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कृषि एवं प्रौद्योगिकी || Agriculture And Technology in Hindi (Part-1)

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 13 जनवरी, 2016 को की गई। इस योजना का उ‌द्देश्य बुआई से पहले तथा फसल की कटाई तक किसानों को बीमा सुरक्षा प्रदान...

भारतीय कृषि (Indian Economy), भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है। कृषि, अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत शामिल की जाती है। भारतीय कृषि, देश की कुल श्रम शक्ति के लगभग 49% लोगों के लिए रोजगार का सृजन करती है। कृषि तथा संबद्ध क्षेत्र से तात्पर्य खेती, मत्स्यपालन (Fisheries), पशुपालन तथा बागवानी (Horticulture) आदि से है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र का विकास लक्ष्य 11वीं पंचवर्षीय योजना के समान ही 4% निर्धारित किया गया था।

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Agriculture And Technology in Hindi

स्वतंत्रता के समय देश की 75% जनसंख्या कृषि पर आश्रित थी। उत्पादकता कम होने तथा पुरातन प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने के कारण किसानों के पास आधारिक संरचना का अभाव था, इसे हरित क्रांति द्वारा दूर किया गया। भारतीय कृषि में व्यवस्थागत परिवर्तन का श्रेय भूमि सुधार (Land Reform) तथा हरित क्रांति (Green Revolution) की प्रणालियों को दिया जाता है। 1951 के दशक में भूमि सुधार के साथ कृषि में समानता लाने का प्रयास किया गया, इसका उद्देश्य जोतों के स्वामित्व (Ownership) में परिवर्तन लाना था। इसके अतिरिक्त समानता को बढ़ावा देने के लिए भूमि के अधिकतम सीमा निर्धारण को महत्त्व दिया गया। इसका अर्थ प्रायः किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना है। इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भूस्वामित्व के संकेंद्रण (Concentration) को कम करना था।


भारत में कृषि से संबंधित क्रांतियाँ

फसलोत्पादन अर्थात् शस्य विज्ञान, कृषि विज्ञान की वह शाखा है जो फसल उत्पादन और भूमि प्रबन्धन के सिद्धान्तों और क्रियाओं से सम्बन्ध रखती है। 'पीटर डेक्रेसंजी' को कृषि विज्ञान का जनक (Father of Agronomy) कहा जाता है।

हरित क्रांति (Green Revolution)

भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) का विस्तार दो चरणों में हुआ। पहला चरण 1960 से 1970 के दशकों के मध्य तक था, जबकि द्वितीय चरण 1970 के दशक के मध्य से 1980 के दशक के मध्य तक था। 1960 के दशक में कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग द्वारा इसे आरंभ किया गया। नॉर्मन बोरलॉग को हरित क्रांति का जनक (Father of Green Revolution) कहा जाता है। भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा किया गया। हरित क्रांति में प्रौद्योगिकी के प्रसार से भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई। हरित क्रांति ने किसानों की आय में वृद्धि की तथा मानसून पर उनकी निर्भरता को कम किया। औपनिवेशिक काल का कृषि गतिरोध हरित क्रांति से स्थायी रूप से समाप्त हो गया, इसका तात्पर्य उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV-High Yielding Variety) का प्रयोग किया जाना है। हरित क्रांति के प्रभाव से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई। सिंचाई की सुविधाओं तथा उर्वरकों के प्रयोग ने कृषि उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि की।

श्वेत क्रांति (White Revolution)

दुग्ध के क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न करके उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रम को श्वेत क्रांति (White Revolution) कहा गया। श्वेत क्रांति की गति को और तीव्र करने के उद्देश्य से ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) नामक योजना प्रारंभ की गई थी। भारत में ऑपरेशन फ्लड के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन हैं। ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत 13 जनवरी, 1970 को हुई थी। इस योजना को तीन चरणों में लागू किया गया, जिससे कृषकों तथा दुग्ध उत्पादकों को पर्याप्त लाभ मिला।

नीली क्रांति (Blue Revolution)

मछली उत्पादन के क्षेत्र में हुई प्रगति को नीली क्रांति (Blue Revolution) कहा जाता है, भारत विश्व में मछली उत्पादन के क्षेत्र में तीसरा बड़ा देश है। नीली क्रांति को 1960 के दशक में एक पैकेज प्रोग्राम के माध्यम से आरंभ किया गया। भारत में इसका विस्तार सातवीं पंचवर्षीय योजना के समय तेजी से हुआ। भारत में मछली उत्पादन में वृद्धि करने के लिए विश्व बैंक की सहायता से 5 तटवर्ती राज्यों में एक परियोजना लागू की गई है। वर्ष 2020-21 में देश में कुल 14.16 मिलियन टन मछली उत्पादन हुआ। मछली पालन के क्षेत्र में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश है।

द्वितीय हरित क्रांति (Second Green Revolution)

पहली हरित क्रांति के दुष्परिणामों को दूर करने के लिए तथा पर्यावरणीय हितों को ध्यान में रखते हुए कृषि क्षेत्र में समग्र विकास को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 2006 में विज्ञान कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने द्वितीय हरित क्रांति (Second Green Revolution) का आह्वान किया। इसके अंतर्गत उन्नत बीजों का चयन क्षेत्रीय भूमि के आधार पर किया गया है। द्वितीय हरित क्रांति के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी (Bio Technology) तथा आनुवंशिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) के प्रयोग द्वारा अधिक उत्पादकता एवं गुणवत्तापूर्ण बीजों के विकास पर बल दिया गया।

सदाबहार क्रांति (Evergreen Revolution)

प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा सदाबहार क्रांति (Evergreen Revolution) की परिकल्पना वर्ष 2006 में प्रस्तुत की गई। सदाबहार क्रांति का केंद्र बिंदु सतत कृषि विकास के लक्ष्य की प्राप्ति है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत नीली, हरी, पीली, गुलाबी, श्वेत तथा भूरी क्रांति को समेकित करते हुए इन्हें सदाबहार क्रांति के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। सदाबहार क्रांति का मुख्य उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि से है, जिसमें उन्हीं उत्पादों पर निर्भर होना चाहिए, जो पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित, आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा सामाजिक रूप से टिकाऊ हों।

बैंगनी क्रांति' (Lavender or Purple Revolution)

'अरोमा मिशन' जिसे लोकप्रिय रूप से "लैवेंडर या बैंगनी क्रांति' (Lavender or Purple Revolution) के रूप में भी जाना जाता है, की शुरुआत वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर से हुई थी। ध्यातव्य है कि अरोमा मिशन अपनी तरह की एक अनूठी परियोजना है, जिसके तहत किसानों तथा अन्य हितधारकों को उच्च मूल्य वाली सुगंधित फसलों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन पर एक एंड-टू-एंड तकनीक (End to End Tech- nology) प्रदान करने की बात की गई है। साथ ही लैवेंडर के तेल की माँग को देखते हुए इस परियोजना के अंतर्गत रोपण सामग्री के साथ, आसवन इकाइयाँ (Distillation Units) प्रदान की जाती हैं और किसानों को तेल के निष्कर्षण में प्रशिक्षित भी किया जाता है। उल्लेखनीय है कि "काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एण्ड इंडस्ट्रीयल रिसर्च" (CSIR) और "इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसन, जम्मू" (IIM-J), में दोनों निकाय मुख्य रूप से इस मिशन के तहत 'बैगनी क्रांति' को सफल बनाने के लिए उत्तरदायी हैं।

पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि


प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) - इस योजना के अंतर्गत कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई थी। योजना के कुल राजस्व आवंटन का 31% भाग कृषि क्षेत्र को प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत औसत वार्षिक उत्पादन 67 लाख टन रहा। प्रथम पंचवर्षीय योजना के द्वारा कृषि क्षेत्र में 2.71% की वृद्धि दर्ज की गई थी। इस पंचवर्षीय योजना में बाँधों तथा सिंचाई में निवेश सहित कृषि क्षेत्र के प्रभावों पर ध्यान दिया गया। भाखड़ा नांगल बाँध, हीराकुंड जैसी योजनाओं पर इसी अवधि में कार्य आरंभ किया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) - इसके अंतर्गत कुल राजस्व व्यय का 20% भाग कृषि क्षेत्र को आवंटित किया गया, इस समय कृषि उत्पादकता कम रही। द्वितीय पंचवर्षीय योजना उद्योग क्षेत्र पर केंद्रित थी।

तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66) - इस योजना में पुनः कृषि को प्राथमिकता दी गई, इसमें गहन कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि जिला कार्यक्रम एवं अधिक उपज वाली किस्मों पर विशेष ध्यान दिया गया। इस योजना के दौरान गेहूँ के उत्पादन में सुधार हुआ। हरित क्रांति का प्रभाव इस दौरान दिखने लगा तथा रक्षा उद्योग की ओर अधिक ध्यान दिया गया।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) - इस योजना में कृषि क्षेत्र में अनुसंधान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विशेष बल दिया गया। इस योजना के दौरान कृषि उन्नत हुई थी। यह योजना अशोक रुद्र तथा एएस मान्ने मॉडल पर आधारित थी।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) - इस योजना में कुल योजना व्यय का 15% भाग कृषि क्षेत्र के लिए आवंटित किया गया। इसमें खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 1,520 लाख टन रखा गया था, परंतु उत्पादन लक्ष्य से अधिक हुआ।

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) - इस योजना में हरित क्रांति का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ, जिसमें कृषि क्षेत्र में निवेश पर अधिक बल दिया गया। इस योजना का पूरा ध्यान जनसंख्या नियंत्रण तथा आधुनिकीकरण की ओर था।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) - इस योजना में कपास के अतिरिक्त अन्य सभी फसलों का उत्पादन लक्ष्य से अधिक रहा। कृषि में आधुनिक प्रौद्योगिकी को ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त गरीबी को दूर करने में सक्षम बनाया गया।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) - इस योजना में कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.7% रही। इस पंचवर्षीय योजना में कृषि के क्षेत्र में अधिक ध्यान नहीं दिया गया, इसका सबसे अधिक ध्यान उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation) तथा वैश्वीकरण (Globalisation) पर था।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) - इस योजना में कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.06% रही। ग्रामीण विकास के साथ कृषि को प्राथमिकता दी गई तथा पर्याप्त रोजगार के अवसरों को उत्पन्न करने पर ध्यान दिया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) - इस योजना में राष्ट्रीय कृषि नीति 2000 को अपनाया गया, इसमें मृदा स्वास्थ्य तथा जल संसाधनों के प्रबंधन पर विशेष बल दिया गया।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) - इस योजना में कृषि उत्पादकता में वृद्धि, रोजगार सृजन, भूमि पर जनसंख्या दबाव जैसे लक्ष्य निर्धारित किए गए। इसमें कृषि क्षेत्र में 4% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) - इस योजना में कृषि क्षेत्र में 4% वार्षिक विकास दर का लक्ष्य रखा गया, इसमें प्रौद्योगिकी को कृषि के विकास का इंजन घोषित किया गया।
Note : वर्ष 1966-69 के बीच योजना अवकाश वर्ष (Plan Holiday) 1978-80 के बीच अनवरत योजनाएँ (Rolling Plans) तथा वर्ष 1990-92 के बीच वार्षिक योजनाएँ (Annual Plans) संचालित थीं।

कृषि क्षेत्र की योजनाएँ

कृषि क्षेत्र से संबंधित प्रमुख योजनाओं का वर्णन निम्न है-

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना, किसानों को पेंशन प्रदान करने की योजना है। इसे 31 मई, 2019 को लागू किया गया। छोटे तथा सीमांत किसान जो 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं, उन्हें ₹3000 प्रतिमाह धनराशि पेंशन के रूप में दी जाती है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई। इस योजना के अंतर्गत किसानों को प्रत्येक वर्ष ₹6000 की राशि तीन किस्तों में प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 13 जनवरी, 2016 को की गई। इस योजना का उ‌द्देश्य बुआई से पहले तथा फसल की कटाई तक किसानों को बीमा सुरक्षा प्रदान करना है। किसानी को खरीफ फसलों के लिए 2% तथा रबी फसलों के लिए 1.5% का भुगतान करना होता है। वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों के बीमे के लिए 5% प्रीमियम का भुगतान किया जाता है।

नीरांचल जल संभरण योजना

इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 7 अक्टूबर, 2015 को मंजूरी प्रदान की। यह विश्व बैंक से सहायता प्राप्त परियोजना है। यह योजना देश के 9 राज्यों-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा तथा महाराष्ट्र में संचालित की गई है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जल संरक्षण घटक के रूप में नीरांचल का मुख्य लक्ष्य प्रत्येक खेत तक सिंचाई सुनिश्चित करना और जल के अधिकतम प्रयोग को बढ़ावा देना है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

यह योजना 1 जुलाई, 2015 को प्रारंभ की गई थी। इसका उद्देश्य समुचित प्रौद्योगिकी के माध्यम से जल का उचित उपयोग एवं क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेश सहबद्धता को प्रोत्साहित करना है। राष्ट्रीय स्तर पर इस योजना का निरीक्षण प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक अंतर मंत्रालयी राष्ट्रीय संचालन समिति द्वारा किया जाता है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन

राष्ट्रीय गोकुल मिशन (National Gokul Mission) की शुरुआत 28 जुलाई, 2014 को की गई। इस मिशन का उद्देश्य स्वदेशी गायों के संरक्षण तथा नस्लों के विकास को प्रोत्साहित करना है। यह मिशन राष्ट्रीय प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम पर आधारित परियोजना है।

परंपरागत कृषि विकास योजना

इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी। देश में पारंपरिक तथा आधुनिक तकनीकों के माध्यम से कृषि को प्रभावशाली रूप देने के लिए इसे आरंभ किया गया। परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में आरंभ की गई। इस योजना में देश के किसानों की भूमि की मिट्टी की जाँच कर उसकी गुणवत्ता का अध्ययन किया जाता है।

ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार

इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (eNam-Electronic-National Agriculture Market) अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी। इसका उद्देश्य वर्तमान कृषि उपज विपणन समिति मंडियों का एक नेटवर्क स्थापित करना है, जिससे उत्पादों के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार तैयार हो सके।

कृषि तकनीक मूलभूत सुविधा कोष

राष्ट्रीय कृषि विपणन को बढ़ावा देने के लिए कृषि तकनीक मूलभूत सुविधा कोष (ATIF-Agriculture Technology Infrastructure Fund) की स्थापना वर्ष 2015 में की गई। कृषि तकनीक मूलभूत सुविधा कोष को बढ़ावा देने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय प्रयासरत है

खाद्य सुरक्षा

संपूर्ण जनसंख्या को सही समय पर आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूपों में उपलब्धि का आश्वासन खाद्य सुरक्षा (Food Security) है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम

10 सितंबर, 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA-National Food Security Act) अधिसूचित किया गया, इसका उद्देश्य सस्ती कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता के भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करना तथा खाद्य एवं पोषाहार सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम के अंतर्गत 75% ग्रामीण जनसंख्या तथा 50% शहरी जनसंख्या को लाभान्वित किया जाना है। इसके अंतर्गत प्राथमिकता प्राप्त परिवारों (Priority Households) के लिए प्रतिव्यक्ति 5 किग्रा खाद्यान्न और अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत परिवारों के लिए ₹3 प्रति किग्रा चावल, ₹2 प्रति किग्रा गेहूँ और ₹1 प्रति किग्रा मोटे अनाज की देय कीमतों पर प्रत्येक परिवार 35 किग्रा खाद्यान्न के लिए अधिकृत है। 3 नवंबर, 2016 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम देश के 36 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया। केरल व तमिलनाडु ने इस कानून को सबसे बाद में लागू किया। इस अधिनियम के अंतर्गत राशन कार्ड को गृहस्थ परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला के नाम से जारी करने का प्रावधान है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS-Public Distribution System) वर्ष 1950 में लागू की गई थी, इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर आवश्यक उपयोग हेतु वस्तुएँ उपलब्ध कराना है। इसके निम्न 5 आधार थे -

  1. सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानें
  2. सहकारी उपभोक्ता भंडार
  3. नियंत्रित उपभोक्ता भंडार
  4. सुपर बाजार
  5. मिट्टी के तेल विक्रय की दुकानें

खाद्य प्रबंधन

खाद्य प्रबंधन (Food Management) के अंतर्गत लाभकारी मूल्यों में किसानों से खाद्यान्नों की अधिप्राप्ति, उपभोक्ताओं को वहनीय कीमतों पर खाद्यान्न का वितरण तथा खाद्य सुरक्षा एवं मूल्य विस्तार के लिए खाद्य बफर का अनुरक्षण करना है। भारतीय खाद्य निगम (FCI-Food Corporation of India) खाद्यान्न की अधिप्राप्ति, वितरण तथा भंडारण करने वाली एजेंसी है, इसकी स्थापना 14 जनवरी, 1965 को की गई थी।

कृषि से संबंधित प्रमुख संस्थाएं

कृषि क्षेत्र से संबंधित प्रमुख संस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR)

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR-Indian Council of Agricultural Research) की स्थापना 16 जुलाई, 1929 को की गई थी, यह राष्ट्रीय स्तर की शीर्ष स्वायत्त संस्था (Top Autonomus Institution) है। इस संस्था का उद्देश्य कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science and Technology) कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना और उनके विषय में लोगों को प्रशिक्षित करना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का मुख्यालय नई दिल्ली में है, इसके अंतर्गत देश में 49 संस्थान तथा विश्वविद्यालय स्तर के 4 राष्ट्रीय संस्थान हैं।

कपार्ट (CAPART)

कपार्ट (CAPART-Council for Advancement of People's Action and Rural Technology) का गठन 1 सितंबर, 1986 को किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण समृद्धि के लिए परियोजनाओं के क्रियान्वयन में निजी क्षेत्र की स्वैच्छिक भागीदारी को प्रोत्साहन देना और उनमें सहायता करना है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसके अतिरिक्त कपार्ट के 9 प्रादेशिक केंद्र स्थापित किए गए हैं।

नाफेड (NAFED)

नाफेड (NAFED-National Agricultural Co-operative Marketing Federation of India Limited) की स्थापना एक सहकारी संस्था के रूप में 2 अक्टूबर, 1958 में की गई थी। इसका उद्देश्य उद्यान कृषि तथा वन उपजों का विपणन एवं भंडारण करना है। इसके अतिरिक्त कृषि उपकरणों यंत्रों का अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर थोक और खुदरा आयात-निर्यात व्यापार करना है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC-National Co-operative Development Corporation) की स्थापना सांविधिक निकाय के रूप में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन वर्ष 1963 में की गई थी। लघु वनोपों का एकत्रण, प्रसंस्करण (Processing), विपणन, भंडारण एवं निर्यात तथा कृषि उत्पादों में वृद्धि करना इसके प्रमुख कार्य हैं।

ट्राइफेड (TRIFED)

(TRIFED-Tribal Co-operative Marketing Development Federation of India Limited) की स्थापना वर्ष 1987 में की गई थी, जिसका उद्देश्य जनजातियों को उनकी उपजों का उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता करना तथा व्यापारियों के शोषण से बचाना है। अप्रैल, 2008 में ट्राइफेड की नियमावली में से लघु वन उपज (MFP-Minor Forest Produce) और अधिशेष कृषि उपजों (Surplus Agricultural Produce) की खरीद बंद कर दी गई।

एपीडा (APEDA)

एपीडा (APEDA-Agricultural and Processed Food Development Authority) वर्ष 1986 में अस्तित्व में आया। यह प्राधिकरण कृषि उत्पादों एवं संकर बीजों के विकास तथा कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करता है। एपीडा नए बाजारों की खोज करने के साथ निर्यातकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करता है तथा कृषि निर्यात के क्षेत्र में एपीडा, केंद्र सरकार की शीर्ष एजेंसी है।

फसलोत्पादन (Crop Production)

फसलोत्पादन अर्थात् शस्य विज्ञान, कृषि विज्ञान की वह शाखा है जो फसल उत्पादन और भूमि प्रबन्धन के सिद्धान्तों और क्रियाओं से सम्बन्ध रखती है। 'पीटर डेक्रेसंजी' को कृषि विज्ञान का जनक (Father of Agronomy) कहा जाता है।

भारतीय फसलें (Indian Crops)

ऋतुएँ समय/महीना फसलें
रबी (शीत ऋतु की फसले) अक्टूबर-नवम्बर में बुआई अप्रैल-मई में कटाई गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, मसूर, आलू, अलसी, तंबाकू, प्याज, टमाटर
जायद (ग्रीष्म ऋतु की फसले) मार्च-अप्रैल में बुआई जून-जुलाई में कटाई तरबूज, खरबूज, ककड़ी, खीरा, करेला
खरीफ (वर्षा ऋतु की फसले) जून-जुलाई में बुआई सितंबर-अक्टूबर में कटाई अरहर, सोयाबीन, धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, सोयाबीन, मूँगफली, कपास, सन, जूट, उड़द, गन्ना

धान/चावल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

गुणसूत्र संख्या 2n = 24

कुल - ग्रेमिनी

वनस्पतिक नाम - ओराइजा सेटाइवा

उत्पत्ति - दक्षिण पूर्व एशिया

जलवायु - उष्ण कटिबंधीय

औसत तापमान - 24°C

औसत वर्षा - 150 सेमी

• चावल एक स्वपरागित फसल है।

• बुआई का समय जून-जुलाई है।

• सामान्यतः धान में पोषक तत्व की आवश्यकता क्रमशः 80-120 kg N; 40-60 kg P तथा 40-50 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।

• अजोला और नील हरित शैवाल का उपयोग धान की फसल में नत्रजन (N) की आपूर्ति हेतु जैव उर्वरक के रूप में किया जाता है।


धान उत्पादन में भारत की स्थिति एवं नवीनतम किस्में - भारत में संसार के सर्वाधिक क्षेत्रफल (2021-22 में 46.4 मि.हे.) पर धान की खेती की जाती है। जो समस्त संसार का 23.71% धान उत्पादित कर द्वितीय स्थान रखता है। वर्तमान में भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है, जबकि थाईलैण्ड व पाकिस्तान क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। उल्लेखनीय है कि वैश्विक चावल आपूर्ति में भारत का 40% योगदान है। ज्ञातव्य है कि चीन विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है (वर्ष 2021)। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2004 को अन्तर्राष्ट्रीय चावल वर्ष के रूप में घोषित किया था। पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं। ऑस (सितम्बर-अक्टूबर में), अमन (जाड़े में) तथा बोरो (गर्मी में)। भारत में कृषि निदेशालय द्वारा विकसित धान की प्रथम बौनी प्रजाति 'जया' थी। साकेत, गोविन्द, जगन्नाथ, कृष्णा, हंसा, कावेरी, रतना, जया, सरजू, महसूरी, पूसा 33, बाला, लूनाश्रीं, जमुना, करुणा, काँची, विजय, पद्मा, अन्नपूर्णा, माही सुगन्धा, पूसा सुगन्धा-5, बरानी दीप तथा शुष्क सम्राट आदि धान की प्रमुख किस्में हैं। ज्ञातव्य है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए शुष्क सम्राट एक उपयुक्त एवं उत्पादक किस्म है। पूसा RH-10, PHB-71, गंगा, सुरुचि, K.R.H.-2, सह्याद्रि आदि बासमती चावल की संकर प्रजातियाँ हैं। महाधान (सुपर राइस) का विकास फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के मुख्य प्रजनक जी. एस. खुश द्वारा किया गया है। इन्होंने 1989 में महाधान पर अनुसंधान कार्य प्रारम्भ किया था। केन्द्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक (ओडीशा) द्वारा विकसित धान की अधिक उत्पादन देने वाली किस्म, लूनीश्री है। धान की विकसित नवीनतम किस्में हैं- धनराशि, डांडी, शाह सरंग, गौरी, श्वेता, भूदेवि, RH 204 (संकर, उपज 6.0-6.5 टन/हे.), G.R.-8, वर्षा, पंतधान-15, चिंगम, धान आदि। DRR-45 धान की उच्च जिंकयुक्त प्रजाति है एवं DRR-42 धान की सूखारोधी नवीनतम प्रजाति है। खैरा नामक रोग धान में जिंक की कमी से लगने वाला एक प्रमुख रोग है। गोल्डेन धान की किस्म में सर्वाधिक मात्रा विटामिन- A की होती है.

Hybrid Rice - चीन ने सर्वप्रथम संकर तकनीक का प्रयोग कर 1970 के अंतिम दशक में संकर धान विकसित किया। चीन के बाद भारत में व्यावसायिक उत्पादन हेतु 1994 ई. में पाँच संकर किस्मों का पहला सेट वितरित किया गया। जिसमें चार किस्में, यथा-APRH 1, APRH 2, KRH 1, MGR 1 आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य द्वारा निर्गत किया गया। दो वर्ष बाद तीन अन्य संकर किस्में - CNRH 1, KRH 3 तथा DRRH 1 क्रमशः पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश द्वारा निर्गत किया गया। PHB 71 ही एकमात्र संकर किस्म है जो निजी संस्था द्वारा विकसित किया गया है। ध्यातव्य है कि चीन में संकर धान की कृषि सर्वाधिक लोकप्रिय है। यहाँ धान के अन्तर्गत आने वाले कुल क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग पर संकर धान की कृषि की जाती है।

Dapog Method - चावल उत्पादन की यह विधि फिलीपीन्स तथा जापान में प्रचलित है। इस विधि में रोपनी (Transplanting) हेतु अंकुर (Seedlings) 12वें दिन तैयार हो जाती है। नर्सरी में अंकुरित बीज को लकड़ी के तख्त पर व कंक्रीट सतह पर, पोलिथीन सीट से ढंके बीज को सैय्या पर 1.5 kg/m² या test wt. से 50 गुना अधिक बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से फैलाया जाता है। एक वर्ग मीटर से प्राप्त अंकुर 200 वर्गमीटर खेत की बोआई के लिये पर्याप्त होती है। इसमें अन्य विधि की अपेक्षा 2.5 गुना अधिक बीज लगता है। इस विधि से तैयार धान के पौधे में 4 दिन पहले ही पुष्प दिखाई देने लगते हैं।

SRI System (श्री पद्धति) - इसका विकास सन् 1983 में मेडागास्कर के कृषि वैज्ञानिक फ्रेंच जेसूट (कादर हेनरी-डे लोलेनी) ने किया था। इस पद्धति का पूरा नाम है- System of Rice Intensification: SRI अर्थात् चावल गहनीकरण पद्धति। इस पद्धति के अन्तर्गत धान को जलमग्न नहीं किया जाता अपितु वानस्पतिक अवस्था के दौरान मिट्टी को आर्द्र बनाए रखा जाता है, बाद में सिर्फ एक इंच जल गहनता पर्याप्त होती है। इस प्रकार SRI तकनीक में सामान्य की तुलना में सिर्फ आधे जल की आवश्यकता होती है और उपज भी अच्छी मिलती है। इस पद्धति में सामान्य की अपेक्षा कम उर्वरक एवं सुरक्षा रसायन की आवश्यकता होती है। इस तकनीक में धान का पौधा प्राकृतिक स्थिति में अच्छे ढंग से वृद्धि करता है और इसकी जड़ भी बड़े पैमाने पर बढ़ती है। यह अपने लिए पोषक तत्व मिट्टी की गहरी परतों से प्राप्त करता है। यह प्रणाली कृषि कीटों के विरुद्ध प्रतिरक्षण क्षमता रखती है, क्योंकि यह धान की फसल को प्राकृतिक रूप से मिट्टी से पोषक तत्वों को लेने में मदद करती है।


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