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भारतीय वास्तुकला (Architecture of India in Hindi)

कैलाशनाथ मंदिर पूर्णतया द्रविड़ शैली में निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो कैलाशवासी हैं, इसलिए इसे कैलाशनाथ मंदिर की संज्ञा दी गई है।

भारत, अपनी समृद्ध संस्कृति और विविधता के लिए जाना जाता है, स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान देता रहा है। हजारों वर्षों के इतिहास में, विभिन्न साम्राज्यों, धर्मों और विचारधाराओं ने भारत की स्थापत्य कला को आकार दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अद्भुत स्मारक और भव्य इमारतें बनीं हैं।

भारतीय वास्तुकला (Architecture of India in Hindi)
Indian Architecture in Hindi

इतिहास की झलक

  • सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व): मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्राचीन शहरों में ईंटों से बने भवन, जल निकासी व्यवस्था और शहरी नियोजन, स्थापत्य कौशल का प्रारंभिक प्रमाण दर्शाते हैं।
  • भारत में स्थापत्य कला के आरंभिक साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त होते हैं। हड़प्पा सभ्यता के उत्खनित स्थलों से ज्ञात हुआ है कि इस सभ्यता के निवासी महान निर्माणकर्ता एवं वास्तुकार थे।
  • हड़प्पावासी सुनियोजित नगरों के निर्माण में निपुण थे। उन्होंने अनेक भवनों का निर्माण किया। विभिन्न सुविधाओं से युक्त मकान, अन्नागार, विशाल स्नानागार आदि से पता चलता है कि हड़प्पावासी निर्माण कार्य में अत्यंत कुशल थे।
  • हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषता यहाँ का नगर नियोजन था। नगर नियोजन के अंतर्गत हड़प्पा सभ्यता के निवासियों ने नगरों में सार्वजनिक एवं निजी भवन, सार्वजनिक जलाशय, सुनियोजित मार्ग व्यवस्था एवं उत्कृष्ट नालियों का निर्माण किया।
  • हड़प्पा सभ्यताकालीन निर्माण
    हड़प्पा सभ्यताकालीन निर्माण

  • इस सभ्यता के नगर सुव्यवस्थित योजना के अनुसार बनाए गए थे, सड़कें चौड़ी और सीधी होती थीं, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों को दो भागों में बाँटा गया था, ये दो भाग थे-दुर्ग तथा निचला नगर। दुर्ग को अपेक्षाकृत ऊँचे स्थान पर बनाया गया था, जिसमें सार्वजनिक महत्त्व के भवन आदि होते थे, जबकि निचले नगर में निवास भवन आदि होते थे।
  • मोहनजोदड़ो से एक विशाल स्नानागार मिला है, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे कमरे बने हुए थे तथा पानी तक पहुँचने के लिए उत्तर एवं दक्षिण दिशा में सीढ़ियाँ भी बनाई गई थीं।
  • हड़प्पा में मकानों के निर्माण में पकी ईंटों का प्रयोग किया गया था। कुछ मकान बहुमंजिला भी होते थे। प्रत्येक मकान में कुआँ और स्नानागार भी था। मोहनजोदड़ो में जल-निकासी की व्यवस्था बहुत अच्छी थी। घरों की नालियाँ एक बड़ी और मुख्य नाली से जुड़ी होती थीं।
  • हड़प्पा सभ्यता में अनाज रखने के लिए अन्नागार की भी व्यवस्था थी। इस सभ्यता के प्रमुख स्थल लोथल से बंदरगाह का प्रमाण मिला है, जिससे यह सिद्ध होता है कि लोथल, प्राचीनकाल में एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।

मौर्यकालीन स्थापत्य (स्तूप, स्तम्भ एवं सभा भवन)

मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व): स्तूप और अशोक के स्तंभ, बौद्ध स्थापत्य कला के शुरुआती उदाहरण हैं, जो अपनी सादगी और भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं। अजंता और एलोरा की गुफाएं, इस काल की उत्कृष्ट कृतियां हैं। मौर्यकालीन स्थापत्य के प्रमुख साक्ष्य निम्न हैं-

राजप्रासाद

  • प्राचीन भारत की स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का एक प्रमुख उदाहरण मौर्यकालीन राजप्रासाद, सभाभवन तथा पाटलिपुत्र नगर हैं।
  • यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद की बहुत प्रशंसा की तथा बताया कि यह राजप्रासाद लकड़ी का बना हुआ एक विशाल महल था। यह एक विशाल भवन समूह था, जिसमें अनेक कमरे थे।
  • एरियन के अनुसार, सूसा तथा एकबतना के राजप्रासाद भी भव्यता में चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद की बराबरी नहीं कर सकते थे।
  • स्ट्रैबो के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र (पोलिब्रेथा) गंगा एवं सोन नदियों के संगम पर बसी थी। इसकी लंबाई 80 स्टेडिया तथा चौड़ाई 18 स्टेडिया थी। यह समानांतर चतुर्भुज के आकार का था। नगर के चारों ओर लगभग 700 फीट चौड़ी खाई थी।

सभा भवन

  • चंद्रगुप्त मौर्य का सभाभवन मौर्यकाल का एक प्रमुख स्थापत्य था। यह ऐतिहासिक काल का प्रथम विशाल अवशेष है, जो एक मंडप के रूप में है। इसके मुख्य भाग में 10-10 स्तंभों की 8 कतारें हैं।
  • मंडप के एक ओर काष्ठ (लकड़ी) के मंच मिले हैं, जिन्हें शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण माना जाता है।

स्तम्भ

  • स्तंभ स्थापित करने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से ही रही है, इसके पीछे मुख्यतः धार्मिक एवं राजनीतिक कारण थे।
  • भारत में स्तंभों का निर्माण मौर्यकाल में आरंभ हुआ था। मौर्यकालीन अशोक स्तंभ प्राचीन प्रस्तर स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • अशोक स्तंभ की प्रमुख विशेषता यह है कि इनके शीर्ष भव्य हैं, जिनमें पशुओं के चित्र अत्यंत बारीकी से उत्कीर्ण किए गए हैं। सारनाथ में स्थित सिंह शीर्ष स्तंभ वास्तुकला का एक भव्य नमूना है।
  • अशोक के सारनाथ सिंह शीर्ष स्तंभ में सिंहों के मस्तक पर धर्मचक्र स्थापित है, जिसमें मूलतः 32 तीलियाँ हैं।
  • सिंहों के नीचे की फलक पर चारों दिशाओं में चार चक्र स्थापित हैं, जो बुद्ध के धर्मचक्रप्रवर्तन का प्रतीक है, इसकी फलक पर अश्व, गज, बैल तथा सिंह की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं।

स्तूप

  • स्तूप का शाब्दिक अर्थ ढेर लगाना या थूहा लगाना होता है, जिसका प्राकृत भाषा में रूपांतरण 'धूप' मिलता है। चिता स्थान पर निर्मित होने के कारण इसे चैत्य भी कहा जाने लगा।
  • स्तूप का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में प्राप्त होता है बुद्धकाल से पूर्व स्तूप का संबंध महापुरुषों के स्मारकों के साथ जुड़ चुका था। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी शव भस्म को आठ भागों में बाँटा गया तथा उन पर समाधियों का निर्माण किया गया, जिन्हें स्तूप कहा गया। विभिन्न कालों के स्तूपों का वर्णन निम्न है-
स्तूप से प्रश्न यूपीएससी आईएएस
स्तूप

भरहुत स्तूप

    • भरहुत स्तूप सतना (मध्य प्रदेश) में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया था। इस स्तूप की खोज 1873 ई. में जनरल कनिंघम द्वारा की गई थी।
    • कनिंघम ने इसका अवशेष एकत्रित करके उसे कलकत्ता म्यूजियम में संरक्षित किया।
    • इस स्तूप के व्यास का आधार 68 फीट तथा इसके चारों ओर पत्थरों की एक लंबी बाड़ थी। इस स्तूप में बुद्ध के जीवन की घटनाएँ तथा 30 जातक कथाएँ अंकित की गई हैं।
    • बुद्ध पूजा के अंकन में पशुओं तथा मनुष्य को श्रद्धा से भगवान बुद्ध की पूजा करते हुए दर्शाया गया है। एक चित्र में हाथियों को बोधिवृक्ष की पूजा करते हुए दर्शाया गया है।
    • मौर्यकालीन स्थापत्य में देश के विभिन्न क्षेत्रों में निर्मित स्तूपों को शामिल किया जाता है।

साँची का स्तूप

    • साँची का स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है, जो सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया था। 1818 ई. में इसकी खोज जनरल टायलर ने की थी।
    • यह स्तूप ईंटों से निर्मित है। महास्तूप में महात्मा बुद्ध तथा इसके समीप निर्मित दो छोटे स्तूप में बुद्ध के शिष्यों क्रमशः सारिपुत्र तथा महामोदग्लायन के अवशेष सुरक्षित हैं।
    • साँची का स्तूप आज भी सुरक्षित अवस्था में है। इस स्तूप के चारों ओर पत्थर के बाड़ लगे हुए हैं, जो मौर्यकाल के बाद जोड़े गए हैं। स्तूप के चारों कोनों पर चार द्वार बने हुए हैं, जिसमें बहुत सुंदर कारीगरी वाले पैनल हैं।
    • इन पैनलों में बुद्ध के जीवन की घटनाओं और जातक कथाओं की घटनाओं के दृश्य अंकित हैं। इसमें पेड़ों और फूलों की डिजाइनें, पशु और पक्षी यक्ष और यक्षिणियों तथा नर-नारियों के सुंदर चित्र भी हैं।
    • स्तूप के शिखर पर एक हर्मिका है, जिसके ऊपर एक छत्रदंड स्थापित है। यह छत्रदंड अशोक द्वारा प्रचारित बौद्ध धर्म का प्रतीक है। स्तूप के गुंबद के चारों ओर मार्ग बने हैं, जो वेदिका (रेलिंग) से युक्त हैं।
    • साँची के स्तूप की ऊँचाई 54 फीट तथा इसका व्यास 120 फीट है। बुद्ध के जीवन से संबंधित विविध दृश्यों का अंकन यहाँ भरहुत की अपेक्षा अधिक है।

मौर्योत्तरकालीन स्तूप

  • मौर्य काल के उपरांत भी स्तूप बनाने का प्रचलन जारी रहा। मार्योत्तर काल के स्तूपों के अंतर्गत कुषाणकालीन स्तूप, सातवाहन कालीन स्तूप, नागार्जुनीकोंडा स्तूप, गुप्तकालीन स्तूप आदि आते हैं।
  • सातवाहनकालीन स्तूपों में अमरावती स्तूप एवं नागार्जुनीकोंडा स्तूप अति प्रसिद्ध है। मौर्योत्तर काल के विभिन्न स्तूपों का वर्णन निम्न है-

कुषाणकालीन स्तूप

    • प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क के शासनकाल में अनेक स्तूपों एवं विहारों का निर्माण हुआ था। उसने अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) में 400 फीट ऊँचा स्तूप बनवाया था। फाह्यान तथा ह्वेनसांग दोनों ने इसका उल्लेख किया है।
    • कनिष्क के शासनकाल में तक्षशिला के धर्मराजिका स्तूप के आकार में वृद्धि की गई थी, ऊँचे चबूतरे पर निर्मित यह स्तूप गोलाकार तथा पाषाण निर्मित था।

सातवाहनकालीन स्तूप

    • सातवाहन काल में अनेक स्तूपों, चैत्यों, गुफाओं तथा विहारों का निर्माण हुआ था।
    • सातवाहन काल में उत्कीर्ण उन गुफाओं में सातवाहन शासकों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की जाती थीं, जो उनके द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को दान में दी जाती थीं। सातवाहनकालीन स्तूप निम्न है -
    • अमरावती स्तूप: आंध्रप्रदेश के वेंगी क्षेत्र में स्थित स्तूपों में अमरावती स्तूप का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था।
    • अमरावती में एक महाचैत्य है, जिसमें अनेक प्रतिमाएँ थीं, जो अब चेन्नई संग्रहालय, अमरावती स्थल के संग्रहालय, नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय और लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई हैं।
    • साँची के स्तूप की भाँति अमरावती के स्तूप में भी प्रदक्षिणा पथ है, जो वेदिका से ढका हुआ है और वेदिका पर अनेक आख्यात्मक प्रतिमाएँ निरूपित की गई हैं। वाशिष्ठीपुत्र पुलमावी के काल में इस स्तूप का जीर्णोद्धार करवाया गया था। वर्तमान में यह स्तूप नष्ट हो चुका है, इस स्तूप की खोज 1797 ई. में कर्नल मैकेंजी ने की थी।
    • अमरावती स्तूप का व्यास 162 फीट तथा वेदिका का घेरा 800 फीट होने का अनुमान है। इसमें 9 फीट ऊँचे 136 स्तंभ तथा लगभग पौने तीन फुट ऊँची 348 सूचियाँ लगी हैं। वेदिका द्वार की पर चार सिंहों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं।
    • नागार्जुनीकोंडा स्तूप: अमरावती से लगभग 95 किमी उत्तर में कृष्णा नदी के तट पर स्थित नागार्जुनी पहाड़ी पर स्तूपों का निर्माण कराया गया था, जिसे नागार्जुनीकोंड स्तूप कहा जाता है। यहाँ इक्ष्वाकु वंश का शासन था, जो सातवाहनों के उत्तराधिकारी थे।
    • इक्ष्वाकुवंशी राजा ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे, किंतु उनकी रानियों की अनुरक्ति बौद्ध धर्म में थी। इन्हीं की प्रेरणा से यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया गया। इक्ष्वाकु नरेश वीर पुरुष दत्त के शासन काल में यहाँ महास्तूप का निर्माण एवं संवर्धन किया गया।
    • नागार्जुनीकोंडा स्तूप की खोज वर्ष 1926 में लांगहर्स्ट द्वारा की गई थी। यहाँ के स्तूप भी अमरावती से मिलते जुलते हैं। यहाँ का महास्तूप गोलाकार था, जिसका व्यास 166 फीट तथा ऊँचाई 80 फीट थी। इस स्तूप के शिलाप‌ट्टों पर बौद्ध कथानक उत्कीर्ण हैं, अनेक दृश्य जातक कथाओं से लिए गए हैं।

गुप्तकालीन स्तूप

    • गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी): मंदिरों, मूर्तियों और गुफा चित्रों का निर्माण, हिंदू और बौद्ध स्थापत्य कला के स्वर्ण युग का प्रतीक है। अजंता और एलोरा की गुफाएं, इस काल की कुछ प्रसिद्ध इमारतें हैं।
    • गुप्तकालीन स्तूपों में सारनाथ स्थित 'धमेख स्तूप' का महत्वपूर्ण स्थान है। यह स्तूप 128 फीट ऊँचा है, जो बिना किसी चबूतरे के समतल भूमि पर निर्मित है।

गुफा स्थापत्य

भारतीय वास्तुशिल्प का एक महत्त्वपूर्ण चरण गुफाओं की वास्तुशिल्प का विकास है। भारत के विभिन्न भागों में अनेक ऐसी गुफाओं का पता चला है, जो दूसरी सदी ई. से लेकर 10वीं सदी ई. तक की हैं। प्राचीन काल में भिक्षुओं के निवास स्थान हेतु तथा धार्मिक उद्देश्यों से विशाल चट्टानों में गुफाओं को उत्कीर्ण करने की कला का विकास हुआ। विभिन्न कालों की गुफाएँ निम्न हैं-

मौर्यकालीन गुफा स्थापत्य

मौर्य सम्राट अशोक व उसके पौत्र दशरथ के काल में बाराबर तथा नागार्जुनी की पहाड़ियों को काटकर आजीवकों के लिए आवास बनाए गए थे, इन गुफाओं की छतों तथा दीवारों पर चमकीली पॉलिश मिलती है। मौर्यकालीन गुफाओं का विवरण निम्न है-

  • नागार्जुनी की गुफाएँ: नागार्जुनी पर्वत पर कुल 3 गुफाएँ खोदी गई हैं, जिनमें 'गोपिका गुफा' महत्त्वपूर्ण है। इसे सम्राट दशरथ ने अपने राज्याभिषेक के वर्ष निर्मित करवाया था। दूसरी तथा तीसरी गुफाएँ क्रमशः 'वहियक' तथा 'वडधिक' हैं।
  • बराबर गुफा समूह: अशोककालीन बाराबर पहाड़ी की गुफाओं में 'सुदामा की गुफा' तथा 'कर्णचौपड़ की गुफा' सर्वप्रसिद्ध हैं। सुदामा की गुफा का निर्माण अशोक के शासनकाल के 12वें वर्ष तथा कर्णचौपड़ की गुफा का निर्माण 19वें वर्ष में करवाया गया था। सुदामा की गुफा में दो कोष्ठ हैं, जिनकी छत ढोलकाकार हैं। दशरथ के समय निर्मित 'लोमश ऋषि की गुफा' बाराबर समूह की सबसे प्रसिद्ध गुफा है। इसका आंतरिक कोष्ठ अंडाकार है। इस गुफा का प्रवेश द्वार अधिक सुंदर है। दो पंखों पर खड़े दो स्तंभ हैं, जिनके ऊपर गोल मेहराब बने हैं। मध्य भाग में एक स्तूप तथा दोनों किनारों पर हाथियों की आकृति उत्कीर्ण हैं।
बराबर गुफा समूह
बराबर गुफा समूह

गुप्तकालीन गुफा स्थापत्य

गुप्तकालीन गुफाओं का विवरण निम्न है-

  • बाघ की गुफाएँ: बाघ की गुफाएँ मध्य प्रदेश के धार जिले से प्राप्त हुई हैं, ये गुफाएँ बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। बाघ पहाड़ी से कुल 9 गुफाएँ (विहार) प्राप्त हुई हैं, ये विहार भिक्षुओं के निवास के लिए बनवाए गए थे।
  • उदयगिरि की गुफाएँ: इन गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था, जो मध्य प्रदेश के विदिशा में अवस्थित हैं। यहाँ की गुफाएँ भागवत तथा शैव धर्मों से संबंधित हैं। उदयगिरि गुफा से चंद्रगुप्त द्वितीय के महासंधिविग्रहिक वीरसेन का एक लेख मिलता है। यहाँ की सबसे प्रसिद्ध गुफा वाराह गुफा है, जिसका निर्माण भगवान विष्णु के सम्मान में कराया गया है। उदयगिरि की गुफाओं को पूर्णतया उत्कीर्णित नहीं किया गया है, इन्हें खुदाई व पत्थर से जोड़कर तैयार किया गया है।

चैत्य गृह एवं विहार

  • चैत्य शब्द का शाब्दिक अर्थ है- चिता संबंधी। आरंभ में महात्मा बुद्ध तथा उनके शिष्यों के अवशेषों पर जो समाधियाँ बनाई गईं, उन्हें ही चैत्य या स्तूप कहा जाता है। पहले, चैत्य या स्तूप खुले स्थानों पर बनाए जाते थे, किंतु कालांतर में उन्हें भवनों में स्थापित किया जाने लगा, जिसे चैत्य गृह कहा गया। चैत्यगृह दो प्रकार के होते थे-
       1. पहाड़ियों को काटकर बनाए गए चैत्यगृह
       2. खुले स्थानों पर ईंट-पत्थरों की सहायता से निर्मित चैत्य गृह
  • विहारों को प्रायः गुफाओं में निर्मित किया गया, अतः इन्हें गुहा विहार भी कहा जाता था। इसके अतिरिक्त मैदानी क्षेत्रों में भी विहारों का निर्माण किया गया। गुहा विहारों के अंदर चौकोर विशाल मंडप बनाया जाता था, जिसमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।

प्रमुख चैत्य एवं विहार

प्रमुख चैत्य एवं विहार का विवरण निम्न है-

  • पीतलखोरा चैत्य: यह खानदेश में स्थित है। यह गुफा सतमाला नामक पहाड़ी में स्थित है। इन गुफाओं की खुदाई ईसा पूर्व दूसरी सदी में प्रारंभ हुई थी। उत्कीर्ण लेखों के अनुसार इसका निर्माण प्रतिष्ठान (पैठन) के श्रेणियों द्वारा करवाया गया था। यहाँ पर कमलासन आरुढ़ देवी लक्ष्मी तथा उनका अभिषेक करते दो हाथियों को दर्शाया गया है। इसमें संख्या 5 से 9 तक की गुफाएँ विहार एवं 13वीं गुफा चैत्य है तथा 9वीं गुफा सबसे बड़ी है।
  • अजंता चैत्य एवं विहार: अजंता चैत्य एवं विहार महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले में स्थित है। यहाँ पर बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर एक मील के अर्द्ध वर्गाकार क्षेत्र में 29 गुफाएँ बनाई गई हैं। प्रारंभ की गुफाएँ ई. पू. दूसरी शताब्दी की हैं, जबकि बाद में निर्मित 7वीं शताब्दी तक की हैं। अजंता में चैत्य तथा विहार दोनों प्रकार की गुफाएँ निर्मित हैं। ये हीनयान एवं महायान दोनों मतों से संबंधित हैं। यहाँ की गुफा संख्या 9 व 10 पहली सदी की हैं, जबकि गुफा संख्या 19 व 26 ईसा की 5वीं शताब्दी की हैं। यहाँ की 8वीं, 12वीं, 13वीं गुफा, विहार है। 12वीं गुफा सबसे प्राचीन है। यहाँ की गुफा संख्या 16, 17 व 19 गुप्तकालीन मानी जाती हैं।
    16वीं, 17वीं गुफा का निर्माण वाकाटक नरेश हरिषेण के एक मंत्री ने करवाया था। 16वीं गुफा सबसे सुंदर विहार है, इसके गर्भगृह में बुद्ध की विशालकाय मूर्ति लंबपाद मुद्रा में बनी है। यहाँ की गुफा संख्या 17 के बरामदे की दीवारों में चित्रित जीवन चक्र के कारण इसे राशिचक्र गुफा भी कहा जाता है 19वीं गुफा, जोकि चैत्य है, में बुद्ध का अंकन प्रतीकों में न होकर मूर्तियों में किया गया है।
  • कार्ले चैत्य: कार्ले चैत्य महाराष्ट्र के पुणे जिले में भोरघाट नामक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ एक भव्य चैत्यगृह तथा तीन विहार हैं। यह चैत्य सबसे बड़ा तथा सुरक्षित अवस्था में है। यह 124 फीट लंबा, 45 फीट चौड़ा तथा 46 फीट ऊँचा है, इसमें उत्कीर्ण लेख के अनुसार इसका निर्माण वैजयंती के भूतपाल श्रेष्ठी ने करवाया था।
  • नासिक चैत्य: वर्तमान में यह गोदावरी के तट पर स्थित महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यहाँ कुल 17 गुफाएँ उत्कीर्ण हैं, जिसमें यह एक चैत्य तथा 16 विहार हैं। गुफा में अंकित लेख के अनुसार सातवाहन नरेश कृष्ण (ई. पू. दूसरी सदी) ने इसका निर्माण करवाया था। यहाँ के तीन बड़े गुहा विहारों का निर्माण क्रमशः शक शासक नहपान, सातवाहन नरेश गौतमीपुत्र शातकर्णि तथा यज्ञश्री शातकर्णि के समय हुआ था। नासिक चैत्यगृह को पाण्डुलेण विहार कहा जाता है, इसमें एक संगीतशाला भी बनाई गई थी।
  • कन्हेरी विहार: यह विहार मुंबई से 16 मील दूर उत्तर में स्थित है, इसका प्राचीन नाम कृष्णगिरि था। यहाँ बौद्ध धर्म के हीनयान और महायान दोनों मतों से संबंधित कलाकृतियाँ मिलती हैं, ये कार्ले गुफाओं से समता रखती हैं।
  • भाजा चैत्य: यह महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है। ये गुफाएँ लगभग ई. पू. दूसरी सदी के लगभग उत्कीर्ण हुई थीं। इनमें विहार, चैत्यगृह तथा 14 स्तूप हैं। चैत्यगृह में मूर्ति न होकर मंडप के स्तंभों पर त्रिरत्न, नंदिपद, श्रीवत्स, चक्र आदि उत्कीर्ण हैं।

मंदिर स्थापत्य

मंदिर स्थापत्य गुप्तकाल में प्रारंभ हुआ, जहाँ एक ओर स्तूप और उसका निर्माण कार्य जारी रहा, वहीं दूसरी ओर सनातन/हिंदू धर्म के मंदिर एवं देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनने लगीं। प्रायः मंदिरों को संबंधित देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजाया जाता था। प्रत्येक मंदिर में एक प्रधान या अधिष्ठाता देवता की प्रतिमा होती थी। मंदिरों के पूजागृह तीन प्रकार के होते थे-

   1. संधर प्रकार (जिसमें प्रदक्षिणापथ होता है।)
   2. निरंधर प्रकार (जिसमें प्रदक्षिणापथ नहीं होता है।)
   3. सर्वतोभद्र (जिसमें सभी ओर से प्रवेश किया जा सकता है।)

हिंदू-मंदिर का मूल रूप

हिंदू-मंदिर निम्न भागों से निर्मित होता है-

  • गर्भगृह: यह प्रारंभिक मंदिरों में एक छोटा-सा प्रकोष्ठ होता था, जिसमें प्रवेश के लिए एक छोटा-सा द्वार होता था। समय के साथ-साथ इस प्रकोष्ठ का आकार बढ़ता गया। गर्भगृह में मंदिर के मुख्य अधिष्ठाता देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है और यही पूजा-पाठ या धार्मिक क्रियाओं का केंद्रबिंदु होता है।
  • मंडप: यह मंदिर का प्रवेश कक्ष होता था, जो पर्याप्त बड़ा होता था। इसमें काफी संख्या में लोग एकत्रित हो सकते थे। इस मंडप की छत सामान्यतः खंभों पर टिकी होती है।
  • विमान या शिखर: पूर्वोत्तर काल में मंदिरों पर शिखर बनाए जाने लगे, जिसे उत्तर भारत में शिखर और दक्षिण भारत में विमान कहा जाने लगा।
  • वाहन: यह मंदिर के अधिष्ठाता देवता की सवारी होती थी। वाहन को एक स्तंभ या ध्वज के साथ गर्भगृह के साथ कुछ दूरी पर रखा जाने लगा।
Indian Temple in hindi upsc ias
भारतीय मंदिर कला की एक झलक

मंदिर स्थापत्य की शैलियाँ

भारत में मंदिर निर्माण की तीन शैलियाँ प्रचलित थी, जो इस प्रकार है-

द्रविड़ शैली

  • इस शैली को दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली कहते हैं। द्रविड़ शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह होती है कि यह मंदिर चारों ओर से चहारदीवारी से घिरा होता है, इस चहारदीवारी के बीच में प्रवेश द्वार होते हैं, जिन्हें गोपुरम कहते हैं।
  • मंदिर के गुंबद का रूप जिसे तमिलनाडु में 'विमान' कहा जाता है, मुख्यतः एक सीढ़ीदार पिरामिड की तरह होता है, जो ऊपर की ओर ज्यामितीय रूप से उठा होता है।
  • द्रविड़ शैली के मंदिरों की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि इसमें मंदिरों के द्वार पर द्वारपालों की विशाल प्रतिमाएँ बनाई जाती थीं, जिन्हें देखकर यह स्पष्ट होता है कि वे मंदिर की रक्षा कर रहे हो।
  • इस शैली के मंदिरों के परिसर में कोई बड़ा तालाब या जलाशय होता है। भारत में द्रविड़ शैली के मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से पल्लव, चालुक्य, चोल एवं पांड्य आदि शासकों के शासनकाल में हुआ।

नागर शैली

  • उत्तर भारत में मंदिर स्थापत्य/वास्तु की जो शैली लोकप्रिय हुई उसे 'नागर शैली' कहा जाता है।
  • इस शैली की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि संपूर्ण मंदिर एक विशाल चबूतरे (वेदी) पर बनाया जाता था और उस तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
  • सामान्यतः इन मंदिरों में दक्षिण भारतीय या द्रविड़ शैली के विपरीत, कोई चहारदीवारी या दरवाजे नहीं होते थे। मंदिर में एक घुमावदार गुंबद होता है, जिसे शिखर कहा जाता है।
  • पहले मंदिरों में एक ही शिखर होता था, किंतु कालांतर में मंदिरों में कई शिखरों का निर्माण किया जाने लगा। मंदिर का गर्भगृह सदैव सबसे ऊँचे शिखर के ठीक नीचे बनाया जाता है।
  • भारत के भिन्न-भिन्न भागों में मंदिरों के भिन्न-भिन्न भागों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, किंतु एक साधारण शिखर को जिसका आधार वर्गाकार होता है और दीवारे अंदर की ओर मुड़कर चोटी पर एक बिंदु पर मिलती हैं, उसे सामान्यतः रेखा-प्रासाद कहा जाता है।

बेसर शैली

  • बेसर शैली में नागर एवं द्रविड़ दोनों शैलियों के गुण मिलते हैं। इस शैली के मंदिर आयताकार आधार पर नहीं होते थे, बल्कि बहुभुजी अथवा तारों की आकृति के होते थे, जो भवन के समान ओकृति वाले एक ऊँचे ठोस चबूतरे पर स्थित होते थे।
  • इन मंदिरों में समतलता की दृढ़ भावना प्रकट होती है, क्योंकि इनके चबूतरे एवं दीवारें समान रूप से हाथियों, अश्वारोहियों, हंसों, राक्षसों, पुराणों तथा कथाओं के दृश्यों की खुदी हुई चित्र वल्लरियों से ढकी हुई हैं।
  • इस शैली का विकास चालुक्य, राष्ट्रकूट एवं होयसल राजवंशों के काल में हुआ। एहोल, बादामी, पट्टडकल, बेलूर एवं हलेविड के मंदिर इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रमुख प्राचीन मंदिर

भारत में आरंभिक मंदिरों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ, जो कालांतर में अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न कालक्रम में मंदिरों का विवरण निम्न है-

गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर

  • बोधगया का मंदिर: पाँचवीं संदी के मंदिरों में बोधगया के मंदिर का भी उल्लेख किया जा सकता है। इस मंदिर के गर्भगृह में 'भूमि स्पर्श मुद्रा' में बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
  • साँची का मंदिर: साँची के महास्तूप के दक्षिण-पूर्व की ओर बने इस मंदिर को मंदिर संख्या-17 कहा जाता है। यह गुप्तकाल का प्रारंभिक मंदिर है, इस की छत समतल तथा गर्भगृह चौकोर है।
  • देवगढ़ का दशावतार: मंदिर इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में हुआ था, इसे गुप्तकालीन मंदिर स्थापत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण एक ऊँचे चबूतरे पर किया गया है। गर्भगृह का प्रवेशद्वार द्वारपालों, नंदी तथा देवताओं की मूर्तियों से अलंकृत है। मंदिर की दीवारों पर शेषशायी विष्णु, नर-नारायण तथा गजेंद्रमोक्ष आदि के भव्य दृश्य उत्कीर्ण हैं। यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है, इस शैली में मुख्य देवालय को एक वर्गाकार वेदी पर बनाया जाता है और चारों कोनों पर चार सहायक देवालय बनाए जाते हैं।
  • भीतरगाँव का मंदिर: यह मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर के निकट भीतरगाँव में स्थित है। आर्य शैली के इस मंदिर में गुप्तकालीन ईंटों का प्रयोग किया गया है, इस मंदिर का निर्माण एक चबूतरे पर किया गया है, जिसका व्यास 36 फीट है। मंदिर की चौकोर छत पर 70 फीट ऊँचा शिखर निर्मित है। मंदिर के पूर्वी भाग में स्थित बरामदे के सामने गर्भगृह निर्मित है, जिसमें प्रतिमा प्रतिष्ठित है। मंदिर की दीवारों को रामायण, महाभारत व पुराणों के आख्यानों से सजाया गया है।
  • नचनाकुठार का पार्वती मंदिर: यह मंदिर मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में नचनाकुठार नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर 35 फुट ऊँचे चबूतरे पर निर्मित है, जिसके चारों ओर बरामदा तथा छत सपाट है।
  • भूमरा का शिवमंदिर: यह मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिले के भूमरा नामक स्थान पर स्थित है। वर्तमान में यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। मंदिर के प्रवेश द्वार स्तंभ के बाईं ओर मकरवाहिनी गंगा तथा कछुवावाहिनी यमुना की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
  • सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर: यह मंदिर छत्तीसगढ़ के सिरपुर नामक स्थान पर ईंटों से निर्मित मंदिर है। इस मंदिर का वास्तु भीतरगाँव मंदिर के समान है।

चालुक्य (सोलंकी) कालीन मंदिर स्थापत्य

  • इस काल में गुजरात के अंहिलवाड़ तथा राजस्थान के आबू पर्वत पर मंदिर निर्मित किए गए हैं। ये मुख्य रूप से जैन धर्म से संबंधित हैं।
  • इस काल के मंदिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरे पर किया जाता था।
  • इस काल के प्रसिद्ध मंदिरों में गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित मोढेरा का सूर्य मंदिर है, इसका निर्माण सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में करवाया था।
  • राजस्थान के आबू पर्वत पर दो प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो संगमरमर से निर्मित हैं, जिन्हें दिलवाड़ा का मंदिर कहा जाता है। इसे सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह द्वारा 11वीं सदी में बनवाया गया था।

पालकालीन मंदिर स्थापत्य

  • बिहार और बंगाल में नवीं से 12वीं शताब्दियों के मध्य की अवधि में निर्मित प्रतिमाओं की शैली को पाल शैली कहा जाता है, जिसका नामकरण तत्कालीन पाल शासकों के आधार पर किया गया।
  • पालयुगीन स्मारकों के अवशेष पहाड़पुर (राजशाही-बांग्लादेश) की खुदाई से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से एक विशाल मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस मंदिर में कई चबूतरे हैं।
  • संभवतः यह मंदिर सर्वतोभद्र शैली (चारों दिशाओं में प्रवेश संभव) में बना है। ईंट से निर्मित यह मंदिर आज भी विद्यमान है। बंगाल के बर्दमान नामक स्थान पर स्थित सिद्धेश्वर मंदिर सबसे अलंकृत है। यह मंदिर भी ईंटों से निर्मित है।
  • इस मंदिर की चोटी पर एक बड़ा आमलक बना हुआ है। वक्र, कंगूरे तथा ओतली इस मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ हैं।

चंदेलकालीन मंदिर स्थापत्य

  • मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के समीप खजुराहो में चंदेल शासकों ने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिनमें 25 मंदिर आज भी विद्यमान हैं, जो ग्रेनाइट एवं लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं।
  • खजुराहो का लक्ष्मण मंदिर विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर चंदेलवंशीय राजा धंग द्वारा 954 ई. में बनवाया गया था। नागर शैली में निर्मित यह मंदिर एक ऊँची वेदी (प्लेटफॉर्म) पर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है।
  • खजुराहो स्थित कंदरिया महादेव का मंदिर राजा धंग देव द्वारा निर्मित कराया गया है।
  • मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का शिवलिंग स्थापित किया गया है। यह मंदिर भारतीय मंदिर स्थापत्य की शैली की पराकाष्ठा है।
  • खजुराहो के मंदिरों में अधिकांश हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जिनमें चौसठ योगिनी का मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर 10वीं सदी से पहले का है।
  • इस मंदिर में कई छोटे वर्गाकार देवालय हैं, जो ग्रेनाइट के शिलाखंडों को काटकर बनाए गए हैं। इनमें से प्रत्येक देवालय देवियों को समर्पित है। यहाँ पर कुछ जैन मंदिर भी हैं।

पल्लवकालीन मंदिर स्थापत्य

दक्षिण में भक्ति लहर के परिणामस्वरूप मंदिर वास्तुकला का विस्तार हुआ। पल्लव नरेशों का शासनकाल, कला एवं स्थापत्य की उन्नति के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। पल्लव वास्तुकला ही दक्षिण की द्रविड़ कला शैली का आधार बनी। इसी से दक्षिण भारतीय स्थापत्य के तीन प्रमुख अंगों 1. मंडप, 2. रथ तथा 3. विशाल मंदिर का जन्म हुआ। पर्सी ब्राउन ने पल्लव वास्तुकला को चार भागों में बाँटा है-

  1.  महेंद्र वर्मन शैली: पल्लव वास्तुकला का प्रारंभ महेंद्रवर्मन प्रथम के काल से माना जाता है। मंडगपटू लेख से पता चलता है कि उसने ईंट, लकड़ी, लोहा, चूना आदि के प्रयोग के बिना ही एक नई वास्तुशैली को जन्म दिया। महेंद्रवर्मन प्रथम ने मंडप शैली का विकास किया, जिससे गुहा मंदिरों के निर्माण की परंपरा आरंभ हुई। तोडमंडलम की प्राकृत शिलाओं को उत्कीर्ण कर मंदिर बनाये गये, जिसे मंडपम कहा जाता है।

  2. मामल्ल शैली: इस शैली का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम महामल्ल के काल में हुआ था। इसके अंतर्गत दो प्रकार के स्मारक बने हैं, मंडप तथा एकाश्म मंदिर, जिन्हें रथ कहा गया है। इस शैली में सभी स्मारक मामल्लपुरम (महाबलीपुरम) में विद्यमान हैं।

  3. रथमंदिर: रथ निर्माण कला में पत्थरों को तराशकर एकाश्मक मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इनका अधिकतम आकार 42×35×40 फीट है। रथ मंदिरों में प्रमुख हैं-द्रौपदी रथ, नकुल-सहदेव रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, धर्मराज रथ, गणेश रथ, पिंडारि रथ तथा वलैयंक‌टै रथ आदि। रथ मंदिरों में द्रौपदी रथ सबसे छोटा है सबसे बड़ा रथ धर्मराज रथ है, इसे द्रविड़ शैली का अग्रदूत माना जाता है। इन रथों को सत्तपैगोड़ा कहा जाता है। इन रथों तथा मंडपों में मूर्तियों को भी शिलाखंड तराशकर ही बनाया गया है, इन्हें अलग से स्थापित नहीं किया गया है।

  4. राजसिंह शैली: इस शैली का प्रारंभ नरसिंहवर्मन द्वितीय राजसिंह ने किया था। इसमें गुहा मंदिरों के स्थान पर पाषाण, ईंट आदि की मदद से इमारती मंदिर बनाए गए थे। ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित तटीय मंदिर (शोर मंदिर), ईश्वर मंदिर तथा मुकुंद मंदिर तटीय मंदिर के आरंभिक उदाहरण हैं। महाबलीपुरम का तटीय मंदिर नरसिंहवर्मन द्वितीय (700-728 ई.) जिन्हें राज सिंह भी कहा जाता है इन्ही के द्वारा बनवाया गया। काँची का कैलाशनाथ मंदिर राजसिंह शैली का उत्कर्ष है। इसे राजसिंह ने आरंभ करवाया तथा महेन्द्रवर्मन द्वितीय ने पूरा करवाया। इस मंदिर में द्रविड़ शैली की सभी विशेषताएँ जैसे परिवेष्ठित प्रांगण, गोपुरम, स्तंभ युक्त मंडपम, विमान आदि मिलते हैं।

चालुक्य कालीन मंदिर स्थापत्य

चालुक्य काल (556-757 ई.) में कला व स्थापत्य में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस समय बौद्धों एवं जैनों की तर्ज पर हिंदू देवताओं के लिए पर्वतों को काटकर मंदिर बनाए गए। चालुक्यकालीन प्रमुख मंदिर निम्न हैं-

  • एहोल: एहोल को मंदिरों का नगर कहा जाता है। यहाँ लगभग 70 मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनका निर्माण काल 450-600 ई. के लगभग है। एहोल के मंदिर गुप्तों के समकालीन हैं, इसमें नागर एवं द्रविड़ शैलियों का मिश्रण मिलता है। एहोल का विष्णु मंदिर अभी भी सुरक्षित है। एहोल की विश्वविख्यात मूर्ति विष्णु के वराह अवतार की है, जिसमें वराह को पृथ्वी की रक्षा करते हुए दर्शाया गया है।
  • पट्टडकल: चालुक्य मंदिरों में सर्वोच्चतम उदाहरण पट्टडकल में स्थित विरुपाक्ष मंदिर है। यह मंदिर विक्रमादित्य द्वितीय के शासन काल (733-44 ई.) में उसकी पटरानी लोका महादेवी द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर प्रारंभिक द्रविड़ कला का एक उदाहरण है।

राष्ट्रकूटकालीन मंदिर स्थापत्य

  • 750 ई. के लगभग दक्कन क्षेत्र पर आरंभिक पश्चिमी चालुक्यों का नियंत्रण राष्ट्रकूटों के हाथ में आ गया था, उनकी वास्तुकला की सबसे बड़ी उपलब्धि थी-एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर।
  • कैलाशनाथ मंदिर पूर्णतया द्रविड़ शैली में निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो कैलाशवासी हैं, इसलिए इसे कैलाशनाथ मंदिर की संज्ञा दी गई है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार 'गोपुरम' जैसा है।
  • यह पूरा मंदिर एकाश्म पत्थरों से निर्मित किया गया है। मंदिर का प्रांगण 276 फीट लंबा तथा 154 फीट चौड़ा है, इसका विमान दो मंजिल है।
  • एलीफैंटा में चालुक्य सामंत शिलाहार शासन करते थे। 9वीं सदी के आरंभ में यहाँ त्रिमुखी गुफाएँ उत्कीर्ण की गईं। इसमें सर्वाधिक आकर्षक त्रिमुखी महेश मूर्ति (शिव के शांत, उग्न और शक्ति रूप) भारतीय कला की अमूल्य विरासत है।

चोलकालीन मंदिर स्थापत्य

  • चोल काल (850-1279 ई.) को दक्षिण भारत की कला का स्वर्णकाल कहा जाता है। कलाविद् फर्ग्यूसन के अनुसार, चोल शासकों ने दैत्यों के समान कल्पना की तथा जौहरियों के समान उसे पूरा किया।
  • आरंभिक चोल मंदिरों में विजयालय द्वारा निर्मित नर्धामलाई का चोलेश्वर मंदिर चोल शैली का सुंदर उदाहरण है। चोल कला का उत्कर्ष तंजौर तथा गंगैकोंड चोलपुरम के निर्माण में परिलक्षित होता है। चोलकालीन प्रमुख मंदिर निम्न हैं-
    • तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर: तंजौर का शिव मंदिर जिसे राजराजेश्वर या वृहदेश्वर मंदिर कहा जाता है, समस्त भारतीय मंदिरों में सबसे बड़ा और ऊँचा है, इसका निर्माण 1009 ई. के लगभग राजराज चोल द्वारा कराया गया था। यह मंदिर 500×200 फीट के विशाल प्रांगण में निर्मित है। इसका बहुमंजिला विमान 70 मी (लगभग 230 फीट) ऊँचा है। इसके अंदर विशाल शिवलिंग स्थापित है, इस मंदिर को द्रविड़ शैली का सर्वोत्तम नमूना माना जाता है।
    • गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर: इस मंदिर का निर्माण राजेंद्र चोल (1014-1044 ई.) ने करवाया था। यह मंदिर 340×100 फीट आकार में निर्मित है। यह मंदिर राजेंद्र चोल की उत्तर भारत विजय की स्मृति में बनाया गया था। यह मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है। परवर्ती चोल मंदिरों में दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर, त्रिभुवनम का कम्पमहेश्वर मंदिर आदि प्रमुख हैं।
angkor wat Temple in hindi upsc ias
अंकोरवाट मंदिर (कंबोडिया)

अंकोरवाट मंदिर

  • अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया के अंकोर में मीकांग नदी के तट पर अवस्थित एक विशाल हिंदू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण खमेर वंश के शासक सूर्यवर्मन-II (1112-1153 ई.) ने करवाया था।
  • खमेर शैली में निर्मित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसकी दीवारों पर रामायण एवं महाभारत, के दृश्य उत्कीर्ण हैं। इसी मंदिर की तर्ज पर भारत के बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण में विशाल रामायण मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।
  • भारत में मंदिर निर्माण की जो परंपरा गुप्त युग में प्रारंभ हुई थी, वह तुर्क सत्ता स्थापित होने से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई। मध्यकाल में मंदिर निर्माण का उल्लेखनीय कार्य विजयनगर साम्राज्य में हुआ।

मध्यकालीन स्थापत्य कला

मध्यकालीन युग (12वीं-18वीं शताब्दी): दिल्ली सल्तनत, मुगल साम्राज्य और दक्षिणी भारत के शासकों ने विशिष्ट शैलियों को विकसित किया, जिसमें मीनारें, गुंबद, जटिल नक्काशी और भव्यता का समावेश था। लाल किला, ताजमहल, हवा महल और मैसूर पैलेस, इस काल की कुछ प्रसिद्ध इमारतें हैं। मध्यकालीन स्थापत्य कला के अंतर्गत प्रमुख रूप से सल्तनत काल, प्रांतीय राजवंश तथा मुगल काल की स्थापत्य कला को शामिल किया जाता है।

सल्तनतकालीन स्थापत्य कला

  • तुर्कों के भारत आगमन के बादं जिस नई स्थापत्य कला का विकास हुआ वह न तो पूर्णतया विदेशी थी और न ही भारतीय। विदेशी और भारतीय स्थापत्य कला के इस समन्वय से एक नई शैली का विकास हुआ, जिसे 'इंडो इस्लामिक शैली' कहा जाता है।
  • सल्तनत शासक वास्तुकला के महान संरक्षक थे और उनके संरक्षण में समन्वय की यह प्रक्रिया आरंभ हुई। पुनः क्षेत्रीय परिवर्तनों के साथ यह अनेक राज्यों में जारी रही। मुगल काल में समन्वय की प्रक्रिया खूब विकसित हुई और इस काल में भारत के कुछ महानतम स्मारकों का निर्माण हुआ।
  • सल्तनतकालीन स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता चूना-गारा का सीमेंट के रूप में प्रयोग तथा मेहराबों, गुंबदों, ऊँची मीनारों तथा डाटदार छतों का व्यापक प्रयोग था।
  • तुर्की इमारतों में खान से निकाली हुई अथवा बनाई हुई सामग्री के द्वारा भवन निर्माण किया गया। पक्की इमारतों में पत्थरों का प्रयोग बढ़ गया।

गुलाम वंश की स्थापत्य कला

  • इस वंश के शासकों में कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश तथा बलबन आदि थे। इस काल के कुछ प्रमुख स्थापत्य पुरानी हिंदू इमारतों के ध्वंसावशेष पर निर्मित हैं।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा दिल्ली और अजमेर में बनवाई गई मस्जिदें सल्तनत काल की सबसे पहली इमारतें हैं।
  • दिल्ली की मस्जिद को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद (कुतुबमीनार) भी कहते हैं। यह 70 मी लंबी तथा 30 मी चौड़ी है।
  • कुतुबमीनार चार मंजिला इमारत थी, बाद में इल्तुतमिश ने इसमें एक और मंजिल जोड़ते हुए इसे पाँच मंजिला बना दिया। इस मीनार में अधिकतर लाल एवं पांडु रंग के बलुआ पत्थर हैं। इसकी ऊपरी मंजिलों में कहीं-कहीं संगमरमर का भी प्रयोग हुआ है।
  • कुतुबुद्दीन के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने भी अनेक इमारतों का निर्माण करवाया, जिसमें इल्तुतमिश का मकबरा तथा सुल्तान गढ़ी का मकबरा सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
  • इल्तुतमिश का मकबरा 1234 ई. में निर्मित किया गया था, जो लाल पत्थर से बना है। सुल्तान गढ़ी का मकबरा (1231 ई.) इल्तुतमिश ने अपने ज्येष्ठ पुत्र नसीरुउद्दीन के लिए बनवाया था। यह भारत में निर्मित प्रथम मकबरा है। इल्तुतमिश को मकबरा शैली का जन्मदाता माना जाता है। इल्तुतमिश को कुतुबमीनार को पूर्ण कराने का श्रेय भी है।
  • सल्तनत काल की एक प्रमुख इमारत बलबन का मकबरा था। इसका निर्माण बलबन ने करवाया था।
  • इसमें पहली बार वास्तविक मेहराब का प्रयोग किया गया है। यह मेहराब तिकोने डॉट पत्थरों और एक मुंडेर पर आधारित थी।

तुगलक काल की स्थापत्य कला

  • सल्तनत काल में सर्वाधिक भवन निर्माण कार्य तुगलक के काल में हुए, इस काल में गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक तथा फिरोजशाह तुगलक आदि के द्वारा निर्मित स्थापत्य प्रमुख हैं।
  • तुगलककालीन प्रमुख इमारतों में दिल्ली स्थित गयासुद्दीन तुगलक के मकबरे का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस मकबरे का निर्माण 1320-25 ई. के मध्य गयासुद्दीन तुगलक द्वारा करवाया गया था, ऊँची दीवारों से घिरा हुआ यह मकबरा अनियमित पंचभुज जैसा प्रतीत होता है, इस मकबरे में लाल बलुआ और सफेद पत्थर का प्रयोग मिलता है।
  • मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में तुगलकाबाद के समीप आदिलाबाद के किले का निर्माण कराया गया। जहाँपनाह नगर का निर्माण भी मुहम्मद तुगलक द्वारा करवाया गया था।
  • फिरोजशाह तुगलक के काल में भी अनेक इमारतों का निर्माण हुआ था, जिसमें फिरोजशाह का मकबरा, खिड़की मस्जिद, खान-ए-जहाँ तेलंगानी का मकबरा, काली मस्जिद तथा बेगमपुरी मस्जिद आदि प्रमुख हैं। फिरोजशाह का मकबरा संगमरमर और लाल पत्थर से निर्मित है।

सैयदकालीन स्थापत्य कला

  • सैयद शासकों का काल स्थापत्य कला की दृष्टि से हास का काल था, क्योंकि तैमूर लंग के आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था।
  • इस काल में खिज्र खाँ ने 'खिज्राबाद' तथा मुबारक शाह ने 'मुबारकाबाद' नामक नगर का निर्माण करवाया। सैयद काल में बने सुल्तान मुबारक शाह सैयद का मकबरा एवं मुहम्मद शाह का मकबरा प्रमुख इमारतें हैं। मुहम्मद शाह का मकबरा सामान्य ऊँचाई का अष्टभुजीय मकबरा है।

खिलजी काल का स्थापत्य कला

  • इस काल में अलाउद्दीन खिलजी तथा उसके उत्तराधिकारियों द्वारा इमारतों का निर्माण किया गया अलाउद्दीन ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का और भी विस्तार किया तथा मस्जिद की बाहरी दीवार में एक दरवाजे का निर्माण करवाया, जिसे अलाई दरवाजा कहा जाता है। मार्शल ने अलाई दरवाजे के बारे में कहा है कि "अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य के खजाने का सबसे सुंदर हीरा है।" अलाई दरवाजे में लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है।
  • अलाउद्दीन द्वारा निर्मित अन्य इमारतें हजार सितून (हजार स्तंभों वाला महल), जमातखाना मस्जिद, हौज-ए-अलाई तथा सीरी का किला प्रमुख हैं। हजार सितून का निर्माण 1303 ई. में दिल्ली के निकट सीरी नामक नगर के पास हुआ है। सीरी किला अलाउद्दीन ने 1303 ई. में मंगोल आक्रमण से सुरक्षा के लिए बनवाया था।

लोदी कालीन स्थापत्य कला

  • इस काल में मुख्य निर्माण कार्य सुल्तान सिंकंदर लोदी व इब्राहिम लोदी द्वारा निर्मित इमारतें हैं। सिकंदर लोदी द्वारा बनाई गई प्रमुख इमारतों में बहलोल लोदी का मकबरा प्रमुख है। इस मकबरे का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है, इस मकबरे में तीन मेहराब एवं द्वार स्तंभ हैं।
  • सिकंदर लोदी के मकबरे का निर्माण इब्राहिम लोदी ने करवाया था। इसके गुंबद के चारों ओर आठ खंभे बने हैं तथा इसके चारों किनारों पर बुर्ज का निर्माण किया गया है।
  • मोठ की मस्जिद लोदी काल की एक प्रमुख इमारत है, जिसका निर्माण सिकंदर लोदी के वजीर मिंया भुईया ने करवाया था।

प्रांतीय स्थापत्य शैलियाँ

इंडो-इस्लामिक वास्तुकला को परंपरा की दृष्टि से अनेक श्रेणियों में बाँटा जाता है, जिनके नाम हैं-शाही शैली (दिल्ली सल्तनत), प्रांतीय शैली (मांडु, गुजरात, बंगाल और जौनपुर), मुगल शैली (दिल्ली, आगरा और लाहौर) और दक्कनी शैली (बीजापुर तथा गोलकुंडा) आदि। प्रांतीय स्थापत्य शैलियों का विस्तृत विवेचन निम्न प्रकार है-

जौनपुर

  • जौनपुर के स्थापत्य की प्रमुख विशेषता इनकी भारी-भरकम इमारतें हैं, इनमें मीनारें नहीं हैं तथा इनकी विशेषता ढलवा दीवारों के साथ राजसी दरवाजों का निर्माण है। इन इमारतों में इंडो-इस्लामी स्थापत्य शैलियों का मिश्रण है।
  • जौनपुर की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना अटाला मस्जिद है, जिसका निर्माण 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की ने करवाया था। यह मस्जिद इंडो-इस्लामिक शैली का एक उदाहरण है। इसके मेहराब एवं गुंबद हिंदू शैली में बने हैं।
  • महमूद शाह द्वारा 1450 ई. में निर्मित लाल दरवाजा मस्जिद, इब्राहिम शाह शर्की द्वारा 1430 ई. में निर्मित झंझरी मस्जिद आदि जौनपुर की शैली में बनी प्रसिद्ध इमारतें हैं। जामा मस्जिद का निर्माण 1470 ई. में हुसैन शाह शर्की द्वारा करवाया गया था।

बंगाल

  • बंगाल की इमारों में ईंटों का प्रयोग व्यापक रूप से हुआ, क्योंकि बंगाल में पत्थरों का अभाव है। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे खंभों पर नुकीली मेहराबें तथा हिंदू प्रतीक चिह्नों; जैसे कमल का प्रयोग सजावट के लिए किया गया, साथ ही कॉर्निस का इस्लामी अनुकरण भी बंगाल की स्थापत्य कला की विशेषता है।
  • पांडुआ की अदीना मस्जिद, गौड़ की सोना मस्जिद, तथा कदम रसूल की मस्जिद आदि इमारतों में बंगाल स्थापत्य के प्रमुख लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।
  • अदीना मस्जिद का निर्माण 1368 ई. में सिकंदर शाह ने करवाया था। यह भारत की विशालतम मुस्लिम इमारत है। इसकी एक प्रमुख विशेषता ढलवा दीवारें हैं।
  • कदम रसूल तथा सोना मस्जिद का निर्माण नुसरत शाह (1519-32 ई.) ने करवाया था। 'इकलाखी मकबरा' भी बंगाल का एक प्रमुख स्थापत्य है, यह मकबरा पांडुआ में स्थित है। यह जलालुद्दीन मुहम्मद शाह का मकबरा है।

मालवा

  • मालवा शैली की प्रसिद्ध इमारतों में हिंडोला महल (हुशंगशाह द्वारा 1425 ई. में निर्मित), मांडू स्थित जहाज महल (महमूद प्रथम द्वारा निर्मित), मांडू की सर्वाधिक आकर्षक इमारत हैं।
  • फतेहाबाद स्थित सात मंजिला कुश्क महल स्थापत्य कला का एक सुंदर नमूना है। इस महल का निर्माण 1445 ई. में सुल्तान महमूद खिलजी ने करवाया था।

कश्मीर

  • कश्मीरी स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता थी-लकड़ी का बहुतायत मात्रा में प्रयोग। लकड़ी पर विविध प्रकार की नक्काशी से भवनों / इमारतों में सौंदर्य की अभिवृद्धि हुई है। अन्य प्रांतीय शैलियों की भाँति यहाँ भी इंडो इस्लामी शैली विकसित हुई है।
  • कश्मीर के शासक सिकंदरशाह ने श्रीनगर में मदीन साहिब के मकबरे का निर्माण 15वीं शताब्दी में करवाया था, जिसका विस्तार जैनुल आबिदीन ने किया था। जैनुल आबिदीन ने वूलर झील में एक कृत्रिम द्वीप जैना लंका बसाया था। कश्मीर के भवनों में अखुन मुल्लाशाह का मकबरा एवं मस्जिद तथा हमदान की मस्जिद आदि स्थापत्य कला का प्रमुख उदाहरण है।
  • कश्मीर की इमारतों में जैनुल आबिदीन की माँ का मकबरा विशेष प्रसिद्ध है। यह मकबरा पूर्णतः ईंटों और पॉलिशदार टाइलों से बना है, इसका निर्माण ईरानी शैली में किया गया है।

गुजरात

  • प्रांतीय राज्यों में गुजरात की स्थापत्य शैली को सर्वाधिक स्थानीय शैली माना जाता है। इस शैली में लकड़ी के स्तंभों के स्थान पर पत्थर के स्तंभों का प्रयोग किया गया है।
  • इस शैली का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण अहमदाबाद की जामा मस्जिद है, जिसका निर्माण 1423 ई. में अहमदशाह द्वारा करवाया गया था।
  • महमूद बेगड़ा (1459-1511 ई.) का काल गुजराती स्थापत्य का उल्लेखनीय काल है। इस काल में चम्पानेर, जूनागढ़ और खेड़ा की स्थापना की गई।
  • अहमदाबाद के संस्थापक अहमदशाह ने तीन दरवाजा और जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • अहमदाबाद की सबसे भव्य इमारत सादी सैयद मस्जिद है, जिसे आमतौर पर जाली वाली मस्जिद कहते हैं।

विजयनगर का स्थापत्य

  • दक्षिण भारत में विजयनगर का साम्राज्य 14वीं सदी में स्थापित एवं 1565 ई. में नष्ट हुआ।
  • अपने लंबे शासन काल के दौरान वास्तुकला के क्षेत्र में विजयनगर साम्राज्य की अनेक उपलब्धियाँ हैं।
  • विजयनगर साम्राज्य का स्थापत्य द्रविड़ शैली के आधार पर विकसित हुआ। विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत में मंदिर निर्माण का चरमोत्कर्ष काल था। हंपी का विट्ठल स्वामी मंदिर तथा हजारा-राम मंदिर यहाँ के स्थापत्य कला के भव्य उदाहरण हैं।
  • हजारा-राम तथा विट्ठल मंदिर का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था। इसने चिदंबरम्, काँचीपुरम तथा एकनाथ मंदिरों का भी निर्माण करवाया। विजयनगर की स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता कल्याण मंडप एवं हजार स्तंभों वाले गोपुरम का निर्माण था।
  • इस काल में मंदिरों में राजा-रानी की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। तिरुपति मंदिर में कृष्णदेव राय व उनकी पत्नियों की मूर्तियाँ हैं।
  • विजयनगर की राजधानी हंपी की किले बंदी, वास्तुकला की दृष्टि से अपना अलग महत्त्व रखती है।
  • इसमें ईंटों को जोड़ने के लिए किसी अन्य सामग्री का प्रयोग न कर उन्हें परस्पर गूंधा गया है।
  • विजयनगर की वास्तुकला की अंतिम शैली को मदुरा शैली कहा जाता है, क्योंकि इसे सर्वाधिक प्रोत्साहन मदुरा के नायकों ने दिया। इस शैली के मंदिरों में रामेश्वरम्, श्रीरंगम त्रिवल्लुर, जंबुकेव्वरा, चिदंबरम् व मिन्नैवेली आदि आज भी दर्शनीय हैं।

बहमनी स्थापत्य कला

  • दक्कन के बहमनी सुल्तानों ने बीदर और गुलबर्गा में अनेक इमारतों का निर्माण करवाया, जिनकी शैली विशिष्ट है। इसमें ईरान, सीरिया, तुर्की और दक्षिण भारत की शैलियाँ अपनाई गई हैं।
  • गुलबर्गा की जामा मस्जिद बहुत प्रसिद्ध है। इस मस्जिद का सेहन अनेक गुंबदों से ढका हुआ है। यह भारत की एकमात्र ऐसी मस्जिद है, जिसका सेहन ढका हुआ है।
  • मीनारों के स्थान पर इसके चारों कोर्नो पर गुंबद है, और 5वाँ गुंबद शेष गुंबदों से बड़ा है, जो नमाज कक्ष के ऊपर निर्मित है।
  • यहाँ मकबरों के दो समूह हैं। पहले समूह में दो सुल्तानों के मकबरे हैं और इसमें तुगलक कालीन कला का प्रभाव झलकता है, जबकि हफ्त गुंबद (सात गुंबद) कहे जाने वाले दूसरे समूह में ईरानी और प्राचीन भारतीय शैलियों का प्रभाव दिखाई देता है।
  • बीदर में भी अनेक मकबरे हैं, जिसमें सुल्तान अहमद अली शाह का मकबरा तथा महमूद गवां का मकबरा विशेष प्रसिद्ध हैं। महमूद गवां के मकबरे का निर्माण एक विशिष्ट फारसी शैली में हुआ है।
  • बहमनी सल्तनत में बिखराव के बाद नए शासकों ने मेहतर महल और इब्राहिम रौजा जैसी अनेक इमारतें बनवाईं। बीजापुर का गोलगुंबज विश्व के विशालतम गुंबदों में से एक है, जिसका निर्माण मुहम्मद आदिलशाह ने करवाया था।

मुगलकालीन स्थापत्य कला

  • वास्तुकला के क्षेत्र में समन्वय की जो प्रक्रिया सल्तनत काल में आरंभ हुई थी, वह मुगल काल में पूरी हुई। वास्तुकला और अन्य क्षेत्रों में मुगलकाल की उपलब्धियाँ सर्वश्रेष्ठ हैं।
  • प्रथम दो मुगल सम्राटों बाबर और हुमायूँ ने ईरानी वास्तुकारों से अनेक इमारतें बनवाईं। बाबर ने संभल, आगरा तथा पानीपत (काबुली मस्जिद 1528-29 ई.) में मस्जिदों का निर्माण करवाया।
  • आगरा स्थित आरामबाग तथा जहराबाग उद्यान भी बाबर ने निर्मित करवाया था। हुमायूँ ने दिल्ली में दीन पनाह (1533 ई. में निर्मित) नामक नगर की स्थापना की थी।
  • इस काल की प्रमुख इमारतों में सासाराम (बिहार) स्थित शेरशाह का मकबरा है। यह मकबरा एक तालाब के मध्य स्थित है, जो अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
  • शेरशाह ने स्वयं अपने मकबरे का निर्माण करवाया था। यह मकबरा वर्ष 1545 ई. में बनकर पूरा हुआ था।

अकबर काल में वास्तुकला

  • मुगल वास्तुकला का वास्तविक आरंभ अकबर के काल में हुआ। इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण इमारत दिल्ली स्थित हुमायूँ का मकबरा है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मकबरे का निर्माण हुमायूँ की पत्नी हमीदाबानू बेगम ने 1564 ई. में करवाया था।
  • इसे ताजमहल का पूर्वगामी कहा जाता है। इस मकबरे पर ईरानी प्रभाव है, किंतु इसमें ईरानियों की भाँति ईंटों और पालिशदार टाइलों का उपयोग नहीं, अपितु संगमरमर का उपयोग हुआ है, यह मकबरा चारों ओर से एक बाग से घिरा है।
  • आगरा और लाहौर के किले अकबर द्वारा बनवाई गई दूसरी प्रमुख इमारतें हैं। अकबर के बाद के शासकों ने किले के अंदर कई इमारतों का निर्माण एवं फेरबदल भी करवाया। इन इमारतों में आंगन और खंभे भी हैं। इस शैली की वास्तुकला में पहली बार कोनियों (ब्रैकेट्स) में हाथियों, शेरों, मोरों और दूसरे अन्य सजीव प्राणियों का चित्रण किया गया है।
  • अकबर के काल की सबसे बड़ी उपलब्धि है- आगरा से लगभग 40 किमी दूर फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी का निर्माण। फतेहपुर सीकरी में स्थित बुलंद दरवाजा अकबरकालीन स्थापत्य का प्रमुख उदाहरण है। इस दरवाजे की मेहराब 41 मी चौड़ी तथा 50 मी ऊँची है। यह दरवाजा लाल और पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है और मेहराबों की रूपरेखा निर्मित करने में सफेद संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है।

जहांगीर काल में वास्तुकला

  • सिकंदरा स्थित अकबर का मकबरा, जिसका निर्माण अकबर ने शुरू करवाया था, जहाँगीर के शासन में पूरा हुआ। मकबरे की मेहराबें और गुंबद बहुत भव्य हैं, इस इमारत पर बौद्ध विहारों का प्रभाव है।
  • एत्मादउद्दौला का मकबरा जहाँगीर के काल की एक प्रसिद्ध इमारत है, जिसका निर्माण नूरजहाँ ने अपनी पिता एत्मादउद्दौला की स्मृति में 1626 ई. में करवाया था। संगमरमर से निर्मित यह मकबरा रंगीन पच्चीकारी (पित्रादूरा) के लिए प्रसिद्ध है।

औरंगजेब के समय में वास्तुकला

  • औरंगजेब के काल में मुख्यतः तीन ही स्थापत्य के साक्ष्य मिलते हैं, जिसमें लाहौर की बादशाही मस्जिद, दिल्ली के लाल किले की मोती मस्जिद और औरंगाबाद में स्थित राबिया-उद्-दौरानी का मकबरा प्रमुख हैं।
  • लाल किले की मोती मस्जिद संगमरमर से निर्मित है। औरंगाबाद में स्थित राबिया-उद्-दौरानी (औरंगेजब की पत्नी) का मकबरा 1678 ई. में निर्मित कराया गया था। इसे बीवी का मकबरा भी कहा जाता है। इसका स्थापत्य ताजमहल जैसा है। बादशाही मस्जिद का निर्माण 1674 ई. में फिदाई खाँ की देख-रेख में किया गया था।

शाहजहाँ काल में वास्तुकला

  • शाहजहाँ का काल मुगल वास्तुकला का चरमोत्कर्ष काल था। इस काल में संगमरमर का व्यापक प्रयोग इमारतों में किया जाने लगा। अलंकरण हेतु 'पित्रादूरा' का बड़े पैमाने पर प्रयोग हुआ।
  • शाहजहाँ द्वारा दिल्ली में शाहजहानाबाद नामक नगर बसाया गया। दिल्ली में उसने लाल किला तथा उसके अंदर अनेक इमारतों का निर्माण करवाया। दिल्ली की जामा मस्जिद और आगरे का ताजमहल शाहजहाँकालीन स्थापत्य का चरमोत्कर्ष है।
  • लाल किले में स्थित दीवान-ए-आम तथा दीवान-ए-खास भव्य इमारत हैं।
  • शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई सबसे भव्य इमारत तामजहल है, जिसे उसने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था। इसे 'संगमरमर का बना हुआ स्वप्न' कहा जाता है, इसका मुख्य स्थापत्यकार उस्ताद अहमद लाहौरी था।

आधुनिक स्थापत्य कला

  • भारत में यूरोपियों के आगमन के पश्चात् यहाँ सुदृढ़ किले, भव्य गिरजाघर तथा प्रशासनिक इमारतें निर्मित की गईं।
  • पुर्तगालियों ने गोवा में आइवेरियन वास्तुकला शैली में भव्य चर्च निर्मित किए। 18वीं सदी में वास्तुकला की पल्लडियन शैली को भारत में प्रारंभ करने के प्रयास किए गए। लखनऊ में जनरल मार्टिन द्वारा बनाई गई कासटेशिया इमारत इसका उल्लेखनीय उदाहरण है।
  • विभिन्न स्थानों पर नगर नियोजन एवं भवन निर्माण निम्न हैं-

मद्रास

  • अंग्रेजों ने सर्वप्रथम सूरत को अपनी व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बनाया तत्पश्चात वे मद्रास पहुँचे।
  • 1639 ई. में उन्होंने मसुलीपट्टनम में एक व्यापारिक चौकी बनाई। बाद में उन्होंने यहीं पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना की, जो व्हाइट टाउन का केंद्र बना जिसमें यूरोपीयन निवास करते थे, जबकि ब्लैक टाउन फोर्ट के बाहर स्थित होता था।

कलकत्ता

  • 1698 ई. में अंग्रेजी कंपनी ने सुतानाती, कलिकाता और गोबिंदपुर नामक तीन गाँवों की जमींदारी प्राप्त की और यहाँ पर फोर्ट विलियम का निर्माण किया।
  • 1798 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता में गवर्नमेंट हाउस बनवाया। नगर नियोजन के लिए 1817 ई. में लॉटरी कमेटी बनाई गई। इसके अंतर्गत लॉटरी को बेचकर होने वाली आय से नगर की व्यवस्था होती थी।

बंबई

बंबई (मुंबई) के सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए चार प्रकार की स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया, जिसमें से दो शैलियाँ नियो क्लासिकल शैली तथा नव गॉथिक शैली इंग्लैंड से आयातित थीं। इनका विवरण निम्न है-

  • नियो क्लासिकल शैली में बड़े स्तंभों के मध्य रेखा गणितीय संरचनाओं का निर्माण इसकी विशेषता थी। यह शैली मूल रूप से प्राचीन रोमन भवन निर्माण शैली से निकली थी। मुंबई का टाउन हाल (1833 ई.) इसी शैली में निर्मित है।
  • नव गॉथिक शैली में ऊँची उठी छतें, नोकदार मेहराबें और बारीकसाज-सज्जा इस शैली की विशेषता होती है। इस शैली का जन्म गिरजाघरों से हुआ था। नव गॉथिक शैली में निर्मित प्रमुख इमारतें हैं-सचिवालय, बांबे विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय।
  • इंडो सारसेनिक शैली: हिंदू तथा मुस्लिम शैलियों से प्रेरित थी, इस शैली के अधिकांश भवन मद्रास (चेन्नई) में हैं।
  • गुजराती शैली: इसका उपयोग भारतीयों ने अंग्रेजों के समक्ष भारतीय वास्तु शिल्प के जाधुनिक रूप को प्रस्तुत करने के लिए किया। मुंबई का ताजमहल होटल तथा गेटवे ऑफ इंडिया इसी शैली में निर्मित हैं।

नई दिल्ली

  • 1911 ई. में राजधानी परिवर्तन के दौरान ब्रिटिश वास्तुकारों ने शानदार भवनों के निर्माण किए।
  • मुख्य वास्तुकार एडविन लुटियंस और एडवर्ड बेकर ने हिंदू एवं इस्लामिक शैलियों को यूरोपीय शैली में संश्लेषित कर तैयार किया।
  • इस शैली में निर्मित अधिकतम भवन विशालकाय तथा मजबूत होते थे।
  • सर जॉन लारेंस ने मुगलों की प्रेरणा से सुंदर उद्यानों की श्रृंखला विकसित की।
akshardham Temple in hindi upsc ias
अक्षरधाम (नई दिल्ली)

अक्षरधाम मंदिर

    • अक्षरधाम नई दिल्ली में यमुना तट पर स्थित प्रमुख स्थापत्य है, इस मंदिर का निर्माण हिंदू धर्म के स्वामी नारायण संप्रदाय के आराध्य-ज्योतिर्धर भगवान स्वामीनारायण की स्मृति में करवाया गया है।
    • वर्ष 2007 में इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने विश्व का सबसे बड़ा मंदिर परिसर घोषित किया है।

Note: 📢
उपरोक्त डाटा में कोई त्रुटि होने या आकड़ों को संपादित करवाने के लिए साथ ही अपने सुझाव तथा प्रश्नों के लिए कृपया Comment कीजिए अथवा आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं, हमारा Email है 👉 upscapna@gmail.com ◆☑️

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6 टिप्पणियां

  1. Great article, good for revision
    1. Thank you so much Harsh
  2. Bahut khub sir, ek hi post mein Indian Architecture ka lagbhag important topics cover kr diya hain aapne. Thank u
    1. welcome! Vipin ji, hamari koshish yahi rahegi ki aapko best se best content provide kiya jaye...
  3. पहली बार इस विषय विस्तु पर इतना बेहतर आर्टिकल देखा है। इस शानदार लेख के लिए हृदय से धन्यवाद
    1. धन्यवाद अभय जी, आप लोगों का स्नेह हमें और मेहनत करने के लिए निरंतर प्रेरित करता है। यदि लेख में कोई त्रुटि दिखे तो जरूर सूचित कीजिएगा, क्योंकि हमसे मानवीय भूल हो सकते हैं।
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