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जैव प्रौद्योगिकी || Bio-Technology in Hindi

जीन चिकित्सा का प्रयोग सर्वप्रथम वर्ष 1990 में एक चार वर्षीय लड़की में एंजाइम एडीनोसीन डीएमीनेज की न्यूनता अभाव को दूर करने के लिए किया गया था।

किसी विशेष उत्पादों या पदार्थों को विकसित करने या बनाने के लिए जीवित प्रणालियों एवं जीवों का उपयोग किया जाता है, जिसे बायोटेक्नोलॉजी या जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं। बायोटेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम हंगेरियन इंजीनियर कार्ल इरके (Karl Ereky) ने वर्ष 1917 में किया था।

february 2024 करेंट अफ़ैरस हिन्दी
Bio-Technology in Hindi

आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में निम्नलिखित तकनीकों का प्रमुख योगदान रहा है -

(1) रासायनिक अभियांत्रिकी (Chemical Engineering) इसके अंतर्गत रोगाणु रहित (Germ free) वातावरण में केवल वांछित सूक्ष्मजीवों या पूर्वकेंद्रकीय (Prokaryotic) कोशिकाओं की वृद्धि करवाकर अधिक मात्रा में जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद; जैसे-एंटीबायोटिक, एंजाइम (विकर), टीके (Vaccines), आदि प्राप्त किए जाते हैं।

(2) आनुवंशिक या जीनी अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) इसके अंतर्गत जीवों में वांछित लक्षण प्रारूप (Phenotype) प्राप्त करने के लिए आनुवंशिक पदार्थ (जीन या DNA खंड) को जोड़ा, घटाया या ठीक किया जाता है। यह प्रक्रिया आनुवंशिक अभियांत्रिकी कहलाती है। इसे टेलरिंग ऑफ DNA भी कहते हैं।


पुनर्योगज DNA तकनीक

जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने के लिए कृत्रिम विधियों द्वारा कोशिकाओं की आनुवंशिक रूपरेखा में परिवर्तन किया जाता है। इसमें पुनर्योगज DNA (Recombinant DNA) बनाने के लिए जीन का स्थानांतरण या पुनर्योगज होता है। इस तकनीक में दो अलग-अलग जीवों के DNA को संयुक्त कर पुनर्योगज/पुनःसंयोजन DNA उत्पन्न किया जाता है। इस तकनीक को DNA पुनर्योगज तकनीक (Recombinant DNA Technique) भी कहा जाता है, सरल भाषा में कहें तो किसी एक जीव के डीएनए को किसी अन्य जीव के डीएनए के साथ रोपित करके उसमें इच्छित गुणं वाला जीन प्राप्त करना पुनर्योगज DNA तकनीकी (recombinant DNA technology) कहलाता हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न उपकरणों या साधनों की आवश्यकता होती है, जो निम्नलिखित हैं -

एंजाइम्स (Enzymes)

आनुवंशिक अभियांत्रिकी या पुनर्योगज DNA तकनीक में विभिन्न एंजाइम्स (Enzymes); जैसे- विदलन एंजाइम (Cleavage enzyme), लयन एंजाइम (Lyases), संयोजक एंजाइम (Lysing enzyme), संश्लेषी एंजाइम (Synthesising enzyme) तथा क्षारकीय फॉस्फेटेज (Alkaline phosphatase) कार्यरत होते हैं।

विदलन एंजाइम (Cleavage Enzyme)

इस समूह के एंजाइम DNA अणु को वांछित खंडों में पृथक् करते हैं। इन्हें पुनः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है -

(1) एक्सोन्यूक्लिएजेज (Exonucleases) ये एंजाइम DNA अणु के 5' या 3' सिरों से न्यूक्लियोटाइड को पृथक् करते हैं।

(2) एंडोन्यूक्लिएजेज (Endonucleases) ये एंजाइम DNA अणु को मध्य (विशिष्ट स्थानों) से काटते/पृथक् करते हैं।

(3) प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएजेज (Restriction Endonucleases) ये आनुवंशिक अभियांत्रिकी के सबसे महत्त्वपूर्ण एंजाइम हैं। इन्हें आण्विक कैंची/चाकू (Molecular scissors or Molecular scalpel) भी कहा जाता है। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम DNA में विशिष्ट विलोमपद (Palindromic) न्यूक्लियोटाइड्स के अनुक्रम को पहचानता है; जैसे-Eco RI G-A-A-T-T-C अनुक्रम को पहचान कर, उसे G एवं A के मध्य में से काटता है। इनकी खोज आर्बर (Arber) ने वर्ष 1962 में की थी।
यह विदलन (Cleavage) DNA के अभिज्ञान अनुक्रमों (Recognition sequences) की संख्या पर निर्भर करता है।

DNA लाइगेज (DNA Ligase)

ये एंजाइम टूटे हुए पूरक DNA खंडों को फॉस्फोडाइएस्टर बंधों (3 OH तथा 5' POS के मध्य) के द्वारा जोड़ने/संयोजन करने का कार्य करते हैं। इनको आण्विक संयोजक (Molecular binder) या ऊतक लाइगेज (Tissue ligase) भी कहा जाता है।
Note : पुनर्योगज/पुनःसंयोजित तकनीक (Recombinant DNA Technique) अथवा पुनःसंयोजित जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग Recombinant Vector Vaccine के विकास में किया जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग में आनुवंशिक सामग्री (DNA और RNA) के द्वारा टीका/वैक्सीन निर्माण शामिल है। इस तकनीकी में जीवाणुओं एवं विषाणुओं का प्रयोग रोगवाहक (Vector) के रूप में किया जाता है।

क्लोनिंग वाहक या संवाहक

वाहक (Vector) में क्लोनिंग हेतु निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए -

प्रतिकृतिकरण का उद्भव

यह DNA रज्जुक का एक खंड है, जो प्रतिकृति (Replication) के समय आरंभन बिंदु (Initiation) के रूप में कार्य करता है। DNA का कोई खंड इस स्थल से बँधकर परपोषी कोशिकाओं (Host cells) में द्विगुणन (Duplication) करने में सक्षम होता है। यह अनुक्रम स्वायत्त रूप से प्रतिकृतिकरण की अनुमति देता है तथा इस प्रकार वाहक परपोषी कोशिकाओं में स्वयं की अनेक प्रतिलिपियाँ उत्पन्न कर सकता है। इसलिए लक्ष्य DNA की अत्यधिक संख्या प्राप्त करने के लिए, अत्यधिक प्रतिरूप बनाने में सहायक यह उत्पत्ति अनुक्रम (Ori sequence) संवाहक में क्लोन किया जाता है।

एक मार्कर जीन या वरण योग्य चिन्हक

एक अच्छे वाहक में वरण योग्य चिन्हक (A Marker gene or Selectable marker) की उपस्थिति भी एक आवश्यक विशेषता होती है। यह रूपांतरित (Transformed) परपोषी कोशिकाओं के वरण (चयन) की अनुमति प्रदान करता है तथा अरूपांतरित कोशिकाओं को पहचान कर उनको नष्ट करने में सहायक होता है। सामान्यतया प्रतिजैविक (Antibiotics) औषधियों (टेट्रासाइक्लिन, क्लोरेंफिनिकॉल, कैनामाइसीन तथा एंपिसिलिन) के प्रति-प्रतिरोधक (Resistance) कूटयुक्त जीन, ई. कोलाई के लिए उपयोगी वरण चिन्ह समझे जाते हैं।

क्लोनिंग या पहचान स्थल

वाहक में एक ही पहचान या क्लोनिंग स्थल (Cloning or Recognition sites) होना चाहिए, जहाँ प्रतिबंधन एंजाइम क्रिया कर सके तथा जिससे विजातीय DNA को जोड़ा जा सके। यदि एक से अधिक पहचान स्थल हो, तो प्रतिबंधन एंजाइम की क्रिया द्वारा वाहक अनेक स्थानों पर कट जाएगा तथा जीन क्लोनिंग भी जटिल हो जाएगी।
पुनर्योगज DNA तकनीक में निम्नलिखित वाहक उपयोग में लिए जाते हैं -
  • प्लाज्मिड (Plasmid) यह सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला वाहक है। यह एक छल्लेनुमा रचना होती है, जो DNA की बनी होती है। ये जीवाणु में मुख्य जीनोम के अतिरिक्त पाए जाते हैं। इनमें प्रतिजैविकता, लैंगिक कारक, भारी धातुओं के लिए प्रतिरोधक जीन, आदि पाए जाते हैं। ये जीवाणु के जीनोम से अलग पुनरावृत्ति (Replication) करते हैं। सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला प्लाज्मिड वाहक pBR322 है।
  • PBR322 नामक प्लाज्मिड में टेट्रासाइक्लीन प्रतिरोधी (tet) एवं एंपिसिलिन प्रतिरोधी (amp") जीन होते हैं।
  • इनमें से एक जीन में स्थित प्रतिबंध स्थल (Restriction site) पर विजातीय DNA जोड़ा जाता है। यदि pBR322 में (tet) जीन के प्रतिबंधन स्थल पर कोई विजातीय DNA जोड़ा जाता है, तो टेट्रासाइक्लीन के प्रति प्रतिरोध समाप्त हो जाता है, ऐसे पुनर्योगज प्लाज्मिड युक्त रूपांतरणों (जीवाणुओं) को एंपिसिलिन युक्त माध्यम पर स्थानांतरित करने पर ये पुनर्योगज प्लाज्मिड वृद्धि प्रदर्शित करते हैं।
  • ये रूपांतरण टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर वृद्धि नहीं करते हैं, क्योंकि विजातीय DNA के निवेशन से इनका टेट्रासाइक्लीन प्रतिरोधी जीन निष्क्रिय हो जाता है और पुनर्योगजों के चुनाव में सहायता करता है।
  • प्रतिजैविकों के निष्क्रिय होने पर पुनर्योगों का चयन कठिन हो जाता है। इसके लिए वैकल्पिक वरण योग्य चिन्हों का विकास हुआ। ये चिन्ह क्रोमोजेनिक पदार्थ की उपस्थिति में रंग उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। यदि गैलेक्टोसाइडेज जीन युक्त प्लाज्मिड जीवाणु कोशिका में होते हैं, तो क्रोमोजेनिक पदार्थ की उपस्थिति से नीले रंग की कॉलोनी बनती है।
  • पुनर्योगज प्लाज्मिड में 'निवेशी निष्क्रियता' के कारण ẞ-गैलेक्टोसाइडेज निष्क्रिय होता है और जीवाणु कॉलोनी में कोई रंग उत्पन्न नहीं होता। बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) ये वे विषाणु हैं, जो जीवाणुओं को संक्रमित करते हैं। ये क्लोनिंग वाहक के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं; जैसे-लैम्बडा (1) फेज वाहक तथा M-13 फेज वाहक।
क्लोन की गई प्रथम स्तनी : डॉली नामक भेड़ के क्लोन का जन्म स्कॉटलैंड स्थित रॉसलिन इंस्टीट्यूट में 5 जुलाई 1996 को इयान विल्मुट, कैप कैंपबेल और उनके सहयोगियों के प्रयास से संभव हुआ। यह क्लोन किया गया प्रथम स्तनधारी जीव था। वर्ष 2003 में फेफड़ों के बीमारी के कारण डॉली नामक इस भेड़ की मृत्यु हो गई थी।

पादप तथा जंतुओं में जीन क्लोनिंग हेतु वाहक

पादपों में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमिफेसियंस (Agrobacterium tumefaciens) के Ti (Tumor inducing) प्लाज्मिड को क्लोनिंग वाहक के रूप में उपयोग किया जाता है। यह जीवाणु DNA (tDNA) के एक खण्ड को सामान्य पादप कोशिका में स्थानांतरित करके उन्हें ट्यूमर कोशिकाओं में रूपांतरित कर देता है। ये ट्यूमर कोशिकाएँ एग्रोबैक्टीरियम जीवाणु के लिए आवश्यक रसायनों का निर्माण करती हैं। इसी प्रकार रिट्रोविषाणु (Retrovirus) को जंतुओं में क्लोनिंग हेतु वाहक के रूप में उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह विषाणु सामान्य जंतु कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में रूपांतरित कर देता है।

जैव-प्रौद्योगिकी की प्रक्रियाएँ या पुनर्योगज DNA तकनीक

आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या पुनर्योगज DNA तकनीक की क्रियाविधि अत्यन्त जटिल होती है।
यह निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है -
  • वांछित (Desired) जीन का विलगन (Isolation)
  • वाहक DNA अणु का चयन (Selection)
  • वांछित जीन को वाहक DNA से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु का निर्माण
  • पुनर्योगज DNA को पोषद् (Host) जीवाणु के अंदर प्रवेश कराना
  • पुनर्योगज DNA द्वारा विजातीय जीन (Foreign gene) उत्पाद को प्राप्त करना

चिकित्सा में जैव-प्रौद्योगिकी के उपयोग

DNA पुनर्योगज विधि द्वारा अनेक प्रकार के प्रोटीन हॉर्मोन्स (Protein hormones), प्रतिजैविकों (Antibiotics), एंजाइमों (Enzymes), वैक्सीन (Vaccines), आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। अंततः इनका औद्योगिक स्तर पर औषधियों या अन्य रूपों में मानव हित के लिए उपयोग किया जाता है। इसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों का उपचार किया जा सकता है।

मानव इंसुलिन

इंसुलिन एक लघु प्रोटीन हॉर्मोन है। यह प्रोटीन युक्त हॉर्मोन अग्न्याशय (Pancreas) की बीटा (-) कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है तथा रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा को नियंत्रित करता है। इस हॉर्मोन की अपूर्णता रुधिर में ग्लूकोस का स्तर बढ़ा देती है, परिणामस्वरूप कोशिकाएँ रुधिर से ग्लूकोस नहीं प्राप्त करती हैं। यह मधुमेह रोग (Diabetes mellitus) का कारण बनता है। वर्ष 1955 में फ्रैडेरिक सेंगर (Frederick Sanger) ने ज्ञात किया है कि गाय के अग्न्याशय से प्राप्त इंसुलिन के अणु में दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ 'A' तथा 'B' होती हैं। श्रृंखला 'A' में 21 अमीनो अम्ल तथा श्रृंखला 'B' में 30 अमीनो अम्ल होते हैं। ये श्रृंखलाएँ आपस में डाइसल्फाइड बंधों (S-S bonds) की सहायता से जुड़ी होती हैं। मानव सहित स्तनधारियों में इंसुलिन प्राक्-हॉर्मोन (Pro-hormone) के रूप में संश्लेषित होता है, जिसमें एक अतिरिक्त श्रृंखला होती है, जिसे पेप्टाइड श्रृंखला 'C' कहते हैं। परिपक्वता के दौरान 'C' पेप्टाइड श्रृंखला पृथक् हो जाती है। अतः परिपक्व इंसुलिन में 33 अमीनो अम्ल युक्त 'C' पेप्टाइड नहीं होता है। वर्ष 1982 में मधुमेह के रोगियों के लिए मानव इंसुलिन का सफल उत्पादन किया गया। एली लिली नामक एक अमेरिकन औषधि निर्माण कम्पनी ने 5 जुलाई, 1983 को दो DNA अनुक्रमों को तैयार किया, जो मानव इंसुलिन की श्रृंखला A एवं B के समान थे। इन्होंने आनुवंशिक अभियांत्रिकी या पुनर्योगज DNA तकनीक का उपयोग करके इन जींस को ई. कोलाई जीवाणु में स्थानांतरित करके इंसुलिन श्रृंखलाएँ प्राप्त कीं। इंसुलिन की A व B श्रृंखलाओं को पृथक् रूप से प्राप्त करके, उन्हें डाइसल्फाइड बंधों द्वारा जोड़ दिया गया। इससे उत्पादित इंसुलिन को मानव इंसुलिन (Humulin) कहा।

जीन चिकित्सा

मानव में विभिन्न आनुवंशिक रोगों का कारण त्रुटिपूर्ण जीन (Defective gene) होते हैं। ये त्रुटिपूर्ण या असामान्य जीन त्रुटिपूर्ण एंजाइम्स (Enzymes) का निर्माण करके आनुवंशिक रोगों का कारक बनते हैं। जीन उपचार (Gene therapy) के अंतर्गत मानव शरीर में असामान्य या त्रुटिपूर्ण या विकारी जीन को स्वस्थ जीन से प्रतिस्थापित करके, जीन प्रतिलिपियों की संख्या में वृद्धि करके, आनुवंशिक रोगों से मुक्ति के प्रयास किए जाते हैं। जीन चिकित्सा में निम्न दो स्तरों पर उपयोग किया जाता है -

  • भ्रूण उपचार (Embryo Treatment) इसके अंतर्गत नए स्वस्थ भ्रूण का प्रत्यारोपण कर दिया जाता है, जिससे उसकी आनुवंशिकता भी परिवर्तित हो जाती है।
  • रोगी उपचार (Patient Treatment) इस विधि में पहले जीन के सामान्य युग्मविकल्पी (Alleles) का पृथक्करण करके उसे माध्यम में संवर्धित (Cultured) करते हैं। इस युग्मविकल्पी को फिर रिट्रोविषाणु (Retrovirus) में प्रविष्ट कराया जाता है। तत्पश्चात् रोगी के शरीर से पृथक्कृत कोशिकाओं को इन रिट्रोविषाणुओं से संक्रमित कराया जाता है। सामान्य युग्मविकल्पी सहित विषाणु DNA कोशिकाओं के गुणसूत्र से जुड़ जाता है, जिसे रोगी के शरीर में अंतःक्षेपित (Inject) कर दिया जाता है।
  • जीन उपचार को रिजेनरेटिंग थैरेपी (Regenerating therapy) भी कहते हैं। जीन चिकित्सा का प्रयोग सर्वप्रथम वर्ष 1990 में एक चार वर्षीय लड़की में एंजाइम एडीनोसीन डीएमीनेज की न्यूनता अभाव को दूर करने के लिए किया गया था। यह एंजाइम प्रतिरक्षा तंत्र (Immune system) के सफल कार्यान्वयन हेतु अत्यंत आवश्यक होता है। इसलिए SCID (Severe Combined Immunodeficiency) से ग्रसित जन्में शिशुओं में प्रतिरक्षा तंत्र उपस्थित नहीं होता है, जिससे इनमें संक्रमणों से लड़ने की क्षमता नहीं होती है।
  • आण्विक निदान

    किसी भी रोग के प्रभावकारी उपचार हेतु रोग की प्रारम्भिक पहचान व रोग क्रिया विज्ञान का ज्ञान होना या उसे समझना अत्यंत आवश्यक है। उपचार के परम्परागत तरीकों (रुधिर व मूत्र जाँच) से रोग का प्रारम्भिक अवस्था में पता लगा पाना असंभव है। निम्नलिखित कुछ तकनीकों से रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पहचान की जा सकती है -

  • पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR-Polymerase Chain Reaction) जब जीवाणु व विषाणु कम संख्या में हो, तब PCR द्वारा उनके न्यूक्लिक अम्ल का प्रवर्धन (Amplification) करके उनकी पहचान कर सकते हैं। संदेहप्रद एड्स रोगियों में HIV की उपस्थिति का पता लगाने हेतु PCR तकनीक का प्रयोग किया जाता है। PCR तकनीक का उपयोग संदेहप्रद कैंसर रोगियों के जीन में होने वाले उत्परिवर्तनों (Mutations) का पता लगाने हेतु भी किया जाता है। इस उपयोगी विधि द्वारा अन्य कई आनुवंशिक रोगों का भी पता लगाया जाता है।
  • ब्लॉटिंग तकनीक (Blotting Technique) किसी विशिष्ट DNA, RNA या प्रोटीन की पहचान हेतु ब्लॉटिंग तकनीक का प्रयोग करते हैं। सदर्न ब्लॉटिंग (Southern blotting) DNA, नॉदर्न ब्लॉटिंग (Northern blotting) RNA व वेस्टर्न ब्लॉटिंग (Western blotting) प्रोटीन की पहचान हेतु प्रयुक्त की जाती है। इस विधि में DNA या RNA की एकल श्रृंखला (Single-stranded) से एक विकिरण सक्रिय अणु (Radioactive molecule) युक्त संपरीक्षित्र (Probe) कोशिकाओं से प्राप्त DNA में से अपने पूरक DNA से ही संकरित होता है, जिसे बाद में स्वविकिरणी चित्रण (Autoradiography) की सहायता से पहचाना जाता है। उत्परिवर्तित जीन (Mutant gene) छायाचित्र पटल (Photographic) पर अदृश्य रहते हैं, क्योंकि संपरीक्षित्र व उत्परिवर्तित जीन आपस में एक-दूसरे के पूरक (Complementary) नहीं होते हैं।

पारजीनी जंतु (Transgenic Animal)

ऐसे जंतु, जिन्हें उनके आनुवंशिक संगठन में आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा परिवर्तित (Manipulation) करके विकसित किया गया है अर्थात् वे जंतु, जो विजातीय या बाह्य जीन युक्त होते हैं, पारजीनी या ट्रांसजेनिक या आनुवंशिक रूप से रूपांतरित जंतु (Transgenic animals) कहलाते हैं। -

  • जैव-प्रौद्योगिकी की अद्वितीय खोज, आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा मवेशियों (शूकर, भेड़, बकरी) को एक प्रसंस्करण इकाई के रूप में नियुक्त कर दिया गया है, जो अंगदाता तथा प्रोटीन उत्पादक इकाइयों के जैसे कार्य कर रहे हैं; जैसे-ऊतक प्लाज्मोजन उत्प्रेरक (सक्रियक-TPA) बकरी के दूध से तथा रुधिर थक्का घटक-VIII (Factor-VIII) भेड़ की ईथल (Ewes eithal) से प्राप्त किया जा रहा है।
  • जंतुओं में जीन स्थानान्तरण निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है -
    • - आनुवंशिक रोगों के उपचार में।
    • - जंतुओं द्वारा दुग्ध, माँस, ऊन, आदि के उत्पादन में सुधार हेतु।
    • - अच्छे किस्म के प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों को प्राप्त करने हेतु।
    • - जीनों की संरचना एवं कार्यों के अध्ययन हेतु।
    • - जीन चिकित्सा में उपयोग हेतु।
    • - टीके (Vaccine) की सुरक्षा जाँच हेतु।
    • - क्लोन (Clone) के उत्पादन हेतु।

कृषि में जैव-प्रौद्योगिकी के उपयोग

भोजन मनुष्य की सबसे प्रमुख आवश्यकता है। अतः खाद्य पदार्थों के उत्पादन में जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप खाद्य उत्पादन में अत्यंत वृद्धि हो रही है। इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है -
  • पादपों की उच्च प्रतिरोधिता (High Resistant Capacity of Plants) आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा पादपों की ऐसी प्रजातियाँ विकसित की जा रही हैं, जिनमें सूक्ष्मजीवों; जैसे-विषाणु, कीटों के संक्रमण तथा मिट्टी की लवणीयता, सूखा, आदि को सहने या इनका प्रतिरोध करने की क्षमता होती है।
  • पादप जीनप्रारूप में परिवर्तन (Change in Genotype of Plant) क्लोनिंग द्वारा या पुनर्योगज DNA को पादप जीनप्रारूप में प्रवेश कराकर पादपों की अनेक लाभदायक जातियों में वृद्धि करके हॉर्मोन्स (जैसे-ऑक्सिन, साइटोकाइनिन) के संश्लेषण की दर बढ़ाई जाती है। इस विधि से तम्बाकू, प्याज, टमाटर, मक्का, जौ, गेहूँ, आदि की उत्कृष्ट प्रजातियों का विकास किया गया है।
  • नॉन-लेग्यूमिनस पादपों में नाइट्रोजन- स्थिरीकरण की क्षमता का विकास (Development of Capacity of Nitrogen-Fixation in Non-leguminous Plants) आनुवंशिक यन्त्री निफ जीन को कैल्बीसिएला न्यूमोनिआई (Klebsiella pneumonae) से पृथक् कर ई. कोलाई में इसको स्थापित करके गेहूँ एवं अन्य नॉन-लेग्यूमिनस पादपों में इसके स्थानांतरण का प्रयास कर रहे हैं।
  • पारजीनी या GM फसलें (Transgenic or Genetically Modified Crops) पारजीनी या ट्रांसजेनिक या आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसलें, ऐसी फसलें होती हैं, जिनमें विजातीय या बाहरी जीन का समावेश तथा उसकी अभिव्यक्ति होती है।
आनुवंशिकीय रूपांतरित पादपों के के कुछ उदाहरण निम्न है -

Bt-कपास

बैसिलस थ्यूरिंजिएंसिस Bacillus thuringiensis) जीवाणु की कुछ प्रजातियों द्वारा ऐसे विषाक्त प्रोटीन (जीव विष) का निर्माण किया जाता है, जो विशिष्ट वर्ग के कीटों; जैसे-कोलिऑप्टेरॉन (Choliopteron-शृंग) तथा डीप्टेरॉन (Dipteron-मक्खी-मच्छर) को मारने में सहायक होता है। यह जीवाणु अपने जीवनकाल की विशिष्ट अवस्था में इस विषाक्त प्रोटीन के रखों (Crystals) का निर्माण करता है। ये विषाक्त प्रोटीन स्वयं जीवाणु को नष्ट नहीं करता, क्योंकि यह प्राक्विष (Protoxin) के रूप में निर्मित होता है। इस विषाक्त जीव विष का निर्माण जिस जीन द्वारा किया जाता है, उसे cry जीन नाम दिया गया है तथा निर्मित प्रोटीन को Cry प्रोटीन कहते हैं। जब कोई भी कीट इस पादप को खाता है, तो निष्क्रिय (Incactive) जीव विष कीट की आहारनाल (Alimentary canal) में पहुँचकर क्षारीय pH (Alkaline pH) के कारण अपनी सक्रिय (Active) अवस्था में बदल जाता है, जो इसकी घुलनशील (Soluble) अवस्था होती है। यह सक्रिय विष, कीट की आँत (Intestine) की उपकला (Epithelium) कोशिकाओं के साथ जुड़कर उसमें छिद्र (Pores) का निर्माण कर देता है। इस कारण कोशिकाएँ फट जाती हैं व कीट की मृत्यु हो जाती है। Bt विष भी अनेक प्रकार के होते हैं, जिन्हें अलग-अलग जीनों द्वारा कूटबद्ध (Code) किया जाता है।

सुनहरा चावल

सुनहरा चावल (Oryza sativa) की पारजीनी किस्म है, जिसको आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा उत्पन्न किया गया है। इस किस्म में -कैरोटीन (प्रोविटामिन-A, विटामिन A का निष्क्रिय रूप) सही मात्रा में होता है, जो विटामिन A का मुख्य स्रोत है। ये चावल के दाने, B-कैरोटीन की उपस्थिति के कारण पीले रंग के होते हैं। अतः इन्हें सुनहरा चावल (Golden rice) कहते हैं।

पीड़क प्रतिरोधक तम्बाकू

RNA अंतरक्षेप (RNA interference) विधि द्वारा तम्बाकू के पादपों की जड़ों को संक्रमित करने वाले सूत्रकृमि मेलोइडोगाइनी इन्कोग्नीसीया (Meloidogyne incognitia) नामक पीड़क (Pest) के प्रति प्रतिरोधकता प्रदान की है। इसमें एग्रोबैक्टीरियम (Agrobacterium) संवाहक का उपयोग करके सूत्रकृमि (Nematode) के विशिष्ट जीनों को पादपों में प्रविष्ट कराया गया है। इस कारण पारजीनी पादपों की पीड़कों से सुरक्षा होती है।

जैव-प्रौद्योगिकी का औद्योगिक उपयोग

मनुष्य पुराने समय से दही, पनीर, सिरका, एल्कोहॉल, वाइन, आदि बनाने हेतु जीवाणुओं का उपयोग करता आ रहा है, किंतु आज के समय में आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा नए-नए आनुवंशिक लक्षणों वाले जीवाणुओं का निर्माण करके औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों का संश्लेषण किया जा सकता है। -
  • जैविक पदार्थों का औद्योगिक संश्लेषण आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा उच्च वर्ग के जीवों के लिए जैविक पदार्थों जैसे हॉर्मोन्स, एंजाइम, विटामिन्स, इंटरफेरॉन्स, वैक्सीन, प्रतिजैविक, आदि का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन, रूपांतरित जीवाणुओं की सहायता से किया जा रहा है।
  • औद्योगिक रसायनों का संश्लेषण आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा विभिन्न रसायनों: जैसे-एसीटोन, ग्लिसरॉल, मिथेनॉल, एथेनॉल, सिट्रिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल, एसीटिक अम्ल, आदि का संश्लेषण औद्योगिक स्तर पर किया जा रहा है।
जैवदस्युता या बायोपाइरेसी : विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ (MNCs) या अन्य संगठन जब किसी देश के जैविक संसाधनों का समुचित प्रतिकर भुगतान किए बिना अनाधिकृत रूप से उन संसाधनों का प्रयोग करते हैं, तो यह बायोपाइरेसी (Biopiracy) कहलाता है।

जैव-एकस्व या बायोपेटेंट : एकस्व प्रक्रिया अन्वेषक (Inventor) को एक अधिकार प्रदान करती है, ताकि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसकी खोज का दुरुपयोग न किया जा सकें। विभिन्न देशों में एकस्व (Biopatent) संबंधी कानून अलग-अलग हैं। वर्तमान में यह कानूनी अधिकार जैविक उत्पादों, आनुवंशिकी, अभियांत्रिकी, उत्पादन, आदि के लिए भी अनुमोदित किए जा रहे हैं।

बायोरिएक्टर : व्यावसायिक दृष्टि से वाँछित जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद के अधिक उत्पादन के लिए बायोरिएक्टर (Bioreactor) का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा 100-1000 लीटर तक संवर्धन का संशोधन किया जा सकता है। बायोरिएक्टर एक बड़े पात्र के समान होता है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पादपों, जंतुओं या मानव कोशिकाओं के संवर्धन से प्राप्त कच्चे पदार्थों को जैविक रूप से विशिष्ट उत्पादों तथा एंजाइम्स, आदि में परिवर्तित किया जा सकता है। बायोरिएक्टर वाँछित उत्पाद की प्राप्ति के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ; जैसे-आधारी पदार्थ, ताप, pH, विटामिन, लवण या ऑक्सीजन, आदि उपलब्ध कराता है। विलोडित हौज बायोरिएक्टर (Stirred tank bioreactor) सर्वाधिक उपयोग में आने वाला बायोरिएक्टर है।

Note: 📢
उपरोक्त डाटा में कोई त्रुटि होने या आकड़ों को संपादित करवाने के लिए साथ ही अपने सुझाव तथा प्रश्नों के लिए कृपया Comment कीजिए अथवा आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं, हमारा Email है 👉 upscapna@gmail.com ◆☑️

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A teacher is a beautiful gift given by god because god is a creator of the whole world and a teacher is a creator of a whole nation.

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