जलवायु परिवर्तन एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जो मानवीय तथा प्राकृतिक कारकों द्वारा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों माध्यमों से प्रभावित होती है। वैश्विक औद्योगीकरण के पश्चात मानवीय कारकों ने वातावरण को अत्यधिक दुष्प्रभावित किया है। मानव द्वारा पर्यावरण संसाधनों का अत्यधिक दोहन पर्यावरण प्रदूषण एवं वैश्विक तापन के रूप में एक गंभीर समस्या बनकर विश्व के सामने आई है। इस लेख में हम इन्ही मानवीय तथा प्राकृतिक कारकों के बारे में जानेंगे, जो कि हमारे प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ सामाजिक जीवन एवं जिम्मेदारियों को समझने के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
Global Warming in Hindi |
जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक
जलवायु किसी क्षेत्र के दीर्घ समयावधि में मौसमी घटनाओं का औसत होती है। धरती की जलवायु स्थैतिक नहीं है, यह समयानुसार परिवर्तित होता रहता है। मौसम अल्पकालिक परिवर्तन है वही जलवायु दीर्घकालिक परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन का भौगोलिक तात्पर्य मौसमी प्रतिरूप में लंबे समय तक के परिवर्तन से है। जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों में मानवीय तथा प्राकृतिक कारक दोनों हो सकते है, प्राकृतिक कारकों के रोक-थाम हेतु उपाय करना तो अत्यधिक कठिन कार्य है किन्तु मानवीय दुष्प्रभावों को रोकने हेतु उपाय किया जा सकता है किन्तु मानवीय दुष्प्रभावों को रोकने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता होगी। वायुमंडल सामान्यतः परिवर्तनीय अवस्था में होता है, इसी कारण अल्पकालिक मौसम तथा दीर्घकालिक जलवायु बदलता रहता है। दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन हजारों वर्षों तक स्थायी हो सकते है और अत्यंत मंद गति से घटित हो सकते है। वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन पर 21वाँ सम्मेलन (COP21) पेरिस (फ्रांस) में हुआ था वही वर्ष 2019 में 25वाँ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन मैड्रिड (स्पेन) में हुआ था किन्तु 26वाँ सम्मेलन जो ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में होना था Covid-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था।
वैश्विक तापन
(Global Warming)
(Global Warming)
मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन एवं मानव के वे क्रिया-कलाप जो वायुमंडल को दुष्प्रभावित करते है, पर्यावरण के ऊष्मा तथा विकिरण के सामान्य संतुलन को परिवर्तित कर रहे है। मानवीय दुष्प्रभावों से वायुमंडल में गैसों का संतुलन बिगड़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप हरित गृह गैसों की मात्रा बढ़ रहा है, हरित गृह गैसों के अपनी सामान्य मात्रा से अधिक होने से पृथ्वी का तापमान प्रत्येक स्थान पर अपनी स्थानीय सामान्य तापमान से अधिक हो रही है, इस असमान्य बढ़े हुए तापमान से पर्यावरण में उत्पन्न होने वाले प्रभाव को ही ग्लोबल वार्मिंग कहते है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने से मौसम संतुलन और दीर्घकालिक जलवायु संतुलन बिगड़ रहा है।
तापमान के सामान्य से ज्यादा होने से ग्लेशियर पिघल रहे है जिससे नदियों में बाढ़ आ रहा है तथा समुद्र तल की ऊँचाई सामान्य से अधिक हो रही है। यदि समुद्र तल इसी प्रकार बढ़ता रहा तो कई द्वीप और समुद्र किनारे बसे नगर भी डूब सकते है।
हरित गृह प्रभाव (Greenhouse Effect)
हरित गृह शीशे के दीवारों के बने एक प्रकार के भवन होते है जिसका प्रयोग ठंडे प्रदेशों में पौधे उगाने हेतु किया जाता है। बाहरी तापमान के अत्यधिक कम होने के बावजूद इस गृह के अंदर उन पौधों हेतु उपयुक्त तापमान का संरक्षण कर लिया जाता है, पृथ्वी भी एक हरित गृह के भांति कार्य करती है। पृथ्वी की हरित गृह गैसें जो कि निचली वायुमंडल में पाई जाती है, पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए होती है और सूर्य से प्राप्त विकिरण का एक सीमा तक संरक्षण करती है जिससे पृथ्वी का तापमान जीवन-यापन और पौधों के उगने हेतु उपयुक्त होता है। ग्रीन हाउस गैसों की संकल्पना वर्ष 1824 में जोसेफ फोरियर ने की थी।
प्राकृतिक हरित गृह प्रभाव के माध्यम से पृथ्वी का तापमान 15º तक गर्म रहती है। यदि हरित गृह गैस वायुमंडल में उपस्थित नहीं रहते तो पृथ्वी का माध्य तापमान -20º तक गिर सकता था जिससे जीवन-यापन संभव नहीं रहता। मानव द्वारा उत्सर्जित हरित गृह गैस प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ते है, ये अतिरिक ग्रीन हाउस गैस, वैश्विक तापमान को बढ़ावा देते है। हरित गृह गैस का अर्थ वायुमंडल के उन गैसों से है जो कि प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों प्रकार के होते है। मुख्य हरित गैसों में Carbon dioxide (CO2), Methane (CH4), Nitrous oxide (N2O), Hydrofluorocarbons (HFCs), Perfluorocarbons (PFCs), Sulphur hexafluoride (SF6), Nitrogen trifluoride (NF3) एवं जलवाष्प (Water Vapour) इत्यादि शामिल है।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)
सर्वाधिक CO2 उत्सर्जित करने वाले पाँच देश
💢 चीन | 28% |
💢 संयुक्त राज्य अमेरिका | 15% |
💢 भारत | 7% |
💢 रूस | 5% |
💢 जापान | 3% |