भारत अपनी विविधतापूर्ण भूगर्भिक संरचना के कारण विविध प्रकार के खनिज संसाधनों से संपन्न हैं भारी मात्रा में बहुमूल्य खनिज पूर्व-पुराजीवी काल या प्री-पैलाइजोइक काल (Pre-Palaezoic Age) में निर्मित हुए हैं और ये मुख्यतः प्रायद्वीपीय भारत की आग्नेय (Igneous) एवं कायांतरित चट्टानों (Metamorphic) से संबद्ध है। एक खनिज निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणाधर्मों (विशिष्टताओं) के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति का एक प्राकृतिक पदार्थ है। भू-पर्पटी (Darth Crust) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है, इन खनिजों का उपयुक्त शोधन करके ही ये धातुएं निकाली जाती है। उत्तर भारत के विशाल जालोढ़ मैदानी भू-भाग आर्थिक उपयोग के खनिजों से विहीन हैं। किसी भी देश के खनिज संसाधन औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक आधार प्रदान करते हैं।
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज प्राकृतिक रूप में विद्यमान समरूप तत्व है, जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। खनिज, प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं, जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना सम्मिलित हैं। चट्टानें, खनिजों के समरूप तत्वों के यौगिक है। कुछ चट्टानें, जैसे चूना पत्थर केवल एक ही खनिज से बनी होती है, लेकिन अधिकांश चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों के योग से बनी हैं यद्यपि 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की चुकी है, किन्तु अधिकांश चट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की अधिकता है।
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि भूगोलविद् स्थलाकृतियों की बेहतर जानकारी हेतु खनिजों का अध्ययन भू-पृष्ठ के एक अंश के रूप में करते है। भूगोलवेत्ता खनिज संसाधन के वितरण व खनिजों से संबंधित आर्थिक क्रियाओं में अधिक रुचि रखते हैं, परंतु भूवैज्ञानिक, खनिजों की निर्माण प्रक्रिया, इनकी आयु व खनिजों के भौतिक व रासायनिक संगठन से संबंधित विषयों की जानकारी रखते हैं।
खनिजों की विशेषताएं एवं वर्गीकरण
➤ खनिजों की कुछ निश्चित विशेषताएँ होती हैं। ये क्षेत्र में असमान रूप से वितरित होते हैं।
➤ खनिजों की गुणवत्ता और मात्रा के मध्य प्रतिलोमी संबंध (Inverse Relation) पाया जाता है अर्थात् अधिक गुणवत्ता वाले खनिज कम गुणवत्ता वाले खनिज की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं। सभी खनिज समय के साथ समाप्त होते जाते हैं।
➤ भूगर्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लंबा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरंत पुनर्भरण (Recharge) नहीं किया जा सकता, अतः इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए।
खनिजों का वर्गीकरण
सामान्य व वाणिज्यिक (व्यापारिक) उद्देश्य हेतु खनिज निम्न प्रकार से वर्गीकृत किए जाते हैं-
1. धात्विक खनिज (Metalic Mineral)
- वे खनिज अयस्क जिनमें धातुएँ होती हैं, धात्विक खनिज (Metallic Mineral) कहलाते हैं।
- धातु के स्रोत धात्विक खनिज हैं। लौह अयस्क, ताँबा, सोना आदि को धात्विक खनिज माना जाता है। धात्विक खनिजों को लौह एवं अलौह धात्विक श्रेणी में बाँटा जाता है।
- वे सभी खनिज जिनमें लौह अंश पाया जाता है, लौह धात्विक खनिज (Ferrous Metallic Minerals) होते हैं और जिनमें लौह अंश नहीं होता है, वे अलौह धात्विक खनिज (Non-Ferrous Metallic Minerals) कहलाते हैं; जैसे- ताँबा, बॉक्साइट आदि।
अधात्विक खनिज (Non-Metalic Minerals)
- अधात्विक खनिज (Non-Metalic Minerals) कार्बनिक उत्पत्ति के होते है; जैसे- जीवाश्म ईधन, इन्हें खनिज ईधन (Mineral Fuels) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी में दबे प्राणी एवं पादप जीवों से प्राप्त होने वाले खनिज; जैसे- कोयला और पेट्रोलियम आदि।
- अन्य प्रकार के अधात्विक खनिज अकार्बनिक उत्पत्ति के होते हैं; जैसे- अभ्रक, चूना-पत्थर तथा ग्रेफाइट आदि।
भारत में खनिजों का वितरण एवं उपलब्धता
➤ भारत में अधिकांश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं। कोयले का लगभग 97% भाग दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाया जाता है।
➤ पेट्रोलियम के आरक्षित भंडार असम, गुजरात तथा मुंबई हाई अर्थात् अरब सागर के अपतटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। नए आरक्षित क्षेत्र कृष्णा-गोदावरी तथा कावेरी बेसिनों में पाए जाते हैं।
➤ अधिकांश प्रमुख खनिज मंगलौर (मेंगलुरु) से कानपुर को जोड़ने वाली रेखा (कल्पित) के पूर्व में पाए जाते हैं।
➤ भारत में खनिज मुख्यत: निम्न तीन विस्तृत पट्टियों में संकेंद्रित हैं-
1. उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश (The North-Eastern Plateau Region) यह पट्टी छोटानागपुर (झारखंड), ओडिशा के पठार, पश्चिम बंगाल तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में विस्तारित है। इस क्षेत्र में लौह एवं इस्पात उद्योग की अवस्थिति अधिक महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के खनिज उपलब्ध हैं; जैसे-लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइट व अभ्रक आदि।
2. दक्षिण-पश्चिमी पठारी प्रदेश (South-Western Plateau Region) यह पट्टी कर्नाटक, गोवा तथा संस्पर्शी तमिलनाडु उच्च भूमि और केरल तक विस्तृत है। यह पट्टी लौह धातुओं तथा बाक्साइट से समृद्ध है। इसमें उच्च कोटि का लौह अयस्क, मैंगनीज तथा चूना-पत्थर भी पाया जाता है। निवेली लिग्नाइट को छोड़कर इस क्षेत्र में कोयला निक्षेपों (Deposits) का अभाव है। इस पट्टी के खनिज निक्षेप उत्तर-पूर्वी पट्टी की भाँति विविधतापूर्ण नहीं हैं। केरल में मोनाजाइट तथा थोरियम और बॉक्साइट क्ले के निक्षेप हैं। गोवा में लौह अयस्क निक्षेप पाए जाते हैं।
3. उत्तर-पश्चमी प्रदेश (The North-Western Region) यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजरात के कुछ भाग पर विस्तृत है और यहाँ के प्रमुख खनिज धारवाड़ क्रम की शैलौं से संबद्ध हैं, जिनमें ताँबा, जिंक आदि सम्मिलित हैं।
➤ राजस्थान बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट, संगमरमर, जिप्सम जैसे भवन निर्माण के पत्थरों से समृद्ध है और यहाँ मुल्तानी मिट्टी के भी विस्तृत निक्षेप पाए जाते हैं।
➤ डोलोमाइट तथा चूना पत्थर सीमेंट उद्योग के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। गुजरात अपने पेट्रोलियम निक्षेपों के लिए जाना जाता है, गुजरात व राजस्थान दोनों स्थानों पर नमक के निक्षेप मिलते हैं।
➤ हिमालयी पट्टी एक अन्य खनिज पट्टी है, जहाँ ताँबा, सीसा, जस्ता कोबाल्ट तथा रंगरत्न पाया जाता है। ये पूर्वी और पश्चिमी दोनों भागो में पाए जाते हैं।
➤ असम घाटी में खनिज तेलों के निक्षेप हैं, इसके अतिरिक्त खनिज तेल संसाधन मुंबई के निकट अपतटीय क्षेत्र (मुंबई हाई) में भी पाए जाते हैं।
खनिजों की उपलब्धता
- कुछ खनिज सामान्यत: खनिज अयस्कों में पाए जाते हैं। किसी भी खनिज मे अन्य अवयवों या तत्वों के मिश्रण या संचयन हेतु अयस्क (Ore) शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- खनन (Minning) का आर्थिक महत्व तभी है, जब अयस्क में खनिजों का संचयन पर्याप्त मात्रा में हो। खनिजों के खनन की सुविधा इनके निर्माण व संरचना पर निर्भर है। खनन सुविधा इसके मूल्य को निर्धारित करती है।
- खनिज प्राय: निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं-
➔ आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों (Igneous and Metamorphic Rocks) इन चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं। इसके छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बड़े जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं।
➔ इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है, जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं, ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते है। मुख्य धात्विक खनिज; जैसे- जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि इसी प्रकार की शिराओं व जमावों में प्राप्त होते हैं।
➔ अवसादी चट्टानों (Sedimentary Rocks) इन चट्टानों के संस्तरों या परतों में अनेक प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण संचयन व जमाव का परिणाम है। कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
➔ खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों (Surface Rocks) का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील तत्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।
➔ पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप, प्लेसर निक्षेप (Places Deposits) के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।
➔ महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के व्यापक रूप से वितरित होने के कारण इनकी आर्थिक सार्थकता कम है। फिर भी सामान्य नमक, मैग्नीशियम तथा ब्रोमाइन अधिकांश समुद्री जल से ही प्राप्त होते हैं। महासागरीय तली भी मैंगनीज ग्रंथिकाओं में धनी है।
- भारत के अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के बाद ही संभव हैं।
- भारत के उत्तर-पूर्वी अधिकांश जनजातीय क्षेत्रो में, खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है।
- मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना-पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं।
- जोबाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्यों द्वारा एक लम्बी संकीर्ण सुरंग के रूप मे किया जाता है, जिसे रैट होल खनन (Rat Hole Mining) कहा जाता है।
प्रमुख धात्विक खनिज
प्रमुख धात्विक खनिज निम्नलिखित है-
लौह खनिज
➤ लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं, ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
➤ भारत अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के पश्चात बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता हैं।
लौह अयस्क
- भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन है, यहाँ एशिया के विशालतम लौह अयस्क संरक्षित है।
- लौह अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठार प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित है, जो औद्योगिक विकास के लिए लाभप्रद हैं।
- पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड) में 'चिड़िया' लौह अयस्क के लिए प्रसिद्ध है।
- लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास का आधार है।
- भारत में इस अयस्क के दो मुख्य प्रकार हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट पाए जाते है।
- मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है, जिसमें 70% लोहांस पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं।
- हेमेटाइट सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है, जिसका अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है। इसमे लोहांस 50 से 60% तक होता है।
- लौह अयस्कों के अन्य प्रकारों में लियोनाइट (पीला), और सीडेराइट प्रमुख है।
लौह अयस्क की पेटी
लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों का लगभग 95% भाग ओडिशा, झारखड, छत्तीसगढ, कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित है। भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ निम्नलिखित हैं-
- ओडिशा-झारखंड पेटी ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केंदुझार जिलों मं बादाम पहाड़ खदानों से निकलता है। यहाँ की महत्वपूर्ण खदानों में गुरुमहिसानी, सुलाइपत, बादामपहाड़ (मयूरभंज), किरुबुरु (केंदुझार) तथा बोनाई सुंदरगढ़ हैं। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में गुवा तथा नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।
- दुर्ग-बस्तर चंद्रपुर पेटी यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बैलाडिला पहाड़ी शृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है, जिसमें इस गुणवत्ता के लौह के 14 जमाव मिलते हैं। इसमें इस्पात बनाने में आवश्यक सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर, रत्नागिरि भंडारा जिलों में भी लौह अयस्क का जमाव पाया जाता है। छत्तीसगढ़ से प्राप्त होने वाले लौह अयस्क को विशाखापत्तनम के समुद्री पत्तन से जापान और दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
- बल्लारी-चित्रदुर्ग, चिकमंगलुरु-तुमकुरु पेटी कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की वृहत् राशि संचित है। कर्नाटक के पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात इकाई हैं, कुद्रेमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं।
- कर्नाटक में लौह अयस्क के निक्षेप बल्लारी जिले के संदूर-होसपेट क्षेत्र में तथा चिकमंगलुरु जिले की बाबाबूदन पहाड़ियों और कुद्रेमुख तथा शिवमोगा, चित्रदुर्ग और तुमकुरू जिलों के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। लौह अयस्क कर्दम (Slurry) रूप में पाइपलाइन द्वारा मंगलुरु के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।
- महाराष्ट्र-गोवा पेटी यह पेटी गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है, किन्तु इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मार्मागाओ (गोवा) पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य लौह अयस्क उत्पादन क्षेत्रों में तेलंगाना के करीम नगर, वारंगल जिले, आंध्र प्रदेश के कुरुनूल, कड़प्पा तथा अनंतपुर जिले और तमिलनाडु राज्य के सलेम तथा नीलगिरी जिले लौह अयस्क खनन के लिए प्रसिद्ध है।
मैंगनीज (Manganese)
- लौह अयस्क के प्रगलन के लिए मैंगनीज एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है और इसका उपयोग लौह- मिश्रधातु, विनिर्माण में भी किया जाता है।
- मैंगनीज निक्षेप लगभग सभी भूगर्भिक संरचनाओं में पाया जाता है हालाँकि मुख्य रूप से यह धारवाड़ क्रम (Dharwar System) की चट्टानों में पाया जाता है।
- मैंगनीज का उपयोग ब्लीचिंग पाउडर कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है। मैंगनीज के मुख्य निक्षेप निम्नलिखित स्थानो पर हैं-
➔ ओडिशा मैगनीज का अग्रणी उत्पादक है। ओडिशा की मुख्य खदानें लौह अयस्क पट्टी के मध्य भाग में विशेष रूप से बोनाई, कैंदुझार, सुंदरगढ़, गंगपुर, कोरापुट, कालाहांडी तथा बोलनगीर में स्थित हैं।
➔ कर्नाटक एक अन्य प्रमुख उत्पादक है तथा यहाँ की खदान धारवाड़, बल्लारी, बेलगावी, उत्तरी कनारा, चिकमंगलुरु शिवमोगा चित्रदुर्ग तथा तुमकुरु में स्थित हैं।
➔ महाराष्ट्र भी मैंगनीज का एक मुख्य उत्पादक है। यहाँ मैंगनीज का खनन नागपुर, भंडारा तथा रत्नागिरि जिलों में होता है। इन खदानों की हानि यह है कि ये इस्पात संयंत्रो से दूर स्थित है।
➔ मध्य प्रदेश में मैंगनीज की पट्टी बालाघाट, छिंदवाड़ा, निमाड़, मंडला और झाबुआ जिलों तक विस्तृत है।
➔ तेलंगाना, गोवा तथा झारखंड मैगनीज के अन्य गौण उत्पादक हैं।
➔ मैगनीज के पाँच प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, आध्र प्रदेश तथ कर्नाटक हैं।
अलौह खनिज
➤ भारत में अलौह खनिजों (Non-Ferrous Minerals) की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है। यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
➤ बॉक्साइट को छोड़कर अन्य सभी अलौह-खनिजों के संबंध में भारत की स्थिति निम्न है-
बॉक्साइट
- बॉक्साइट एक अयस्क है, जिसका प्रयोग एल्युमीनियम के विनिर्माण में किया जाता है। बॉक्साइट मुख्यत: टर्शयरी निक्षेपों (Tertiary Deposits) में पाया जाता है और लैटेराइट चटटानों से संबद्ध है।
- बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्युमीनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
- एल्यूमिनियम एक महत्वपूर्ण धातु है, क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है, इसमें अत्यधिक आघातवर्ध्यता (Malleability) भी पाई जाती है।
- बाक्साइट के प्रमुख अयस्क बोहेमाइट एवं गिबसाइट हैं।
- बॉक्साइट के प्रमख निक्षेप निम्नलिखित स्थानों पर हैं -
➔ भारत में बॉक्साइट के निक्षेप (Bauxite Deposits) मुख्यतः प्रायद्वीपीय भारत के पठारी क्षेत्रों में अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ी तथा बिलासपुर, कटनी के पठारी प्रदेशों के साथ-साथ देश के तटीय भागों में भी पाए जाते हैं।
➔ ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी तथा संबलपुर बॉक्साइट के अग्रणी उत्पादक हैं। दो अन्य क्षेत्र जो अपने उत्पाद को बढ़ा रहे हैं, बोलनगीर एवं कोरापुट जिले में स्थित पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
➔ झारखंड में लोहरदग्गा जिले की पाटलैंड्स (Patlands) में इसके समृद्ध निक्षेप हैं। पाटलैंड्स (Patlands), पठार की एक प्रवृत्ति है, इसे उप-पठार (Sub-Plateau) की संज्ञा भी दी जाती है।
➔ गुजरात के भावनगर एवं जामनगर में इसके प्रमुख निक्षेप हैं।
➔ छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट निक्षेप के भंडार, अमरकंटक पठार में पाए जाते है, जबकि मध्य प्रदेश में कटनी, जबलपुर तथा बालाघाट में इसके महत्त्वपूर्ण निक्षेप हैं।
➔ महाराष्ट्र में कोलाबा, थाणे, रत्नागिरि, सतारा, पुणे तथा कोल्हापुर इसके महत्त्वपू्ण उत्पादक हैं।
ताँबा (Copper)
- भारत में ताँबे का भंडार व उत्पादन क्रांतिक रूप से कम है। आघातवर्ध्य (Malleable), तन्य (Tensile) और ताप सुचालक (Thermal Conductor) होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है।
- आभूषणों को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए इसे स्वर्ण के साथ भी मिलाया जाता है।
- ताँबे के मुख्य अयस्कों में चाल्कोपायराइट (Chalcopyrite), बोरनाइट, चेल्कासाइट (Chalcocite), क्यूप्राइट, मेलासाइट एवं एजूराइट हैं।
- मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52% ताँबा उत्पादित करती हैं।
- झारखंड के पूर्वी तथा पश्चिमी सिंहभूम जिले भी ताँबे के मुख्य उत्पादक हैं।
- राजस्थान के झंझुनूँ जिले में खेतड़ी की खान एवं अलवर जिला भी मुख्य उत्पादक हैं।
- ताँबा के गौण उत्पादक में आंध्र प्रदेश गुंटूर जिले का अग्निगुंडाला, कर्नाटक के चित्रदुर्ग तथा हासन जिले और तमिलनाडु का दक्षिण आरकाट जिला मुख्य हैं।
अन्य अलौह खनिज
अन्य अलौह खनिज निम्नलिखित हैं-
- सोना भारत में सोने के निक्षेप (Gold Deposits) बहुत कम हैं। सोने का उत्पादन कर्नाटक राज्य में कोलार तथा हट्टी (रायचूर जिला) की खानों से होता है। कोलार की खाने संसार की सबसे गहरी खान है। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले की खानों से भी सोने का खनन किया जाता है। सोने के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक (99%) तथा झारखंड हैं।
- चाँदी की प्राप्ति राजस्थान के उदयपुर में स्थित जावर की खान से तथा भीलवाड़ा जिले में अंगुचा-रामपुरा से होती है। अन्य चाँदी उत्पादक क्षेत्रों में तुण्डू, सिंहभूम, संथाल-परगना (झारखंड), कोलार व हट्टी (कर्नाटक) एवं रामगिरि अनंतपुर (आंध्र प्रदेश) सम्मिलित हैं। चाँदी के प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान तथा कर्नाटक हैं।