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वैदिक काल | Vedic Era in Hindi

इंडों-युरोपियन भाषा का सबसे प्राचीन नमूना 1600 ई.पू. के लगभग उत्कीर्ण इराक के कस्साइट अभिलेख तथा सीरिया के मितन्नी अभिलेख से मिलता है।....Read More

वैदिक साहित्यों द्वारा भारतीय इतिहास के जिस युग का ज्ञान होता है उसे वैदिक काल कहते है। विद्वानों का मत है कि वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य थे जो कि अपने शत्रुओं को दस्यु कहते थे। आर्य शब्द का तात्पर्य 'श्रेष्ठ' अथवा 'कुलीन' होता है। आर्य जिस भाषा का प्रयोग करते थे, उसे इंडो-युरोपियन परिवार का भाषा माना गया है। इंडों-युरोपियन भाषा का सबसे प्राचीन नमूना 1600 ई.पू. के लगभग उत्कीर्ण इराक के कस्साइट अभिलेख तथा सीरिया के मितन्नी अभिलेख से मिलता है। विद्वानों के अनुसार वैदिक काल का विस्तार लगभग 1500 ई.पू. से लगभग 500 ई.पू. तक माना जा सकता है। वैदिक काल, प्रामाणिक रूप से सप्त सिंधु अर्थात सात नदियों के भूमि वाले भागोलिक क्षेत्र से संबंधित है। 

Vedic Era in Hindi upsc apna
Vedic Era in Hindi

वेदिक काल एक परिचय (Introduction of Vedic Era)

  • सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के बाद भारत में एक नयी सभ्यता का उदय हुआ जिसे आर्य(Aryan) या वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) कहा गया।
  • वेदिक काल का अनुमान मुख्यतः वेदों के आधार पर लगाया जाता है।
  • वेद की संख्या चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद।  
  • चारों वेदों में ऋग्वेद के प्राचीन होने के कारण यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वेद है। 
  • वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल (1500 -1000 ईसा पूर्व) तथा उत्तर वैदिक काल (1000 - 600 ईसा पूर्व) के रूप में विभाजित किया गया है।

वेद (Vedas)


वेदों की संख्या चार है। 
  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. यजुर्वेद
  4. अथर्ववेद

ऋग्वेद (Rigveda)

  • ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे प्राचीनतम वेद है। 
  • ऋग्वेद का मतलब 'ऐसा ज्ञान जो ऋचाओं से बद्ध हो' होता है।  
  • ऋग्वेद मूलरूप से ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। 
  • ऋग्वेद में कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त, 11 बालखिल्य और 10580 ऋचाएँ मिलती है। 
  • ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है जो कि सूर्य देवता को समर्पित है।  
  • गायत्री मंत्र, ऋग्वेद का सर्वाधिक लोकप्रिय छंद है। गायत्रीमंत्र के रचयिता विश्वामित्र को माना जाता है। 
  • ऋग्वेद के नवे मण्डल में सोम की स्तुति की गयी है। 
  • ऋग्वेद के 2 से 7 मण्डल को वंश मण्डल कहते है, यह सबसे प्राचीन मण्डल है। 
  • ऋग्वेद का मण्डल-1 और मण्डल-10 सबसे बाद में जोड़ा गया है, इसे नवीन मण्डल भी कहते है। 
  • ऋग्वेद के दसवें मण्डल में वर्ण व्यवस्था से संबन्धित 'पुरुष सूक्त' का उल्लेख है। 

Ancient History
  • पुरुष सूक्त के अलावा नासदीय सूक्त, विवाह सूक्त इत्यादि प्रसिद्ध सूक्त ऋग्वेद के दसवे मण्डल के अंतर्गत ही आती है। 
  • भारतीय नाटकों के आरंभिक सूत्र ऋग्वेद के संवाद-सूक्त में मिलते है। 
  • ऋग्वेद के किसी भी मण्डल का प्रथम सूक्त प्रायः अग्नि देवता को समर्पित है। 
  • ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले ऋषियों को होतृ कहा जाता था। 
  • ऋग्वेद में अमरता का उल्लेख मिलता है किन्तु मोक्ष का नहीं। 
  • 'गोत्र' शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में ही मिलता है जबकि गोत्र-प्रथा का उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।
  • ऋग्वेद का उपवेद 'आयुर्वेद' है।  
  • सांख्यायन ब्राह्मण ग्रंथ तथा ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ ऋग्वेद से संबन्धित है। 
  • ऋग्वेद में इन्द्र की स्तुति में सबसे अधिक 250 सूक्त है जबकि दूसरे स्थान पर अग्नि देवता का सर्वाधिक उल्लेख है। 
  • प्राचीन ईरानी ग्रंथ अवेस्ता का भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद से समानता देखी जाती है क्योंकि इन दोनों में लिखी गयी अनेक बातें समान प्रतीत होती है। 
  • ऋग्वेद में दस्युओं और पणियों को प्रमुख शत्रु समुदाय के रूप में उल्लेखित किया गया है।
  • ऋग्वेद में पणियों को व्यवसायी बताया गया है जो कि आर्यों के पशु चुरा लेते थे।

सामवेद (Samaveda)

  • साम का शाब्दिक अर्थ है 'गान' अर्थात सामवेद का संबंध मुख्यतः यज्ञों के अवसरों पर गाये जाने वाले मंत्रों से है। 
  • सामवेद को भारतीय संगीत का मूल कहा जाता है। 
  • सामवेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को 'उद्गाता' कहते थे। 
  • सामवेद का उपवेद 'गन्धर्व वेद' है। .
  • सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ है। इनमें 78 ऋचाएँ नयी है जबकि शेष ऋग्वेद से ली गयी है, अतः सामवेद का संकलन ऋग्वेद पर आधारित है।  
  • तांड्यामह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबन्धित है। 

यजुर्वेद (Yajurveda)

  • यजुर्वेद एक कर्मकाण्डीय वेद है। यजुष का अर्थ होता है 'यज्ञ'
  • यजुर्वेद में विभिन्न यज्ञों से संबन्धित अनुष्ठान विधियों का उल्लेख है। 
  • यजुर्वेद को पद्धति ग्रंथ भी कहा जाता है। 
  • यजुर्वेद अंशतः गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है। 
  • यजुर्वेद को 40 अध्यायों में विभाजित किया गया है जिसमे कुल 1990 मंत्रों का संकलन किया गया है। 
  • यजुर्वेद के कर्मकाण्डों को सम्पन्न कराने वाले पुरोहित को अध्वर्यु कहा जाता है। 
  • 'धनुर्वेद' को यजुर्वेद का उपवेद कहते है। 
  • यजुर्वेद में विभिन्न यज्ञ और यज्ञ विधियों का वर्णन है। 
  • यजुर्वेद से संबन्धित सौत्रायणी यज्ञ में पशु और सूरा (Surah/शराब) की आहुती दी जाती थी।
  • ऋग्वेद में भी सूरा का उल्लेख मिलता है। सोमरस तथा सूरा आर्यों के मुख्य मादक पेय पदार्थ थे।    
  • राजसूय यज्ञ से संबन्धित अनुष्ठानों का वर्णन यजुर्वेद में ही मिलता है। 
  • यजुर्वेद की दो शाखाएँ है -

  1. शुक्ल यजुर्वेद
  2. कृष्ण यजुर्वेद 

  • शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता भी कहते है। 
  • शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का संग्रह है। 
  • शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएँ काण्व और माध्यान्दिन हैं। 
  • कृष्ण यजुर्वेद में छंदोबद्ध मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्यों का विनियोग है। 
  • कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ - काठक संहिता, कपिष्ठल संहिता, मैत्रायणी संहिता (मैत्रेयी संहिता) और तैत्तिरीय संहिता है। 
  • शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ यजुर्वेद से संबन्धित है। 

अथर्ववेद (Atharvaveda)

  • अथर्ववेद को 'ब्रह्मवेद' भी कहा जाता है। 
  • अथर्ववेद में जादू, टोना और विभिन्न प्रकार के औषधियों का वर्णन है। 
  • अथर्ववेद को अनार्यों की कृति मानी जाती है। इसमे रोग व उसके उपचार के लिए तंत्र-मंत्र एवं औषधियों का वर्णन है। 
  • अथर्ववेद का उपवेद 'शिल्पवेद' है।  
  • अथर्ववेद 20 अध्यायों से संकलित है, इसमे 731 सूक्त तथा लगभग 6000 मंत्र है। 
  • गोपथ ब्राह्मण ग्रंथ अथर्ववेद से संबन्धित है।   
  • अथर्ववेद का संकलन दो ऋषियों अथर्व एवं अंगिरस से संबन्धित है। 
  • अथर्ववेद को श्रेष्ठ वेद भी कहते है। 
  • अथर्ववेद के पुरोहित को ब्रह्मा कहते थे। 
  • अथर्ववेद के पुरोहित ब्रह्मा यज्ञीय कर्मकांडों का निरीक्षण करते थे ताकि कोई मायावी शक्तियाँ यज्ञ में व्यवधान न उत्पन्न कर सके। 

ऋग्वेदिक काल
(Rigvedic Era)


  • ऋग्वेदिक काल 1500 BC से 1000 BC तक माना जाता है।  
  • यदु और तुर्वसु दोनों ऋग्वेद कालीन प्रधान जन थे। (ऋग्वेद में यदु का तुर्वसु के साथ अधिकतर युग्म बना है)
  • भरत जन इनमे सबसे प्राचीन जन है।  
  • ऐन्द्र महाभिषेक यज्ञ का उल्लेख ऋग्वेद से ही प्राप्त होता है। 
  • ऋग्वेद में पुरोहित, सेनानी तथा ग्रामणी (ग्राम का मुखिया) इन तीनों अधिकारियों का उल्लेख मिलता है जो कि राजा के आज्ञानुसार कार्य करते थे। 
  • पुरोहित राजा का पथ-प्रदर्शक था।  ग्रामणी गाँव के जनता का प्रतिनिधित्व करता था तथा जरूरत पड़ने पर सेनिक समूह तैयार करता था। 

ऋग्वेदिक काल की भौगोलिक स्थिति
(The geography of Rig Vedic period)

  • वैदिक ग्रन्थों में कुल 31 नदियों का उल्लेख मिलता है। इन 31 नदियों में 25 नदियों का उल्लेख अकेले ऋग्वेद में मिलता है। 
  • ऋग्वेद के नदी सूक्त में सिंधु नदी का सर्वाधिक बार उल्लेख मिलता है किन्तु ऋग्वेदिक आर्यों की सबसे पवित्र नदी सरस्वती को माना जाता है। 
  • ऋग्वेद में सरस्वती को नदीत्तमा (श्रेष्ठ नदी/नदियों में प्रमुख) कहा गया है।   
  • वेदिक ग्रन्थों में रावी नदी को पुरुषणी नदी कहा गया है।  
  • ऋग्वेद में उल्लेखित नदियां गंगा तथा यमुना से पश्चिम के क्षेत्रों में बहती थी। 
  • पुरुषणी नदी (रावी नदी) के तट पर ही प्रसिद्ध दशराज्ञ का युद्ध (दस राजाओं का युद्ध) हुआ था। 
  • दशराज्ञ का युद्ध भारत वंश के शासक सुदास तथा दस राजाओं के बीच युद्ध हुआ था, इस युद्ध में सुदास की विजय हुई थी। 
  • भारतों के राजा सुदास के पुरोहित वशिष्ठ थे। 
  • ऋग्वेद के सूक्तों में हिमवंत तथा मुजवंत पर्वतों का उल्लेख मिलता है। 

ऋग्वेदिक काल की राजनीतिक स्थिति
(Political System of Rig Vedic period)

  • वैदिक राजतंत्र में विदथ, सभा, समिति और परिषद का उल्लेख किया गया है। इन विभागों में प्रजा के हितों, धार्मिक अनुष्ठानों और सैनिक अभियानों के बारे में विचार-विमर्श होता था।  
  • विदथ आर्यों की सबसे पुरानी संस्था थी, इसमे पुरुष व महिला दोनों भाग ले सकते थे। 
  • सभा राजनैतिक, प्रशासनिक और न्यायिक कार्य करती थी। वैदिक कालीन सभा, 'मंत्रिपरिषद' की भाति कार्य करती थी। 
  • समिति मुख्यतः साधारण जनता की संस्था थी। 
  • परिषद एक प्रकार से जनजातीय सैन्य सभा थी। 

ऋग्वेदिक काल की धार्मिक स्थिति
(Religious System of Rig Vedic period)

  • ऋग्वेदिक काल (पूर्व-वैदिक काल) का धर्म मुख्यतः प्रकृति पूजा और यज्ञों पर आधारित था। 
  • प्रारम्भिक ऋग्वेदिक धर्म में बहुदेववादी दर्शन था। इसमे देवताओं की तीन श्रेणियाँ थी - 
    1. पृथ्वीवासी देवता (अग्नि, सोम, बृहस्पति, नदियों के देवता आदि)
    2. आकाशवासी देवता (पूषन, आदित्य, विष्णु, उषा, आश्विन आदि)
    3. अन्तरिक्ष के देवता (इंद्र, रुद्र, वायु, वात, सावित्री आदि)
  • इनमें सबसे प्रमुख देवता इन्द्र थे।  इसके बाद दूसरा स्थान अग्नि देवता का था। 
  • ऋग्वेदिक काल में देवपूजा के साथ-साथ पितृ-पूजा को भी महत्व दिया जाता था। 
  • ऋग्वेदिक काल में यज्ञ के लिए विभिन्न श्रेणियों के पुरोहित थे, इनमे मंत्रपाठ करने वाले पुरोहित को होतृ कहा जाता था। वही अध्वर्यु पुजा से संबन्धित कार्य करता था। 
  • ऋग्वेदिक काल में जनता बाली एवं कर्मकाण्ड (यज्ञ) में विश्वास रखती थी। 
  • ऋग्वेद में उल्लेखित आकाश देवता - पूषन चारवाहों तथा पशुओं के देवता थे,  ऋग्वेद के अनुसार आकाश देवता पूषन का रथ बकरे खिचते थे। 

उत्तर वैदिक काल
(Post Vedic Era)


  • उत्तर वैदिक काल 1000 BC से 600 BC तक माना जाता है।  
  • ऋग्वेदिक काल में शासन तंत्र पर क़बायली समाज का प्रभाव  दिखाई देता है किन्तु उत्तर वैदिक काल आते-आते वंशानुगत राजतंत्र स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

उपनिषद (Upanishads)

  • वैदिक ग्रन्थों के अंतिम भाग उपनिषद है, इन्हे वेदान्त भी कहा जाता है। 
  • उपनिषदों की कुल संख्या 108 बताया जाता है जिनमें 12 प्रमुख उपनिषद है। 
  • उपनिषद मुख्यतः ज्ञानमार्गी रचनाएँ है। 
  • उपनिषदों का विषय अध्यात्म, दर्शन एवं पारलौकिक चिंतन है। 
  • उपनिषद गद्य एवं पद्य दोनों मे लिखे गए है। 
  • 'सत्यमेव जयते' का उल्लेख 'मुण्डकोपनिषद' में मिलता है। 
  • छंदोग्य उपनिषद सामवेद से संबन्धित है। 

Note: 📢
उपरोक्त डाटा में कोई त्रुटि होने या आकड़ों को संपादित करवाने के लिए साथ ही अपने सुझाव तथा प्रश्नों के लिए कृपया Comment कीजिए अथवा आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं, हमारा Email है 👉 upscapna@gmail.com ◆☑️

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