एक तेजस्वी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी sir cv raman एक महान वैज्ञानिक जिन्होने आधुनिक भारत को वैश्विक स्तर पर एक नयी पहचान दिलाई।
जन्म | 7 नवम्बर 1888 (तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु) |
---|---|
मृत्यु | 21 नवम्बर 1970 (उम्र 82) बैंगलुरु, कर्नाटक, भारत |
राष्ट्रीयता | भारत |
कार्य क्षेत्र | भौतिकी |
संस्थान | भारतीय वित्त विभाग, भारतीय विज्ञान संस्थान और इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस |
शिक्षा | प्रेसीडेंसी कॉलेज |
शिष्य | जी एन रामचंद्रन |
प्रसिद्धि | रमन इफेक्ट |
उल्लेखनीय सम्मान | नाइट बैचेलर (1929) भौतिकी में नोबल पुरस्कार (1930) भारत रत्न (1954) लेनिन शांति पुरस्कार (1957) |
वैज्ञानिक नींव -
- रमन के पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर था।
- उनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर गणित और भौतिकी के प्रवक्ता थे, इसलिए रमन को शुरू से ही शिक्षा का वातावरण मिल गया था।
- अपने पिता से प्रेरणा पाकर रमन बहुत कम आयु में ही विज्ञान विषय से जुड़ गए।
- छोटी आयु में ही रमन को ज्ञान अर्जन करने की जिज्ञासा जागृत हो गयी।
- पुस्तकों के साथ-साथ रमन को संगीत का भी शौक था।
रमन कभी-कभी क्लास भी बंक किया करते थे -
- रमन एक अत्यंत प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे, उन्होने मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी।
- मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में वे जब BA की पढ़ाई करने गए तो वहा के प्रोफेसर ने समझा की एक छोटा बच्चा गलती से इस क्लास में आ गया है, उनके पुछने पर रमन ने बताया कि वे BA के ही छात्र है।
- रमन ने 15 वर्ष कि आयु में सर्वश्रेष्ठ अंको के साथ अँग्रेजी और भौतिकी दोनों में ही गोल्ड मेडल प्राप्त किया।
- डिग्री कि पढ़ाई करते समय रमन अक्सर क्लास बंक भी कर दिया करते थे, किन्तु कॉलेज के प्रोफेसर ये जानते थे कि रमन इतने पारंगत है कि उन्हे किसी विशेष क्लास कि आवश्यकता नहीं है।
अति जिज्ञासु थे रमन -
- रमन कि विशेषता अंको से नहीं बल्कि उनके जिज्ञासा से थी, वे हर एक वस्तु को गंभीरता से समझने का प्रयास करते थे।
- उनकी यही ज्ञान उत्सुकता उन्हे वैज्ञानिक खोजो कि ओर आकर्षित करने लगी।
एम॰ ए॰ (भौतिकी) की डिग्री प्राप्त करने के बाद रमन का करियर -
- नवंबर 1908 में मात्र 18 साल की उम्र में रमन ने अपना पहला शैक्षिक पत्र "एक आयताकार एपरचर के कारण गैर-सममित विवर्तन बैंड" विषय पर 'फिलोसोफ़िकल मैगजीन' प्रकाशित किया।
- इस मैगजीन के फैलाव के कारण ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी लॉर्ड राइली ने रमन को पत्र भेजा। राइली, रमन से अत्यंत प्रभावित थे।
- रमन ने ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित वित्तीय सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और महालेखपाल के रूप में नियुक्त किए गए।
- किन्तु नौकरी में रहते हुए भी रमन का विज्ञान से लगाव कम नहीं हुआ, नौकरी के साथ-साथ रमन अपने प्रयोगशाला में अपना बचा हुआ समय बिताते थे।
- 1917 में रमन को कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के पद का प्रस्ताव दिया गया, इस पद के लिए रमन ने अच्छी कमाई वाली नौकरी तक त्याग दिया और अपना पूरा समय विज्ञान को समर्पित कर दिया।
रमन की खोज (रमन सिद्धान्त/प्रभाव) -
- 1921 में गर्मी के दिन रमन यूरोप की यात्रा से बंबई लौटते समय, एस॰एस॰ नरकुंडा नामक जहाज पर रमन को प्रथम बार मेडीटेरेनियन सागर के अद्भुत नीले रंगो को देखकर उनके मन में जिज्ञासा जागृत हुई, उनके मन में ये प्रश्न उठा की जब एक ग्लास पानी का अपना कोई रंग नहीं होता तो ये समुद्र नीला क्यों दिखाई देता है?
- उस समय ये भ्रांति थी कि समुद्र नीला इसलिए दिखता है क्यों कि ये आकाश के रंग को दर्शाता है। रमन ने इस भ्रांति को खत्म करने के लिए सीमित उपकरणो से ही अपना प्रयोग प्रारम्भ किया।
- रमन के प्रारम्भिक परिणामो से ये ज्ञात हुआ कि यह रंग पानी के अणुओं द्वारा सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण उत्पन्न होता है।
- बंबई पहुचते ही रमन ने "नेचर" नामक विज्ञान पत्रिका में अपने विचार भेजे।
- इस स्पष्टीकरण का प्रयोग हेतु प्रकाश के प्रकीर्णन (प्रसार/फैलाव) को नियंत्रित करने वाले तथ्यो का पता लगाना आवश्यक था ।
- सितंबर 1921 में कलकत्ता लौटने के बाद उन्होने इस विषय पर प्रयोग करना शुरू किया और प्रयोग का निष्कर्ष निकाला।
भौतिकी के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार -
- 1930 में रमन को भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- इस क्षेत्र में नोबल प्राप्त करने वाले रमन प्रथम भारतीय के साथ-साथ प्रथम एशियाई भी है।
- अपने जीवन के आखिरी दिनों तक रमन ने अपना शोध कार्य जारी रखा।
28 फरवरी को मनाया जाता है राष्ट्रीय विज्ञान दिवस -
- 1986 में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में घोषित किया गया।
- 28 फरवरी को ही रमन के खोज 'रमन-प्रभाव' की प्रामाणिकता पूरे विश्व में स्थापित हुई थी।
- 28 फरवरी 1987 को पहली बार राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया था।
- 1954 में भारत सरकार ने रमन को भारत रत्न से सम्मानित किया।
रमन का वक्तव्य -
एक राष्ट्र का सच्चा धन भंडारित सोने में नहीं
बल्कि उसके लोगों की बौद्धिक और शारीरिक
शक्ति में होता है ....