पृथ्वी के समस्त जीव-जन्तु, पेड़-पौधे एवं आस-पास का सम्पूर्ण पर्यावरण मिलकर जैवमण्डल का निर्माण करते है। जैवमण्डल के अंतर्गत पृथ्वी के जलमण्डल, वायुमण्डल और स्थलण्डल में रहने वाले सभी जीव (जैविक संघटक) तथा भौतिक पर्यावरण अर्थात अजैविक संघटक को भी सम्मिलित किया जाता है। जैव मण्डल जीवित तथा अजीवित संघटकों का संगम स्थल है अर्थात ये वह व्यापक क्षेत्र है जहां जीव अपने जीवन का निर्वाह आसानी से कर सकते है, वे श्वास ले सकते है, भोजन प्राप्त कर सकते है आदि।
जैवमण्डल एक खुला विवृत तंत्र का उदाहरण है, जिसमे सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, वनस्पति, सूक्ष्म जीव, मनुष्य इत्यादि सम्मिलित हैं। जैविक एवं अजैविक घटक आपस में संबंधित होते हुए एक-दूसरे से परस्पर क्रियाकलाप करते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए प्रकृति निर्माण एवं खाद्य शृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
जैविक एवं अजैविक संघटकों के बीच बिचौलिये (Intermediaries) का काम पेड़-पौधे, वनस्पति और कुछ विशेष सूक्ष्म जीव, शैवाल आदि करते हैं इन्हे उत्पादक (Producers) कहते है।
ये उत्पादक प्रकाश संश्लेषण विधि से ऊर्जा प्राप्त करते हैं तथा पूरे परितंत्र के लिए भोज्य पदार्थ (पोषक तत्व) का निर्माण करते हैं एवं वायु से कार्बन डाई ऑक्साइड भी अवशोषित करते हैं।
जैवमण्डल एवं बायोम |
🔻 बायोम (Biome in Hindi)
- बायोम जीवों, वनस्पतियों, पेड़-पौधों आदि का एक समुदाय है जो एक विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है, अर्थात पृथ्वी पर सभी जीवों, वनस्पतियों इत्यादि सहित सभी प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों को बायोम कहते हैं।
- सागरीय बायोम का निर्धारण कठिन है इसीलिए बायोम के अंतर्गत सामान्यतः स्थलीय भागों के जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सम्मिलित किया जाता है।
- बायोम में पौधों का बायोमास जंतुओं से अधिक होता है, इसीलिए इनका महत्व अत्यधिक हो जाता है।
- पृथ्वी पर प्राणियों और पौधों का सबसे बड़ा जमाव बायोम (Biome) का वितरण मुख्यतः जलवायु से नियंत्रित होता है। स्थलीय पारितंत्र को ही बायोम कहा जाता है, जिसकी सीमाएँ जलवायु व अपक्षय संबंधी तत्त्वों द्वारा निर्धारित होती हैं।
- इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता एवं मिट्टी संबंधी अवयवों को भी शामिल किया जाता है।
- एक बायोम क्षेत्र से दूसरे बायोम में अंतर का मुख्य कारण तापमान एवं आर्द्रता की मात्रा में अंतर होना है। इसी अंतर के कारण पादप एवं जंतुओं के मध्य भी अंतर पाए जाते हैं।
- अलग-अलग जलवायु क्षेत्र में पादप व जंतुओं का विकास अलग-अलग वातावरण में होता है, परिणामस्वरूप दोनों के स्वरूप एवं विकास में अंतर आ ही जाते हैं।
- वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुंड्रा ये सभी स्थलीय पारितंत्र के अंतर्गत आते हैं, ये सभी बायोम के स्थलीय रूप से, जलीय पारितंत्र को पाँचवाँ बायोम कहा जाता है।
संक्रमिका/ईकोटोन (Ecotone in Hindi)
अनुक्रमण (Succession in Hindi)
- क्षीणता (Weakness)
- आक्रमण (Attack)
- प्रतिस्पर्धा (Competition)
- स्थानांतरण (Transfer)
- अनुक्रमण (Succession) की अवधारणा सर्वप्रथम वार्मिंग एवं क्लिमेंट्स द्वारा दी गई थी। अनुक्रमण सैकड़ों या हजारों वर्षों में वानस्पतिक समुदार्यो की रचना और आकार में आने वाली विभिन्नताओं को व्यक्त करता है।
- एक सुनिश्चित क्षेत्र की प्रजाति संरचना में उचित रूप से आकलित परिवर्तन को पारिस्थितिक अनुक्रमण (Ecological Succession) कहते हैं।
- समुदाय और पर्यावरण में पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप जो परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, उससे क्रमशः एक समुदाय के द्वारा प्रतिस्थापित होता है।
- लंबी अवधि के बाद अनुक्रमण की गति मंद पड़ने लगती है और अंततः एक ऐसे समुदाय का आगमन होता है, जो वहाँ के भौतिक पर्यावरण के साथ गतिक संतुलन स्थापित करता है। इस संतुलन को चरम समुदाय (Climax Community) कहते हैं।
- सर्वप्रथम स्थापित समुदाय को अग्रणी / नवीन समुदाय (Pioneer Community) कहते हैं। चरम समुदाय (Climax Community) स्थायी होता है तथा जाति रचना में कोई परिवर्तन नहीं दर्शाता है, जब तक कि पर्यावरणीय स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ जाए।
पारिस्थितकीय अनुक्रमण के प्रकार (Types of ecological succession)
उत्पत्ति के आधार पर क्लिमेंट्स (Clements) ने पारिस्थितिकीय अनुक्रम को दो भागों में बाँटा है-
- प्राथमिक अनुक्रम: इसके अंतर्गत उन क्षेत्रों में विभिन्न क्रमकों (Sere) में वनस्पति समुदाय के विकास को सम्मिलित करते हैं, जहाँ सर्वप्रथम किसी भी पौधे या प्राणी का जनन एवं विकास नहीं हुआ हो। प्राथमिक अनुक्रम (Primary Succession) निम्न स्थानों व परिस्थितियों में होता है। जैसे नवीन लावा प्रवाह (Lava Flow) तथा उसके शीतलन द्वारा नवीन धरातल का निर्माण, हिममंडित क्षेत्रों से हिम के पिघल जाने के कारण शैलों के अनावरण वाला भाग, झील के जल के सूख जाने पर शुष्क झील क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं।
- द्वितीयक अनुक्रम: किसी क्षेत्र में जब प्राथमिक अनुक्रमण से उत्पन्न जैव समुदाय का किन्हीं कारणों से विनाश हो जाता है, तो द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession) द्वारा उस क्षेत्र में नवीन जैव समुदाय विकसित होता है। द्वितीयक अनुक्रमण का कारण मानवीय हस्तक्षेपों (जैसे वनों का काटना या जलाना, झूमिंग कृषि, सड़क निर्माण आदि) द्वारा या प्राकृतिक कारकों; जैसे-बाढ़, हरिकेन, सूखा, भूस्खलन, जलवायु परिवर्तन आदि के द्वारा प्राथमिक जैव समुदाय का विनाश होता है।
पारिस्थितिकीय अनुक्रमण के कारक (Factors of ecological succession)
पारिस्थितिकीय तंत्र में वनस्पति समुदाय का विकास निम्न कारकों द्वारा प्रभावित हुआ है
- जलवायु कारक (Climatic Factor): वर्षा, तापमान, आर्द्रता, स्थानीय स्तर पर तापमान, वर्षा व आर्द्रता की मात्रा को प्रभावित करते हैं।
- जैविक कारक (Biotic Factor): प्राणी तथा मानव का प्रभाव वनस्पति के विकास पर इनका विशेष प्रभाव पड़ता है।
- भौतिक कारक (Physical Factor): इसके अंतर्गत धरातल का स्वरूप ऊँचाई, ढाल आदि आते हैं।
- मृदीय कारक (Soil Factor): इसमें मृदा संरचना, मृदा गठन (Soil Composition), पोषक तत्त्व (Nutrients) जैविक व रासायनिक तत्त्वों की मात्रा आदे को शामिल किया जाता है।
अनुक्रमण की प्रक्रिया (Process of succession)
क्लिमेंट्स (Clements) ने वर्ष 1916 में अनुक्रम की निम्नलिखित प्रक्रियाओं का वर्णन किया है
- न्यूडेशन (Nudation): नवीन समुदाय के आगमन के लिए खाली स्थान प्रदान करने की प्रक्रिया न्यूडेशन कहलाती है। सामान्यतः नवीन जातियों (नव प्रवेश जातियों) में वृद्धि दर अधिक होती है, लेकिन उनकी जीवन अवधि कम होती है।
- प्रवासन/आक्रमण (Invasion): बाहर से अनेक नई जातियों का अनुक्रमण के क्षेत्रों में अनधिकृत प्रवेश प्रवासन या आक्रमण कहलाता है। इस प्रक्रिया में निकट के क्षेत्रों से प्रकीर्णन के विभिन्न माध्यमों से फलों या बीजों की अनेक प्रजातियों का नवीन स्थान पर पहुँचकर अंकुरित होना आस्थापन (Ecesis) कहलाता है।
- स्पर्द्धा (Intra-Specific Competition): जब किसी क्षेत्र में समुदायों का एकत्रीकरण हो जाता है, तब वहाँ स्थान तथा संसाधनों पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। इस कारण यहाँ अंतर्जातीय तथा अंतराजातीय प्रतिस्पर्द्धा होने लगती है। सफल प्रतियोगी शीघ्र ही वहाँ के पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थापित कर लेते हैं और कुछ समुचित परिवर्तन का प्रयास करते हैं।
- प्रतिक्रिया (Reaction): इस चरण में जैविक तथा अजैविक दोनों घटकों के मध्य प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। पर्यावरण में निरंतर होने वाला परिवर्तन इसी का प्रतिफल (Result) है।
- चरम अवस्था (Climax Stage): पारिस्थितिकी अनुक्रम की प्रक्रिया की सबसे अंतिम अवस्था, चरम अवस्था होती है, जहाँ जैविक समुदाय पर्यावरण से काफी स्वस्थ सामंजस्य अथवा अनुकूलन स्थापित कर लेते हैं। इस अवस्था को पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance) के लिए आवश्यक माना जाता है। चरम अवस्था की स्थापना में जलवायु का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है।
पारिस्थितिकीय अनुकूलन (Ecological adaptation)
- पारिस्थितिकीय अनुकूलन (Ecological Adaptation) का तात्पर्य मानव का अपने प्राकृतिक या भौतिक वातावरण के साथ सामंजस्य से है। इस भौतिक वातावरण के अंतर्गत जैविक एवं अजैविक दोनों अवयव शामिल हैं।
- मानव का पारिस्थितिकी के साथ सामंजस्य दो तरीके से होता है-
1. अनुकूलन (Adaptation): इसका तात्पर्य अपने वातावरण के अनुसार, स्वयं को परिवर्तित (Self-Modification) करने से है। अनुकूलन के दो प्रकार हैं- (i) आंतरिक अनुकूलन तथा (ii) बाह्य अनुकूलन
2. संशोधन (Modification): जीवन को सरल बनाने हेतु जब मानव अपने वातावरण को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढाल लेता है, तो यह संशोधन कहलाता है। अत्यधिक गर्म प्रदेशों में एसी तथा फ्रिज का उपयोग संशोधन का परिणाम है।