतारों में बने हुए 7-8 छोटे-छोटे मकान प्राप्त हुए हैं तथा इन भवनों के निकट 16 तांबे गलाने की भट्टियाँ भी प्राप्त हुई है, संभवतः यह तांबे का सामान बनाने का कारखाना हुआ करता था।
- हड़प्पा स्थलों के खुदाई में दो सौ से अधिक शव निकाले जा चुके हैं।
- यहाँ अंत्येष्टि मुख्य रूप से बड़े गड्ढों में की जाती थी, कभी-कभी अंडाकार या आयताकार गड्ढों में भी शव ढफनाएं जाते थे। साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि कुछ शवों को दफनाने के लिए लकड़ी के ताबूत का भी प्रयोग किया जाता था।
मोहनजोदड़ों (Mohenjo-daro) :
- मोहनजोदड़ों, 'सिंधु सभ्यता' (Indus Valley Civilization) के प्रमुख सम्पन्न नगरों में से एक था। यह स्थान वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के 'लरकाना' जिले में अवस्थित है। सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ों का मतलब 'मृतकों का टीला' होता है। मोहनजोदड़ों दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट नगर माना जाता है।
- मोहनजोदड़ों का सर्वप्रथम उत्खनन कार्य 1922 ईसवी में 'राखलदास बैनर्जी' के नेतृत्व में हुआ था।
- मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत 'विशाल अन्नागार' 45.71×15.23 मीटर क्षेत्रफल का है।
- मोहनजोदड़ों का सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में - 'विशाल स्नानागार' भी प्रमुख है, यह एक विशाल आयताकार संरचना है जो 11.89 मीटर लंबा और 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.44 मीटर गहरा (39 × 23 × 8 फुट) है।
- मोहनजोदड़ों से प्राप्त 'पशुपति शिव' की मुहर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मुहर में एक त्रिमुखी पुरुष को एक चौकी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है। उनके सिर पर सिंग है एवं कलाई से कंधे तक उनकी दोनों भुजाएं चूड़ियों से लदी हुई है। मूर्ति के दाहिने तरफ एक हाथी तथा बाघ है वही बाएं तरफ एक गैंडा तथा भैसा खड़ा है। चौकी के नीचे दो हिरण खड़े हुए दिखाए गए है जिनमें से एक की आकृति खंडित है।
- एक अन्य मुहर में नर एवं नारियों की कुल मिलाकर सात आकृतियाँ अंकित किया गया है। एक मुहर में पीपल की एक शाखा से एक शृंगी दो पशुओं को निकलते हुए दिखाया गया है।
- मोहनजोदड़ों के उत्खनन कार्य से हाथी का कपाल, घोड़े के अस्थि पंजर के अवशेष तथा हाथी के दांत से बनी एक सुई भी प्राप्त हुई है।