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भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as a Discipline)

भूगोल का अध्ययन 19वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। जर्मन भूगोलवेत्ता ए.बी. हम्बोल्ट और कार्ल रिटर ने इस विषय को पथ प्रदर्शक के रूप में वर्णित किया।

भूगोल का अर्थ है पृथ्वी का वर्णन, अंग्रेजी में भूगोल को 'Geography' कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है - "पृथ्वी और उसके ऊपर की सभी वस्तुओं का विवरण या वर्णन"। 

Geography शब्द इरेटॉस्थेनीज ने 276-194 ई.पू. में पहली बार प्रयोग किया था। इस शब्द का उत्पत्ति ग्रीक भाषा के 'Geo' (पृथ्वी) और 'Grophos' (वर्णन) से हुआ है। जब इन दोनों को एक साथ रखा जाता है, तो इसका अर्थ होता है - "पृथ्वी का वर्णन"

भूगोल का अध्ययन 19वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। जर्मन भूगोलवेत्ता ए.बी. हम्बोल्ट और कार्ल रिटर ने इस विषय को पथ प्रदर्शक के रूप में वर्णित किया।

भूगोल प्रकृति और मानव के संबंधों का अध्ययन करता है। प्रकृति मानव के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है, और उसकी छाप उसके वस्त्र, आवास, और व्यवसाय पर दिखाई जा सकती है।

Geography first chapter in Hindi
भूगोल: एक परिचय

🌎 भूगोल की परिभाषाएँ (Definitions of geography)

  • रिचर्ड हार्टशोर्न के अनुसार, "भूगोल का उद्देश्य धरातल की प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का वर्णन एवं व्याख्या करना है।"
  • अलफ्रेड हैटनर के अनुसार, "भूगोल धरातल के विभिन्न भागों में कारणात्मक रूप से संबंधित तथ्यों में भिन्नता का अध्ययन करता है।"

🏝️ मानव पर्यावरण संबंध के रूप में भूगोल (Geography as Human Environment Relationship)

20वीं शताब्दी के प्रारंभ में भूगोल, मानव और पर्यावरण के पारस्परिक संबंधों के रूप में विकसित हुआ। इसे लेकर दो पृथक् विचारधाराएँ थीं, जो इस प्रकार हैं-

  • नियतिवाद (Determinism) इसके अनुसार मानव के सभी कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं, इस विचारधारा के समर्थक रेटजेल तथा ई. हंटिंग्टन थे।
  • संभावनावाद (Possibilism) इसके अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने में समर्थ होते हैं, इसके अंतर्गत मानव ने समय के अनुसार पर्यावरण एवं प्राकृतिक बलों को समझा तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का विकास किया, इस विचारधारा के समर्थक वाइडल-डि-ला ब्लाश तथा एस. फैबद्रे थे।

मानव-पर्यावरण संबंध से संबंधित अन्य अवधारणाएँ

  • पर्यावरणीय निश्चयवाद (Environmental Determinism): आरंभ में मानव प्रकृति की शक्तियों से अत्यधिक प्रभावित हुआ और समय के साथ स्वयं को प्रकृति के आदेशों के अनुरूप समायोजित कर लिया इसी क्रिया को पर्यावरणीय निश्चयवाद की संज्ञा दी जाती है।
  • नव निश्चयवाद (Neo Determinism): भूगोलवेत्ता ग्रिफिथ टेलर ने पर्यावरणीय निश्चयवाद तथा संभववाद के बीच मध्य मार्ग की एक नवीन संकल्पना को प्रस्तुत किया, जिसे नवनिश्चयवाद या रुको और जाओ निश्चयवाद (Stop and Go Determinism) कहा गया।

🌎 भूगोल की शाखाएँ (Branches of Geography)

भूगोल अध्ययन का एक अंतर्शिक्षण (Interdisciplining) विषय है। प्रत्येक विषय का अध्ययन कुछ उपागमों के अनुसार किया जाता है। भूगोल के अध्ययन के दो उपागम इस प्रकार हैं-

  1. क्रमबद्ध उपागम 
  2. प्रादेशिक उपागम

1) क्रमबद्ध उपागम (Systematic Approach)

  • क्रमबद्ध उपागम (Systematic Approach) वही होता है, जो सामान्य भूगोल का होता है।
  • यह जर्मन भूगोलवेत्ता अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (1769-1859 ई.) द्वारा प्रवर्तित किया गया।
  • इसमें एक तथ्य का पूरे विश्व स्तर पर अध्ययन किया जाता है; तत्पश्चात् क्षेत्रीय स्वरूप के वर्गीकृत प्रकारों की पहचान की जाती है।
विषय-वस्तुगत या क्रमबद्ध उपागम पर आधारित भूगोल की शाखाएँ निम्नलिखित हैं-

types of geography in hindi

भौतिक भूगोल (Physical Geography)

  • भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology): यह भू आकृतियों, उनके क्रम विकास एवं संबंधित प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
  • जलवायु विज्ञान (Climatology): इसके अंतर्गत वायुमंडल की संरचना, मौसम तथा जलवायु के प्रकार तथा जलवायु प्रदेश का अध्ययन किया जाता है।
  • जल विज्ञान (Hydrology): यह धरातल के जल परिमंडल जिसमें समुद्र, नदी, झील तथा अन्य जलाशय सम्मिलित हैं तथा उसका मानव सहित विभिन्न प्रकार के जीवों एवं उनके कार्यों पर प्रभाव का अध्ययन करता है।
  • मृदा भूगोल (Soil Geography): यह मिट्टी निर्माण की प्रक्रियाओं, मिट्टी के प्रकार, उनका उत्पादकता स्तर, वितरण एवं उपयोग आदि का अध्ययन करता है।

मानव भूगोल (Human Geography)

  • आर्थिक भूगोल (Economic Geography): यह मानव की आर्थिक क्रियाओं; जैसे-कृषि, उद्योग पर्यटन, व्यापार एवं परिवहन, अवस्थापना तत्त्व तथा सेवाओं का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक/सांस्कृतिक भूगोल (Social Cultural Geography): इसके अंतर्गत समाज तथा इसकी स्थानिक/प्रादेशिक गत्यात्मकता एवं समाज के योगदान से निर्मित सांस्कृतिक तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • जनसंख्या एवं अधिवास भूगोल (Population and Settlement Geography): यह ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि, उसका वितरण, घनत्व, लिंग अनुपात, प्रवास एवं व्यावसायिक संरचना आदि का अध्ययन करता है, जबकि अधिवास भूगोल में ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों के वितरण प्रारूप तथा अन्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।
  • ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography): यह उन ऐतिहासिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जो क्षेत्र को संगठित करती हैं। प्रत्येक प्रदेश वर्तमान स्थिति में आने के पूर्व ऐतिहासिक अनुभवों से गुजरता है। भौगोलिक तत्त्वों में भी सामयिक परिवर्तन होते रहते हैं और इसी की व्याख्या ऐतिहासिक भूगोल का ध्येय है।
  • राजनीतिक भूगोल (Political Geography): यह प्रत्येक क्षेत्र को राजनीतिक घटनाओं की दृष्टि से देखता है एवं सीमाओं के निकटस्थ पड़ोसी इकाइयों के मध्य भू-वैन्यासिक संबंध, निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन एवं चुनाव परिदृश्य का विश्लेषण करता है। साथ ही जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए सैद्धांतिक रूप रेखा विकसित करता है।

जीव भूगोल (Bio Geography)

भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल के अंतरापृष्ठ (Interface) के फलस्वरूप जीव भूगोल का अभ्युदय हुआ। इसके अंतर्गत निम्नलिखित शाखाएँ सम्मिलित हैं-

  • वनस्पति भूगोल (Plant Geography): यह प्राकृतिक वनस्पति का उसके निवास क्षेत्र में स्थानिक प्रारूप का अध्ययन करता है।
  • पर्यावरण भूगोल (Environmental Geography): संपूर्ण विश्व में पर्यावरणीय प्रतिबोधन के फलस्वरूप पर्यावरणीय समस्याओं; जैसे-भूमि हास, प्रदूषण, संरक्षण की चिंता आदि का अनुभव किया गया, जिसके अध्ययन हेतु इस शाखा का विकास हुआ।
  • पारिस्थैतिक विज्ञान (Ecology): इसमें प्रजातियों के निवास/ स्थिति क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

2) प्रादेशिक उपागम (Regional Approach)

  • प्रादेशिक उपागम (Regional Approach) का विकास हम्बोल्ट के समकालीन जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर (1779-1859 ई.) द्वारा किया गया। इसमें विश्व को विभिन्न पदानुक्रमिक स्तर के प्रदेशों में विभक्त किया जाता है और फिर एक विशेष प्रदेश में सभी भौगोलिक तयों का अध्ययन किया जाता है।
human geography in hindi

भूगोल की अन्य प्रमुख शाखाएँ

  • वृहद्, मध्यम, लघुस्तरीय प्रादेशिक/क्षेत्रीय अध्ययन।
  • ग्रामीण/क्षेत्र नियोजन तथा शहर एवं नगर नियोजन सहित प्रादेशिक नियोजन।
  • प्रादेशिक विकास
  • प्रादेशिक विवेचना/विश्लेषण
दो ऐसे पक्ष हैं, जो सभी विषयों के लिए उभयनिष्ठ/सर्वनिष्ठ हैं; ये हैं-

दर्शन (Philosophy)

  • भौगोलिक चिंतन
  • भूमि एवं मानव अंतर्प्रक्रिया / मानव पारिस्थितिकी।

विधितंत्र एवं तकनीकी (Method and Technique)

  • सामान्य एवं संगणक आधारित मानचित्रण।
  • परिमाणात्मक तकनीक / सांख्यिकी तकनीक।
  • क्षेत्र सर्वेक्षण विधियाँ
  • भू-सूचना विज्ञान तकनीक, जैसे-दूर संवेदन तकनीक, भौगोलिक सूचना तंत्र, वैश्विक स्थितीय तंत्र।
  • इस प्रकार उपर्युक्त विवरण भूगोल की शाखाओं की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

🌎 भौतिक भूगोल तथा उसका महत्व (Physical geography and its importance)

    भौतिक भूगोल में भूमंडल (Lithosphere), वायुमंडल (Atmosphere), जलमंडल (Hydrosphere), जैवमंडल (Biosphere) इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।

    • भूमंडल: इसमें भू-आकृतियाँ (Landforms), प्रवाह (Drainage), उच्चावच (Relief) इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
    • वायुमंडल: इसमें उसकी बनावट (Its Composition), संरचना (Structure), तत्त्व (Elements) एवं मौसम तथा जलवायु, तापक्रम, वायुदाब, वायु, वर्षा, जलवायु प्रकार इत्यादि का अध्ययन होता है।
    • जैवमंडल: इसमें जीव के स्वरूप-मानव तथा वृहद् जीव एवं उनके पोषण प्रक्रम जैसे-खाद्य श्रृंखला पारिस्थितिकीय प्राचल (Ecological Parameters) एवं पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance) का अध्ययन किया जाता है।
    • उपर्युक्त में निम्नलिखित तत्त्वों का महत्त्व निम्नलिखित है- 
      • मिट्टियाँ: ये मृदा निर्माण प्रक्रिया (Process of Pedogenesis) से निर्मित होती हैं। वे मूल चट्टान, जैविक प्रक्रिया एवं कालावधि (Time) पर निर्भर करती हैं। कालावधि मिट्टियों को परिपक्वता प्रदान करती है। यह मृदा पार्श्विकता (Soil Profile) के विकास में सहायक होती है।
      • मृदा, एक नवीकरणीय/पुनः स्थापनीय (Renewable) संसाधन है, जो अनेक आर्थिक क्रियाओं विशेषकर कृषि को प्रभावित करती है। मृदा पौधों, पशुओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं के धारक जीवमंडल के लिए आधार प्रदान करती है।
      • भू-आकृतियाँ: यह मानव क्रियाओं हेतु आधार प्रदान करती हैं। मैदानों का प्रयोग कृषि कार्य के लिए होता है। पठारों में वन तथा खनिज संपदा विकसित होते हैं। पर्वत, चरागाहों, पर्यटक स्थलों के रूप में देखे जाते हैं तथा नदियों को जल यहीं से प्राप्त होता है।
      • जलवायु: यह घरों के प्रकार, वस्त्र तथा भोजन को प्रभावित करती है। इसका वनस्पति, शस्य स्वरूप, पशुपालन इत्यादि पर अधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य ने ऐसी तकनीकों का विकास किया है, जिससे सीमित क्षेत्र में जलवायु को अपरिवर्तित (Modify) किया जा सकता है।
      • तापमान तथा वर्षा: ये वनों के घनत्व एवं घास मैदानों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करते हैं। भारत में मानसूनी वर्षा कृषि आवर्तन (Rhythm in Motion) प्रणाली को गति प्रदान करती है।
      • वर्षा भूमिगत जल-धारक प्रस्तर (Aquifer) को पुनरावेशित (Recharge) कर कृषि एवं घरेलू कार्यों के लिए जल की उपलब्धता को संभव बनाती है।
      • समुद्र: ये संसाधनों के भंडार हैं। मछली एवं अन्य समुद्री भोजन के अतिरिक्त यह खनिजों की दृष्टि से भी संपन्न हैं। भारत ने समुद्री तल से मैंगनीज पिंड (Manganese Nodules) एकत्रित करने की तकनीक विकसित कर ली है।
      • भौतिक भूगोल प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन (Evaluation) तथा प्रबंधन (Management) से संबंधित विषय के रूप में विकसित हुआ है। इस प्रक्रिया में भौतिक पर्यावरण तथा मानव के मध्य संबंधों को समझना आवश्यक है।
      • भौतिक पर्यावरण संसाधन प्रदान करता है एवं मानव इन संसाधनों का उपयोग बेहतर भविष्य के लिए करता है।


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    2 टिप्पणियां

    1. बेसिक के लिए बहुत ही सुन्दर लेख प्रस्तुत किया गया है। ह्रदय से आभार 💓
      1. धन्यवाद, श्रीमान
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