हमारे दैनिक जीवन में, हम अक्सर देखते हैं कि स्थिर या गतिशील वस्तुओं को संतुलित रखने या उन्हें उनकी गति में परिवर्तित करने के लिए हमें कई प्रयासों की आवश्यकता होती है। अक्सर यह होता है कि हमें किसी वस्तु को उसकी स्थिति से हटाने के लिए उसे खींचना, धकेलना, या ठोकर लगाना पड़ता है, ताकि हम उसे वांछित गति में ला सकें या उसकी गति को रोक सकें।
वस्तु को खींचने, धकेलने या ठोकर लगाने के लिए और वस्तु को रोकने की इसी क्रिया पर बल (Force) की अवधारणा आधारित है। हम अपने दैनिक जीवन में इसे अनेक बार अनुभव करते हैं, जैसे कि एक द्वार को खोलने के लिए हमें खींचना या एक ठोस वस्तु को हिलाने के लिए हमें धकेलना पड़ता है। यह साधारण लग सकता है, लेकिन इसके पीछे बल की वैज्ञानिक अवधारणा छिपी होती है।
Force and Newton's laws of motion in Hindi |
बल की परिभाषा और प्रभाव
- वह बाह्य कारक (धक्का/खिंचाव) जो किसी पिंड के रूप व आकार या स्थिति को परिवर्तित कर सकता है, बल (Force) कहलाता है।
- हमारे दैनिक जीवन में बल का उपयोग किसी पिंड या वस्तु को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान तक ले जाने में किया जाता है।
- साधारणतः "बल वह धक्का अथवा खिंचाव होता है जो किसी वस्तु में गति या विराम की अवस्था में परिवर्तन ला सकता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है।" बल एक सदिश राशि है और इसका SI मात्रक न्यूटन तथा CGS मात्रक डाइन होता है। बल का एक अन्य मात्रक किलोग्राम-भार भी है।
बल के प्रकार
मुख्य रूप से बल को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।
- संपर्क बल
- असंपर्क बल
संपर्क बल
दो वस्तुओं के वास्तविक संपर्क में आने पर जो बल कार्य करते हैं, संपर्क बल (Contact force) कहलाते हैं। उदाहरण-घर्षण बल, श्यान बल, पेशीय बल, आदि।
(i) पेशीय बल (Muscular force): यह बल हमारे शरीर की माँसपेशियों द्वारा लगता है। हमारी माँसपेशियों की क्रियास्वरूप (Action format) लगने वाले बल को पेशीय बल कहते हैं। पशु भी अपने शारीरिक क्रियाकलापों तथा अन्य कार्यों को करने के लिए पेशीय बल का उपयोग करते हैं।
(ii) घर्षण बल (Frictional force): जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु की सतह पर फिसलती है या ऐसा करने का प्रयास करती है, तो उनके बीच लगने वाले बल को घर्षण बल कहते हैं।
असंपर्क बल
ऐसे बल जिनमें दो वस्तुओं के बीच संपर्क करने की आवश्यकता नहीं होती है, असंपर्क बल (Non-contact force) कहलाते हैं। उदाहरण-गुरुत्वाकर्षण बल, चुंबकीय बल, दो आवेशों के बीच स्थैतिक बल, आदि।
(i) चुंबकीय बल (Magnetic force): चुंबकों के समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। एक चुंबक दूसरे चुंबक पर बिना संपर्क में आये ही बल लगा सकता है, चुंबकीय बल असंपर्क बल का एक उदाहरण है।
(ii) स्थिर वैद्युत बल (Electrostatic force) एक आवेशित वस्तु द्वारा किसी दूसरी आवेशित अथवा अनावेशित वस्तु पर लगाया गया बल स्थिर वैद्युत बल कहलाता है। वस्तुओं के संपर्क में न होने पर यह बल कार्य करता है, इसलिए स्थिर वैद्युत बल असंपर्क बल का एक अन्य उदाहरण है।
(iii) गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force): वस्तुएँ पृथ्वी की ओर गिरती हैं, क्योंकि वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती है, इस बल को गुरुत्व बल या केवल गुरुत्व कहते हैं। यह एक आकर्षण बल है, गुरुत्व बल प्रत्येक वस्तु पर लगता है। गुरुत्व बल के कारण ही नदियों का पानी नीचे की ओर बहता है। ब्रह्मांड में सभी वस्तुएँ (छोटी व बड़ी) अन्य वस्तुओं पर बल लगाती हैं, तब यह आकर्षण बल गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है।
(iv) नाभिकीय बल (Nuclear force): प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों के बीच लगने वाला आकर्षण बल नाभिकीय बल कहलाता है, यह सबसे शक्तिशाली बल होता है। नाभिक के स्थायित्व (Stability) के लिए यह बल उत्तरदायी है। नाभिकीय बल लघु-परास बल है।
जड़त्व (Inertia)
- जड़त्व (Inertia) शब्द की उत्पत्ति जड़ता शब्द से हुई है जिसका अर्थ स्थिरता या अपरिवर्तनियता है।
- प्रत्येक वस्तु अपनी विराम अवस्था या गति की अवस्था में ही बने रहना चाहती है और अपनी स्थिति में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है। इसे जड़त्व का नियम (Law of inertia) कहते हैं।
- वस्तु के इस गुण को गैलीलियो (Galileo) ने जड़त्व का नाम दिया।
- अतः जड़त्व किसी वस्तु का वह गुण है, जिसके कारण वह अपनी विरामावस्था अथवा एकसमान गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है।
1. विराम का जड़त्व
वस्तु का वह गुण जिस कारण वह अपनी विराम अवस्था में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, विराम का जड़त्व (Inertia of rest) कहलाता है। उदाहरण-
- बस के अचानक चलने पर उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर गिर पड़ते हैं, इसका कारण यह है कि बस अथवा रेलगाड़ी के अचानक चलने पर यात्री के शरीर का निचला भाग जो बस या रेलगाड़ी के संपर्क में है, शीघ्र ही बस अथवा रेलगाड़ी के साथ गति कर देता है, परंतु शरीर का ऊपरी भाग जो बस या रेलगाड़ी के संपर्क में नहीं है, अपने विराम के जड़त्व के कारण विराम अवस्था में ही बना रहता है जिस कारण यात्री पीछे की ओर गिर पड़ते हैं।
- कंबल को हाथ में पकड़कर डंडे से पीटने पर धूल के कण अलग हो जाते हैं, इसका कारण यह है कि कंबल को हाथ में पकड़कर डंडे से पीटने पर कंबल में गति उत्पन्न हो जाती है तथा धूल के कण विराम के जड़त्व के कारण अपने स्थान पर ही रहते हैं और कंबल से अलग हो जाते हैं।
- पेड़ की शाखाओं को तेजी से हिलाने पर उसके फल नीचे गिर पड़ते हैं, इसका कारण यह है कि पेड़ की शाखाओं को तेजी से हिलाने पर वे गति की अवस्था में आ जाती हैं, परंतु उन पर लगे फल विराम के जड़त्व के कारण अपने स्थान पर विराम अवस्था में बने रहते हैं तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गिर पड़ते हैं।
2. गति का जड़त्व
वस्तु का वह गुण जिस कारण वह अपनी एकसमान गति में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, गति का जड़त्व (Inertia of motion) कहलाता है। उदाहरण-
- चलती हुई बस के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं, इसका कारण यह है कि चलती हुई बस या रेलगाड़ी में यात्री भी गाड़ी की चाल से गति करता है। बस या रेलगाड़ी के अचानक रुकने पर यात्री के शरीर का निचला भाग जो गाड़ी के संपर्क में है गाड़ी के साथ तेजी से रुक जाता है, परंतु शरीर का ऊपरी भाग गति के जड़त्व के कारण उसी चाल से गति करता रहता है जिस कारण यात्री आगे की ओर झुक जाता है।
- तेज दौड़ते घोड़े के अचानक रुक जाने पर घुड़सवार आगे की ओर गिरता है, इसका कारण यह है कि जब घोड़ा तेजी से दौड़ता है, तो घोड़ा तथा घुड़सवार एक चाल से गति करते हैं। घोड़े के अचानक रुक जाने पर भी घुड़सवार गति के जड़त्व के कारण आगे की ओर गति करता रहता है, जिससे घुड़सवार आगे की ओर गिर जाता है।
- बस की छत पर रखे सामान को रस्सी से बाँध देते हैं, इसका कारण यह है कि जब चलती बस अचानक रुकती है, तो बस की छत पर रखा सामान गति के जड़त्व के कारण आगे की ओर गति करता रहता है, इसलिए सामान की सुरक्षा के लिए उसे रस्सी से बाँध देते हैं।
3. दिशा का जड़त्व
वस्तु का वह गुण जिस कारण वह अपनी गति की दिशा में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, विशां का जहत्य (Inertia of direction) कहलाता है। उदाहरण-
- तेज गति से चलती बस किसी वक्राकार मोड़ पर मुड़ती है, तो यात्री मोड़ के केंद्र से बाहर की ओर झुक जाते हैं, इसका कारण यह है कि जब तेज गति से चलती बस वक्राकार मोड़ पर मुड़ती है, तो उसमें बैठे यात्री दिशा के जड़त्व के कारण पहली दिशा में ही गति करते रहते हैं जिस कारण मोड़ के केंद्र से बाहर की ओर झुक जाते हैं।
- गाड़ी के टायर के संपर्क में आए कीचड़ के कणों से बचने के लिए मडगार्ड लगाए जाते हैं, इसका कारण यह है कि गाड़ी के टायर के संपर्क में आए कीचड़ के कण अपनी दिशा के जड़त्व के कारण अपनी स्पर्श रेखीय चाल की दिशा में गति करते हैं तथा वाहन को गंदा करते हैं, जिससे बचने के लिए मडगार्ड लगाए जाते हैं।
- यदि पत्थर को डोरी से बाँधकर क्षैतिज वृत्तीय पथ में घुमाएँ, तब डोरी टूटने पर पत्थर स्पर्श रेखीय दिशा में गति करता है, इसका कारण यह है कि वृत्तीय पथ के किसी भी बिंदु पर पत्थर की चाल स्पर्श रेखीय दिशा में होती है। डोरी का तनाव उसे वृत्तीय पथ पर गति प्रदान करता है। डोरी के टूटने पर डोरी का तनाव शून्य हो जाता है। अतः अब पत्थर वृत्तीय पथ पर गति न करके अपनी दिशा के जड़त्व के कारण, स्पर्श रेखीय दिशा में गति करता है।
- चाकू की धार तेज करते समय घूमते पहिए के संपर्क में लाने पर उत्पन्न चिंगारियाँ स्पर्श रेखीय दिशा में गति करती हैं, इसका कारण यह है कि चिंगारियाँ दिशा के जड़त्व के कारण अपनी स्पर्श रेखीय चाल की दिशा में गति करती हैं।
जड़त्व (Inertia) तथा द्रव्यमान (Mass)
संवेग (Momentum)
किसी वस्तु का संवेग (Momentum) p उसके द्रव्यमान 'm' और वेग 'v' के गुणनफल से परिभाषित किया जाता है।
p = mv
संवेग में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं। इसकी दिशा वही होती है जो वेग की होती है। इसका मात्रक किलोग्राम मीटर/सेकण्ड होता है।
संवेग पर आधारित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
- मान लीजिए एक कम भार का वाहन (जैसे छोटी कार) तथा एक अधिक भार का वाहन (जैसे सामान से लदा ट्रक) दोनों ही किसी क्षैतिज सड़क पर खड़े हैं। हम सभी भली-भाँति जानते हैं कि समान समयांतराल में दोनों वाहनों को समान चाल से गति कराने में कार की तुलना में ट्रक को धकेलने के लिए अपेक्षाकृत अधिक बल की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार, यदि एक हल्का पिंड तथा एक भारी पिंड दोनों समान चाल से गतिमान हैं, तो समान समयांतराल में दोनों पिंडों को रोकने में हल्के पिंड की तुलना में भारी पिंड में अपेक्षाकृत अधिक परिमाण के विरोधी बल की आवश्यकता होती है।
- यदि दो पत्थर, एक हल्का तथा दूसरा भारी, एक ही भवन के शिखर से गिराए जाते हैं, तो धरती पर खड़े किसी व्यक्ति के लिए भारी पत्थर की तुलना में हल्के पत्थर को पकड़ना आसान होता है। इस प्रकार किसी पिंड की संहति एक महत्त्वपूर्ण प्राचल (Parameter) है, जो गति पर बल के प्रभाव को निर्धारित करती है।
आवेग (Impulse)
जब किसी वस्तु पर बड़े परिमाण का बल अत्यंत अल्प समय के लिए कार्य करे तथा जिसके प्रभाव से वस्तु के संवेग में अत्यधिक परिवर्तन हो, तो ऐसा बल आवेगीय बल (Impulsive force) कहलाता है। आवेगीय बल तथा समयांतराल के गुणनफल को बल का आवेग (Impulse, I) कहते हैं।
बल का आवेग, I₁ = F. Δt
जहाँ, आवेगीय बल (F) तथा समयान्तराल (At) है।
आवेग एक सदिश राशि है, इसकी दिशा बल की दिशा में होती है तथा इसका SI मात्रक न्यूटन-सेकण्ड होता है।
दैनिक जीवन में आवेग के उदाहरण
दैनिक जीवन में आवेग के उदाहरण निम्नलिखित हैं -
- वाहनों का असमतल मार्ग पर चलने से झटका लगना: जब कोई दुपहिया या चारपहिया वाहन एक असमतल मार्ग पर चलता है, तो इस पर काफी झटके लगते हैं, आघात अवशोषकों (Shock absorbers) के प्रयोग से झटकों (Jerks) का अंतरल बढ़ जाने के कारण आवेगी बल घट जाता है। फलतः इन गाड़ियों में बैठे यात्रियों को कम-से-कम झटके महसूस होते हैं।
- ऊँचाई से कूदने पर चोट का लगना: जब हम किसी ऊँचाई से पक्के फर्श पर कूदते हैं, तो फर्श द्वारा हमारे पैर को दिए गए आवेग के कारण हमारा संवेग यकायक शून्य हो जाएगा। यह आवेग अधिक बल का होगा, जिससे हमारे पैर में चोट लग जाएगी। लेकिन यदि हम फर्श पर मिट्टी अथवा गद्दा बिछा लें, तो हमारे पैर उसमें धँसेंगे तथा संवेग के शून्य होने में कुछ देर लगेगी। अतः अब हमारे पैर को उतना ही आवेग एक छोटे बल से मिलेगा जिससे कि पैर में चोट नहीं आएगी।
- मिट्टी के बर्तन या अन्य सामान को टूटने से बचाने के लिए घास का प्रयोग करना: चीनी मिट्टी के बर्तनों को कागज या घास-फूस के टुकड़ों में पैक (Pack) करते हैं, क्योंकि गिरने की स्थिति में, घास-फूस या कागज के कारण आवेग, चीनी मिट्टी के बर्तनों तक पहुँचने में अधिक समय लेता है। जिससे बर्तनों पर लगने वाला बल कम हो जाता है, अतः इनके टूटने की संभावना कम हो जाती है।
न्यूटन के गति विषयक नियम (Newton's laws of motion)
गति विषयक नियमों की जानकारी सर्वप्रथम आइजक न्यूटन ने वर्ष 1687 में - अपनी पुस्तक मैथेमेटिसया प्रिंसिपिया में प्रतिपादित किया था। जिनकी संख्या 03 थी, जिन्हे न्यूटन के गति विषयक नियम भी कहा जाता है।
न्यूटन के गति का प्रथम नियम (Newton's First Law of Motion)
- इस नियम के अनुसार " यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी और यदि वह एकसमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है तो वैसे ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए। इसे 'गैलीलियो का नियम' भी कहते है।
- वस्तुओं की इस प्रवृति को कि वे स्वतः (बिना बाह्य बल लगाए) अपनी विराम अथवा गति की अवस्था को नहीं बदल सकीं, 'जड़त्व' (Inertia) कहते है। इसी कारण गैलीलियों के नियम को 'जड़त्व का नियम' (Law fo Inertia) भी कहते है।
- इस प्रकार बल वह बाह्य कारक है जिसके द्वारा किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है। अतः प्रथम नियम बल की एक परिभाषा प्रदान करता है।
प्रथम नियम से संबंधित प्रमुख उदाहरण
- ठहरी हुई मोटर या रेलगाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर गिर पड़ते हैः यात्री के शरीर का निचला भाग गाड़ी के सम्पर्क में होने के कारण गाड़ी के चलने पर तुरन्त ही चल पड़ता है, परन्तु ऊपरी भाग जड़त्व के कारण अभी वही ठहरा रहना चाहता है, इसलिए पीछे रह जाता है। इसी प्रकार चलती हुई गाड़ी पर चढ़ने वाले यात्री के पैर गाड़ी पर चढ़ते ही गतिशील हो जाते है परन्तु शरीर अभी विराम अवस्था में ही रहता है, जिसके कारण यात्री पीछे की और गिर पड़ता है। अतः चलती गाड़ी पर चढ़ने से पहले यात्री को कुछ दूर गाड़ी की दिशा में दौड़ना चाहिए।
- चलती हुई कार या गाड़ी के अचानक रूकने पर उसमें बैठे यात्री आगे को झुक जाते है: मोटरकार के रूकने पर उसके फर्श तथा उस पर टिके यात्रियों के पैर तुरन्त ठहर जाते है परन्तु शरीर का शेष भाग जडत्व के कारण अभी गतिशील रहता है। इसलिए यात्री आगे की ओर झुक जाते है। यही कारण है कि तेज दौड़ता हुआ घोड़ा जब अचानक रूक जाता है, तो उस पर असावधान बैठा हुआ सवार आगे की ओर झुक जाता है। इसी प्रकार जब कोई यात्री जल्दी में। चलती हुई गाड़ी से उतरता है तो वह आगे की ओर गिर पड़ता है। उसके पैर पृथ्वी । को छूते ही विरामावस्था में आ जाते है परन्तु शरीर का ऊपरी भाग उसी वेग से चलने का प्रयत्न करता है। अतः वह गाड़ी की चलने की दिशा में ही गिर पड़ता है। इसीलिए चलती गाड़ी से उतरने पर यात्री को थोड़ी दूर गाड़ी के साथ-साथ दौड़ना चाहिए। ऐसा करके यात्री अपनी मांसपेशियों द्वारा उपयुक्त बल लगाकर पूरे शरीर को एक साथ रोक लेता है। यदि किसी गाडी में बैठे है व गाड़ी अचानक दाई ओर को मुड़ जाती है तो, पैर गाड़ी के साथ-साथ दाई दिशा में वेग ले लेते है परन्तु शरीर का ऊपरी भाग अभी पहली दिशा में ही गतिमान रहता है। अतः शरीर विपरीत दिशा में झुक जाता है।
- कम्बल को हाथ में पकड़कर डंडे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिरते है: डण्डे से पीटने से कम्बल तो गतिमान हो जाता है, परन्तु धूल के कण जड़त्व के कारण वही ठहरे रहते है। अतः कण कम्बल से अलग हो जाते है तथा अपने भार के कारण गिर पडते है। यही कारण है कि पेड़ हिलाने से उसके फल टूटकर नीचे गिरने लगते है।
न्यूटन के गति का दूसरा नियम (Newton's Second Law of Motion)
- किसी वस्तु के संवेग-परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के अनुक्रमानुपाती होती है, तथा संवेग-परिवर्तन आरोपित बल की दिशा में ही होता है। इस नियम को एक अन्य रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है। किसी वस्तु पर आरोपित बल F उस वस्तु के द्रव्यमान 'm' तथा उस वस्तु में बल की दिशा में उत्पन्न - त्वरण 'a' के गुणनफल के बराबर होता है।
- इस समीकरण में यदि F = 0 हो तो a = 0 (क्योंकि शून्य नहीं है), अर्थात् यदि वस्तु पर बाह्य बल न लगाया जाए तो वस्तु में त्वरण भी उत्पन्न नहीं होगा। त्वरण के शून्य होने का अर्थ वस्तु या तो विराम अवस्था मे ही रहेगी या 'नियत' वेग से चलती रहेगी। इस प्रकार न्यूटन का प्रथम नियम (गैलीलियों का नियम) दूसरे नियम का ही एक अंग है।
न्यूटन के गति का तृतीय नियम (Newton's Third Law of Motion)
इस नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। इसे क्रिया-प्रतिक्रिया नियम भी कहते है। यदि F1 क्रिया बल तथा F2 प्रतिक्रिया बल हो तो F2 = F1
उदाहरण - बंदूक से गोली चलाने पर पीछे की तरफ धक्का लगना, रॉकेट प्रक्षेपण, नाव से किनारे पर उतारने पर नाव का पीछे के तरफ खिसकना इत्यादि।