सिन्धु सभ्यता एक विकसित नगरीय सभ्यता थी। इसे भारत का प्रथम नगरीय क्रांति भी कहते है। सिन्धु सभ्यता के अंतर्गत विशाल दुर्ग एवं भवन बनाए गए थे। सिन्धु सभ्यता के स्थलों से मंदिर के स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिले है किन्तु पूजा स्थल एवं मूर्तिया अवश्य प्राप्त हुए है। इस सभ्यता में मातृ देवी के पूजा के साथ-साथ पशुपति नाथ एवं प्रकृति पूजा के साक्ष्य भी मिले है। सिन्धु सभ्यता के स्थलों से कपास के बने वस्त्रों का साक्ष्य मिला है। जब इस सभ्यता से संबन्धित स्थानों की खुदाई हो रही थी तब अधिकांश नगर सिन्धु नदी के घाटी क्षेत्र में पाये गए इसी कारण इस आद्य ऐतिहासिक सभ्यता का नाम जॉन मार्शल ने 'सिन्धु सभ्यता' रखा।
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सिन्धु घाटी सभ्यता एक परिचय | Introduction of Indus Valley Civilization in Hindi
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लगभग 1100 स्थलों की खोज सिन्धु एवं गंगा नदी के बीच के क्षेत्रों में हुई है, प्राचीन प्रमाणों के आधार पर माना जाता है कि सिन्धु एवं गंगा नदी के बीच के क्षेत्र में सरस्वती नदी प्रवाहित होती थी इसलिए इस सभ्यता का एक नाम सरस्वती घाटी सभ्यता भी है।
- सिन्धु सभ्यता, कांस्य युगीन सभ्यता है क्योंकि इस काल में तांबे और टीन के मिश्रण से बनी कांसे का उपयोग किया जाता था।
- सिन्धु स्थलों से लोहे के किसी भी वस्तु की प्राप्ति नहीं हुई है संभवतः इस काल के लोग लोहे से अंजान थे।
- खुदाई में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर सिन्धु घाटी सभ्यता का काल लगभग 2350 से 1750 ईसा पूर्व माना गया है।
सिंधु सभ्यता का खोज एवं उत्खनन | Exploration and Excavation of Indus Civilization
- सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मेसन (Charles Mason) नामक अंग्रेज़ ने हड़प्पा नामक स्थल से कुछ ईटें प्राप्त की किन्तु उस समय कोई उत्खनन कार्य नहीं हुआ।
- 1853 से 1856 में लाहोर से कराची रेल लाइन बिछाने के दौरान अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने यहा का दौरा किया।
- 1921 में भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष जॉन मार्शल के निर्देशन में दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थल की खोज की।
- चूंकि इस सभ्यता का सबसे पहला स्थल हड़प्पा खोजा गया था अतः इसी आधार पर सैन्धव सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी कहते है।
- वर्तमान तक सिन्धु सभ्यता के लगभग 1500 स्थल खोजे जा चुके है, इनमें लगभग 500 पाकिस्तान में जबकि लगभग 1000 भारत में स्थित स्थल है।
- सैन्धव स्थलों के खुदाई से प्राप्त मुहरों का आकार चकौर/आयताकार तथा उसपे बाघ, हाथी, हिरण, भैसा और एक शृंगी पशु का आकृति अंकित है।
- इस सभ्यता से 'शेर' के साक्ष्य अभी तक नहीं मिले है।
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Indus Valley Civilization in Hindi |
सिन्धु घाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यताएँ (Contemporary Civilizations)
- सुमेरियन (मेसोपोटामिया) सभ्यता, बेबीलोनियन सभ्यता तथा मिश्र की सभ्यता, सिन्धु सभ्यता के समकालीन थे।
- सैन्धव निवासियों का भारतीय प्रदेशों के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य देशों के साथ भी व्यापारिक संबंध के साक्ष्य मिले है।
- सुमेरियन, बेबीलोनियन, फारस तथा अफगानिस्तान से हड़प्पा के मुहरों से मिलती-जुलती मोहरे प्राप्त हुई है।
- सुमेरियन लेखो से ज्ञात होता है कि उन नगरों के व्यापारी मेलुहा (मोहंजोदड़ों) के व्यापारी के साथ वस्तु विनिमय करते थे।
- 'मेलुहा' शब्द को सिन्धु सभ्यता के मोहंजोदड़ों स्थल से संबन्धित माना जाता है।
- साक्ष्यों से पता चला है कि सिन्धु और मेसोपोटामिया दोनों सभ्यताओं के निवासी बैल को पवित्र मानते थे, दोनों सभ्यताओं के मोहर पर बैल की आकृति पायी गयी है।
मेसोपोटामिया सभ्यता तथा सिन्धु सभ्यता में अंतर (Difference between Mesopotamian Civilization and Indus Civilization)
सिन्धु घाटी की सभ्यता | मेसोपोटामिया की सभ्यता |
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सिन्धु घाटी सभ्यता पूर्णतः नगरीय सभ्यता है, यहाँ से उच्चस्तरीय नगर नियोजन के साक्ष्य मिले है। |
मेसोपोटामिया की सभ्यता एक अर्ध-नगरीय सभ्यता है, यहाँ से नगरों के साथ-साथ ग्राम भी प्राप्त हुए है। |
सिन्धु घाटी सभ्यता में सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। |
मेसोपोटामिया की सभ्यता के सड़के अव्यवस्थित ढंग से बनी थी। |
सिन्धु घाटी सभ्यता में उच्चस्तरीय जलनिकासी सुविधा उपलब्ध थी। | मेसोपोटामिया की सभ्यता में उच्च जलनिकासी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। |
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि चित्रात्मक थी।
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मेसोपोटामिया की सभ्यता की लिपि किलनुमा थी।
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सिन्धु घाटी सभ्यता में मंदिर के साक्ष्य नहीं मिले
है।
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मेसोपोटामिया की सभ्यता से मंदिर के साक्ष्य
प्राप्त हुए है।
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सिन्धु सभ्यता में पुरोहित वर्ग का स्पष्ट शासन का
साक्ष्य नहीं मिलता।
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मेसोपोटामिया की सभ्यता में पुरोहित वर्ग के शासन
का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था।
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मेसोपोटामिया की सभ्यता का समाज पितृसत्तात्मक था।
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सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार | Expansion of Indus Valley Civilization
- सिन्धु घाटी सभ्यता के सम्पूर्ण क्षेत्र का आकार लगभग त्रिभुजाकार है।
- इसका क्षेत्रफल लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर है।
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Expansion of Indus Valley Civilization in Hindi |
- सिन्धु सभ्यता का सबसे उत्तरी बिन्दु मांडा (जम्मू कश्मीर) है जो कि चिनाब नदी के किनारे बसा है।
- सिन्धु सभ्यता का सबसे दक्षिणी बिन्दु 'दैमाबाद' (महाराष्ट्र) है जो कि गोदावरी नदी के किनारे बसा है।
- सिंधु सभ्यता का सबसे पूर्वी बिन्दु 'आलमगीरपुर' (मेरठ, उत्तर प्रदेश) है जो कि हिंडन नदी के किनारे बसा है।
- सिंधु सभ्यता का सबसे पश्चिमी बिन्दु 'सुतकांगेडोर' (बलूचिस्तान) है जो कि दाश्क नदी के किनारे बसा है।
सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर | Major Sites of Indus Civilization in Hindi
- सिन्धु सभ्यता के लगभग 500 स्थल वर्तमान पाकिस्तान में उपलब्ध है, ये स्थल वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिंध प्रांत एवं पंजाब प्रांत में फैले है।
- सिन्धु सभ्यता के दो स्थल अफगानिस्तान में भी पाये गए है, ये है- मुंडीगाक और शोरतुगई
- सिन्धु सभ्यता के लगभग 1000 स्थल मुख्य रूप से वर्तमान भारत के सात राज्यो में फैले है, ये राज्य निम्न है-
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- पंजाब (रोपड़, संधौल, बाड़ा...etc)
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- हरियाणा (बनवाली, राखीगढ़ी, दौलतपुर...etc)
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- गुजरात (लोथल, धौलावीरा, देशलपुर...etc गुजरात में सबसे अधिक स्थल उपलब्ध)
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- उत्तर प्रदेश (आलमगीरपुर-मेरठ, हुलास-सहारनपुर)
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सिंधु सभ्यता के सात महत्वपूर्ण नगर
(7 Important Cities of Indus Civilization)
1. मोहनजोदड़ों |
2. हड़प्पा |
3. लोथल |
4. कालीबंगा |
5. धौलावीरा |
6. बनवाली |
7. चंहुदड़ों |
- मोहनजोदड़ों का शाब्दिक अर्थ 'मृतकों का टीला' है। यहा से ढेर सारी लाशे प्राप्त हुई थी जो संभवतः किसी युद्ध या आपदा से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।
- मोहनजोदड़ों से कब्रिस्तान के प्रमाण नहीं मिले है।
- मोहनजोदड़ों का अन्य नाम स्तूप का टीला, सिन्धु सभ्यता का बगीचा या प्रेतों का टीला है।
- मोहनजोदड़ों की खोज का श्रेय राखल दास बैनर्जी को जाता है। राखल दास बैनर्जी ने ही 1922 में मोहनजोदड़ों की खोज की थी।
- मोहनजोदड़ों वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के किनारे अवस्थित है। मोहनजोदड़ों के टीले लगभग 5 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए है।
- मोहनजोदड़ों की मुख्य विशेषता उसकी सड़के थी जिसमे मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ा था इतिहासकारों ने इसे राजपथ की संज्ञा दी है।
- मोहनजोदड़ों के अन्य सड़क 2.75 मीटर से 3.66 मीटर चौड़ी थी, ये सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- मोहनजोदड़ों के अधिकतर मकानों में कमरे, रसोई, स्नानगृह, कुआं और शौचालय उपलब्ध थे।
- यहाँ से चिमनी का साक्ष्य तथा घोड़े के दांत के अवशेष भी प्राप्त हुए है।
- मोहनजोदड़ों में सर्वाधिक बाढ़ आने का प्रमाण भी मिला है।
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मोहनजोदड़ों से प्राप्त सेलखड़ी की वर्गाकार मुहर पर पशुपतिनाथ की आकृति |
- मोहनजोदड़ों से प्राप्त पशुपतिनाथ की मोहर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
- इस मुहर में एक चौकी पर बैठे त्रिमुखी पुरुष के सिर में सिंग है तथा उनके हाथ चूड़ियों से भरे हुए है।
- मोहनजोदड़ों से प्राप्त पशुपतिनाथ की मुहर पर दाहिनी ओर एक हाथी और एक बाघ तथा बाई ओर एक गैंडा और एक भैसा की आकृति बनाई गई है।
- जिस चौकी पर पशुपतिनाथ बैठे है उसके नीचे दो हिरण खड़े है जिनमें से एक की आकृति भंग हो चुकी है।
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एक शृंगी पशु वाला मोहर |
- एक अन्य मुहर में पीपल शाखा एवं एक शृंगी पशु की आकृति बनी है।
- लोथल और मोहनजोदड़ों दोनों ही जगहों से एक नाव की आकृति अंकित की हुई मुहर भी प्राप्त हुई है।
- सिंधु वासियों को लोहे का ज्ञान नहीं था किन्तु वे स्वर्ण आभूषणों की जानकारी रखते थे, लोग सोने के मनके, बाजूबंद, पिन और सुई का इस्तेमाल करते थे। किन्तु सोने का व्यापक पैमाने पर उपयोग नहीं दिखता।
- मोहनजोदड़ों से सर्वाधिक मात्रा में मुहरें प्राप्त हुई है। यहाँ से गले हुए तांबे का ढेर भी प्राप्त हुआ है।
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विशाल स्नानागार (मोहनजोदड़ों) |
- मोहनजोदड़ों से विशाल स्नानागार और अन्नागार की प्राप्ति हुई है।
- मोहनजोदड़ों से प्राप्त इस बृहत स्नानागार की माप 11.89 × 7.01 × 2.43 मीटर है जब कि अन्नागार की माप 45.72 × 22.86 मीटर है।
- मोहनजोदड़ों का विशाल स्नानागार सिन्धु सभ्यता के ईटों के स्थापत्य का अद्भुत नमूना है।
- इस विशाल स्नानागार की उत्तर से दक्षिण लंबाई 54.85 मीटर है तथा पूर्व से पश्चिम की ओर चौड़ाई 32.90 मीटर है।
- स्नानागार के सीढ़ियो की चौड़ाई 2.44 मीटर है। सीढ़िया उत्तर से दक्षिण की ओर बनी थी।
- स्नानागार के पूर्व में स्थित एक कमरे से ईटों के दोहरी पंक्ति से बने एक कुएँ का अवशेष मिला है संभवतः इसी कूप के माध्यम से स्नानागार में जल आपूर्ति की जाती थी।
- स्नानागार का फर्श पकी हुई ईटों का बना था।
- स्नानागार के फर्श का ढाल दक्षिण से पश्चिम की तरफ था।
- जल रिसाव रोकने के लिए इसके किनारो पर चूने के गारे (जिप्सम) के माध्यम से ईटों की जुड़ाई की गयी थी।
- बाहरी दीवारों पर बिटूमन का इंच भर मोटा प्लास्टर लगाया गया है।
- जॉन मार्शल ने स्नानागार को विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य कहा है।
- मोहनजोदड़ों में 150 ईस्वी से 500 ईस्वी के बीच का बुद्ध स्तूप अवस्थित है जिसका निर्माण कुषाण शासकों ने करवायी थी।
- मोहनजोदड़ों से नृत्य करती हुई लड़की का कांस्य प्रतिमा प्राप्त हुआ है तथा दाढ़ी वाले पुजारी की पत्थर की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है।
- मोहनजोदड़ों से सूती कपड़े का साक्ष्य भी मिला है जिससे स्पष्ट होता है कि सिंधु सभ्यता के लोगो को कपास की खेती का ज्ञान था।
- मोहनजोदड़ों से विशाल सभाभवन तथा महाविद्यालय के भी प्रमाण मिले है, यहाँ से मलेरिया का साक्ष्य भी मिलता है।
- मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत यहाँ का अन्नागार है।
- सिन्धु सभ्यता के अंतर्गत सबसे पहला खोजा गया नगर हड़प्पा ही था, इसे 1921 में दयाराम साहनी द्वारा खोजा गया था।
- हड़प्पा नगर के अन्य उत्खननकर्ता माधोस्वरूप वत्स (1923 में) तथा व्हीलर (1946 में) थे।
- हड़प्पा वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोण्टगोमरी जिले (वर्तमान नाम- शाहीवाल) में रावी नदी के बाए तट पर अवस्थित है।
- नगर की रक्षा के लिए पश्चिम की ओर दुर्ग बनाई गयी है इसे व्हीलर ने माउंट AB की संज्ञा दी है।
- हड़प्पा से 6-6 के दो पंक्तियों में निर्मित 12 कमरों वाला एक अन्नागार मिला है।
- गेंहू एवं जौ के दानो का साक्ष्य भी हड़प्पा से मिला है।
- हड़प्पा से एक लकड़ी की कब्र मिली है जिसे R-37 नाम दिया गया है।
- हड़प्पा से 18 वृत्ताकार चबूतरों के भी साक्ष्य मिले है।
- सर्वाधिक अभिलेख वाली मुहरे हड़प्पा से प्राप्त हुई है।
- हड़प्पा से प्राप्त अन्य साक्ष्य - श्रमिक निवास, शंख का बना बैल, बर्तन पर मछुवारे का चित्र, स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे का चिन्ह, मातृदेवी की मूर्ति और लिंग पूजन के भी साक्ष्य मिले है।
- हड़प्पा से लाल-चुने पत्थर की आदमी के धड़ का मूर्ति प्राप्त हुआ है।
लोथल (Lothal in Hindi)
- लोथल की खोज 1953 में रंगनाथ राव ने की थी। इसका खुदाई कार्य जगपति जोशी ने कारवाई।
- लोथल गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र (खंभात की खाड़ी) में भोगवा नदी के किनारे अवस्थित है।
- लोथल का अन्य नाम लघु मोहनजोदड़ों या लघु हड़प्पा है।
- लोथल और सुरकोटदा में दुर्ग और नगर एक ही सुरक्षा दीवार से घिरे है।
- लोथल से प्राप्त साक्ष्यों में- मानव निर्मित बन्दरगाह (गोदीवाड़ा), अग्नि वेदिकाएँ, शतरंज का खेल, फारस की मुहर, मनके बनाने वाले शिल्पियों की दुकान, 13 इंच की हाथी के दात का पैमाना, आटा-चक्की, चावल तथा बाजरे का साक्ष्य, लकड़ी का अन्नागार, युगल (स्त्री-पुरुष) शवाधान जिसमे सिर पूर्व में पैर पश्चिम में है इत्यादि प्राप्त हुए है।
- लोथल से अग्नि देवता की एक मूर्ति मिली है जिनके सिर पर सिंग बनी हुई है (सींगयुक्त देवता), इसे Atha और Arka नाम से ईरानी लोग पूजते है इसकी समानता इसी से की गयी है।
कालीबंगा (Kalibangan in Hindi)
- कालीबंगा वर्तमान में राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के किनारे पर अवस्थित है। इस स्थल की खोज इटली के इंडोलॉजिस्ट और भाषाविद् लुइगी पियो टेसिटोरी ने की थी, किन्तु 1952 ईसवी में अमलानंद घोष ने हड़प्पा सभ्यता के हिस्से के रूप में इस स्थल की पहचान की और इसे खुदाई के लिए चिह्नित किया और बाद में, 1961-69 ईसवी के दौरान, बी. बी. लाल और बालकृष्ण थापर द्वारा इसकी खुदाई की गई।
- कालीबंगा से हड़प्पा सभ्यता के साथ-साथ इस सभ्यता के पहले के भी साक्ष्य (अवशेष) मिले है, अतः कालीबंगा प्राक् -हड़प्पा/प्रारम्भिक हड़प्पा संस्कृति से संबन्धित है।
- कालीबंगा नगर के दोनों भाग दुर्गीकृत है अर्थात दुर्ग तथा निचली नगर दोनों अलग-अलग प्राचीर (दीवार) से घिरे हुए थे। यहाँ के घर कच्ची ईटों के बने है।
- कालीबंगा का अर्थ काले रंग की चुड़ियाँ होता है। यहाँ से ऊट के हड्डियों के साक्ष्य भी मिले है।
- कालीबंगा से लकड़ी के हल तथा जूते हुए खेत का प्रमाण मिला है।
- कालीबंगा के फर्श पर अलंकृत ईटों के प्रयोग का साक्ष्य मिला है।
- भूकंप आने का प्राचीनतम साक्ष्य कालीबंगा से ही मिला है।
- यहाँ से एक उस्तरे पर कपास का वस्त्र लिपटा हुआ मिला है।
- कालीबंगा से 7 अग्नि वेदिकाएँ पाई गयी है जिनमे राख़ भरा है।
- यहाँ के एक अग्निकुंड में हिरण के सींग और उसके जले हुए अवशेष मिले है।
- इन अग्नि वेदिकाओं के समीप ही स्नान के लिए कुवों की व्यवस्था की गयी है, इतिहासकार इन्हे धार्मिक स्नान से जोड़कर देखते है।
धौलावीरा (Dholavira in Hindi)
- धौलावीरा, गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में खदिरबेट में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है।
- यह पाँच सबसे बड़े हड़प्पा स्थलों में से एक है एवं भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थलों में से एक है।
- हड़प्पा सभ्यता की दो नवीनतम खोजे धौलावीरा तथा कुंतासी है।
- आर. एस. विष्ट ने 1990 में धौलावीरा की व्यापक पैमाने पर उत्खनन कार्य करवाया।
- धौलावीरा के खोज का श्रेय (1967-68 में) जे. पी. जोशी को जाता है।
- धौला का अर्थ होता है 'सफ़ेद' तथा बीरा का अर्थ 'कुआं' होता है।
- धौलावीरा से लाल-गुलाबी रंग के मृदभांड प्राप्त हुए है।
- सिंधु सभ्यता के संबंध में शैलकृत स्थापत्य के प्रमाण धौलावीरा से ही मिलते है।
- धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तहसील में खादिर नाम के एक द्वीप (खादीर द्वीप को स्थानीय भाषा में 'बैठ' कहते है) के उत्तर-पश्चिम कोने पर बसा एक गाँव है। इसके चारों ओर कच्छ का रण फैला है।
- 'मानसर' तथा 'मनहर' धौलावीरा की बरसाती नदियां है।
- धौलावीरा के कोटड़ा नामक टीले के उत्खनन से सिंधु सभ्यता के अवशेष मिले है।
- धौलावीरा नगर तीन भागों में विभाजित है (त्रि-स्तरीय नगर योजना)-
- किला (दुर्ग - पश्चिमी टीला)
- मध्य नगर (मध्य टीला)
- सामान्य नगर (पूर्वी टीला)
- भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा खोजा गया नगर राखीगढ़ी (हरियाणा के जींद जिले में) है वही धौलावीरा सिंधु सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा स्थल है (वर्तमान भारत में)
- धौलावीरा से एक उन्नत जल-प्रबंधन प्रणाली का पता चलता है।
चंहुदड़ों (Chanhudaro in Hindi)
- चंहुदड़ों में दोनों टीलो (किला-पश्चिम, नगर-पूर्व) में किसी प्रकार की सुरक्षा कवच या चारदीवार नहीं थी।
- चंहुदड़ों के उत्खनन का निर्देशन 1935-36 में जे. एच. मैके ने किया था।
- चंहुदड़ों की खोज 1931 में एन. जी. मजूमदार ने की थी।
- चंहुदड़ों एक मात्र ऐसा स्थल है जहां से 'वक्राकार ईटे' मिलती है।
- चंहुदड़ों पाकिस्तान में मोहनजोदड़ों से 80 मील दूर सिंधु नदी के बाए तट पर अवस्थित है।
- चंहुदड़ों एक मात्र ऐसा स्थल है जहां से हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद 'झुकर-झांगर' नामक ग्रामीण एवं कृषि मूलक संस्कृति के विकास का साक्ष्य मिलता है।
- यहाँ पर मनके बनाने के कारखाने का भी साक्ष्य मिला है एवं लिपिस्टिक तथा कंघी का भी साक्ष्य मिला है।
- चंहुदड़ों में बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पैरों के निशान का साक्ष्य मिला है।
- यहा से प्राप्त मिट्टी के एक मुद्रा पर तीन घड़ियालों और दो मछलियों का चित्र का प्रमाण मिला है।
बनवाली (Banawali in Hindi)
- बनवाली हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित है।
- बनवाली की खोज 1974 में आर. एस. बिष्ट ने की थी।
- बनवाली एकमात्र प्राप्त जगह है जहां जल निकास प्रणाली का अभाव है।
- बनवाली की सड़के न तो सीधी मिलती है और न ही यह एक-दूसरे को समकोण पर काटती है।
- बनवाली से प्राप्त होने वाले साक्ष्यों में - मिट्टी का हल (खिलौने के रूप में), जौ के दाने के साक्ष्य, पकी मिट्टी से बने मुहर, तांबे की कुल्हाड़ी इत्यादि प्राप्त हुए है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य | Important Notes about Indus valley civilization
- सुरकोटदा से घोड़े का कंकाल प्राप्त हुआ है।
- सुरकोटदा, देशलपुर, धौलावीरा गुजरात के कच्छ के रण वाले इलाके में अवस्थित है। यहां चार बर्तनों में शवाधान पाए गए थे।
- महाराष्ट्र का दैमाबाद जो कि सिंधु सभ्यता का दक्षिणतम बिन्दु है, गोदावरी की सहायक प्रवरा नदी के किनारे अवस्थित है।
- रोपड़ पंजाब में सतलज नदी के किनारे बसा है।
- हड़प्पा सभ्यता में लाजवर्द मणि का आयात अफगानिस्तान के बदख्शा क्षेत्र से होता था।
- हड़प्पा सभ्यता में पकी मिट्टी के मूर्तियों का निर्माण हाथ से या चिकोटी पद्धति (Pinch Method) से किया जाता था।
- कुंतासी गुजरात के राजकोट जिले में स्थित बन्दरगाह नगर था।
- कुंतासी से विकसित उत्तर हड़प्पाई सभ्यता के प्रमाण मिले है।
- रंगपुर कच्छ और खंभात की खाड़ी के बीच स्थित है जो कि लोथल के उत्तर-पश्चिमी भाग में पड़ता है।
- रंगपुर में, लाल और काले मिट्टी के बर्तन, मनके रिम्स वाली प्लेटें, लंबी गर्दन वाले जार, शंख शिल्प, और कई पौधों के अवशेष भी पाए गए हैं। खोजी गई कुछ अन्य वस्तुओं में चावल, ज्वार और बाजरा शामिल थीं।