जल एक चक्रीय संसाधन (Cyclic Resource) है, जिसका पुनः प्रयोग किया जाता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। जलीय चक्र (Hydrological Cycle), पृथ्वी पर इसके नीचे व पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में जल के संचलन की व्याख्या करता है। यह चक्र करोड़ो वर्ष से कार्यरत है एवं पृथ्वी पर जीवन इसी के कारण संभव हो सका है। जल पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक तत्त्व है। जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों अर्थात् ठोस, द्रव एवं गैस में जल का परिसंचरण होता है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, उपसतह (Subsurface) और सूक्ष्म जीवों के मध्य जल के सतत् आदान-प्रदान से भी है।
Oceanography in Hindi |
पृथ्वी पर जल का वितरण
- पृथ्वी पर जल का वितरण असमान है। बहुत से क्षेत्रों में जल की प्रचुरता है, जबकि बहुत से क्षेत्रों में यह सीमित मात्रा में है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का लगभग 71% भाग महासागरों में पाया जाता है।
- महासागरों एवं समुद्रों का जल लवणीय होता है। इसमें अधिकांश नमक-सोडियम क्लोराइड (NaCl) या खाने में उपयोग किया जाने वाला नमक होता है।
- इसके अतिरिक्त शेष जल ताजे जल के रूप मैं या अलवणीय जल के रूप में, हिमानियों, हिमटोपी, भूमिगत जल, झीलों, नदी, ताल, मृदा में आद्रता, वायुमंडलीय सरिताओं और जीवों में संग्रहीत है।
- धरातल पर गिरने वाले जल का लगभग 59% भाग महासागरों एवं अन्य स्थानों से वाष्पीकरण (Evaporation) के द्वारा वायुमंडल में चला जाता है।
- इसके अतिरिक्त जल का शेष भाग धरातल पर बहता है, कुछ भूमि में चला जाता है और कुछ भाग हिमानी (Glacier) के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
जल चक्र के घटक और प्रक्रियाएँ | |
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घटक | प्रक्रियाएँ |
महासागरों में संग्रहीत जल | वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन व ऊर्ध्वपातन |
वायुमंडल में जल | संघनन व वर्षण |
हिम एवं बर्फ में पानी का संग्रहण | हिम पिघलने पर नदी-नालों के रूप में बहना |
धरातलीय जल बहाव | जलधारा के रूप में व ताजा जल संग्रहण एवं जल रिसाव |
भौम जल संग्रहण | भौम जल का विसर्जन व झरने |
महासागरीय नितल/अधस्तल
- महासागरों के नितल (Ocean Floor) समतल नहीं हैं। ये नितल बहुत ऊबड़-खाबड़ हैं और संसार के अधिकतम लंबाई वाले पर्वतों, अधिकतम गहराई वाली खाइयों तथा विशालतम मैदानों से युक्त हैं।
- महासागरीय नितल का प्रमुख भाग समुद्र तल के नीचे 3 से 6 किमी के मध्य पाया जाता है। महासागरों के जल के नीचे की भूमि अर्थात् महासागरीय नितल भूमि पर पाए जाने वाले लक्षणों की अपेक्षा जटिल तथा विभिन्न प्रकार के लक्षणों को प्रदर्शित करती है।
- महासागरों की तली में विश्व की सबसे बड़ी पर्वत शृखलाएँ, सबसे गहरे गर्त एवं सबसे बड़े मैदान होने के कारण ये ऊबड़-खाबड़ होते हैं।
- महाद्वीपों पर पाए जाने वाले लक्षणों की भाँति ये लक्षण भी विवर्तनिक (Tectonic), ज्वालामुखीय (Volcanic) एवं निक्षेपण (Depositional) की क्रियाओं से बनते हैं।
महासागरीय जल का वितरण (प्रतिशत में) | |
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स्रोत | वितरण (% में) |
महासागर | 97.3% |
बर्फ की टोपियाँ (हिमनद) | 2.05% |
भूमिगत जल | 0.68% |
झील (अलवण एवं लवणीय झीलें) | 0.018% |
मृदा की नमी (आर्द्रभूमि) | 0.005% |
वायुमंडल | 0.0019% |
नदियां | 0.0001% |
🌊 महासागरीय अधस्तल का विभाजन (गहराई के आधार पर)
- महासागरीय नितल को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है-
1. महाद्वीपीय मग्नतट
2. महाद्वीपीय ढाल
3. महाद्वीपीय समुद्री मैदान
4. महासागरीय उत्थान - इसके अतिरिक्त महासागरीय तली पर बड़े तथा छोटे उच्चावचों संबंधी लक्षण भी पाए जाते है, उन्हें भी चार भागों में विभाजित किया गया है-
1. कटक पहाड़ियाँ
2. समुद्री टीला
3. निमग्न द्वीप
4. खाइयाँ व खड्डे - समुद्र तलों पर विवर्तनिक, ज्वालामुखी, अपरदनकारी तथा निक्षेपणकारी प्रक्रियाओं की पारस्परिक क्रियाओं के कारण ही विभिन्न प्रकार के उच्चावच पाए जाते हैं। अधिक गहराई वाले भागों में विवर्तनिक और ज्वालामुखी प्रक्रियाएँ पाई जाती हैं।
महासागरीय अधस्तल का विभाजन |
कुछ प्रमुख महासागरीय अधस्थलों का वर्णन निम्न है-
महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
- महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) समुद्र तट से समुद्र की ओर मंद ढाल वाला जल मग्न धरातल होता है। इस प्रकार यह महाद्वीप का विस्तृत सीमांत (Continental Margin) होता है, जो अपेक्षाकृत उथले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा होता है।
- यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। यह अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है, जिसे शेल्फ अवकाश (Shelf Break) कहा जाता है।
- महाद्वीपीय शेल्फों की चौड़ाई एक महासागर से दूसरे महासागर में भिन्न होती है। इस शेल्फ की औसत चौड़ाई 80 किलोमीटर होती है। कुछ सीमांतों के साथ शेल्फ नहीं होते अथवा अत्यंत संकीर्ण होते हैं। चिली तट तथा सुमात्रा के पश्चिमी तट इसके उदाहरण हैं।
- इसके विपरीत आर्कटिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ (Siberian Shelf) विश्व में सर्वाधिक विस्तृत महाद्वीपीय मग्नतट है, जिसकी चौड़ाई 1500 किमी है। भारत में पूर्वी तट का शेल्फ पश्चिमी तट के शेल्फ की तुलना में चौड़ा है।
- महाद्वीपीय मग्नतट का निर्माण सामान्यतः समुद्र की ऊँचाई बढने के कारण महाद्वीप के तटीय भागों के जल मग्न होने से अथवा जल के नीचे महासागरीय निक्षेपों (Deposits of Ocean) के कारण होता है।
- मग्नतट पर निक्षेपित पदार्थ अधिकांशत: स्थलीय अवसाद होते हैं। इन अवसादी निक्षेपणों के नीचे स्थित आधारी चट्टानें कहीं परतदार अवसादी चट्टानें होती हैं, तो कहीं आग्नेय अथवा रूपांतरित चट्टानें होती है।
- महाद्वीपीय शेल्फों या मम्नतटों पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है। ये अवसाद भूमि से नदियों, हिमनदियों तथा पवन द्वारा लाए जाते है और तरंगों तथा धाराओं द्वारा वितरित किए जाते हैं।
- यहाँ पर लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछटी अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते है।
- महाद्वीपीय मग्नतट अनेक प्रकार के होते हैं; जैसे- हिमानीकृत मग्नतट, प्रवाल भित्ति मग्नतट, बड़ी नदियों के मुहाने पर निर्मित मग्नतट, द्रुमाकृतिक घाटियों से युक्त मग्नतट तथा वलित पर्वत के पार्श्व मग्नतट
महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)
- महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope) महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ को जोड़ते हैं। इसकी शुरुआत वहाँ होती है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ की तली तीव्र ढाल में परिवर्तित होती है।
- ढाल वाले प्रदेश की प्रवणता 2 से 5 डिग्री के मध्य होती है। ढाल वाले प्रदेश की गहराई 200 मीटर एवं 3000 मीटर के मध्य होती है।
- ढाल का किनारा महाद्वीपों की समाप्ति को इंगित करता है। इन प्रदेशों में गहरे खड्ड एवं खाइयाँ दिखाई देती हैं। इन पर पाए जाने वाले अवसाद समुद्री जीवों के अस्थि पंजर होते हैं। सामान्यतः नितल मैदान उन क्षेत्रों में अधिक पाए जाते है,जहाँ स्थल जनित अवसादों की आपूर्ति अधिक मात्रा में होती है।
- विश्व के समस्त सागरीय क्षेत्रफल के 8.5% भाग पर ही महाद्वीपीय ढाल मिलते हैं।इनका सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक महासागर में मिलता है।
गहरे सागरीय मैदान (Deep Sea Plain)
- महाद्वीपीय ढाल के समाप्त होने पर गहरे सागरीय मैदान (Deep Sea Plain) आरंभ होते हैं। यह विस्तृत क्षेत्र हैं, जिनका ढाल 1° से भी कम है।
- इसकी गहराई 3000 से 6000 मीटर तक है। महासागरीय नितल का 75.9% भाग गहरे सागरीय मैदानों से घिरा है। अटलांटिक महासागर में इसका सर्वाधिक विस्तार है।
- 20° उत्तर से 60° दक्षिण आक्षांशों के बीच गहरे सागरीय मैदान का विस्तार सर्वाधिक है। इस हिस्से में समुद्री जीवों के अवशेष, सूक्ष्म वनस्पति तथा अन्य अवसादों का निक्षेप मिलता है। अधिक गहरे भागों में लाल मृत्तिका तथा ज्वालामुखीय राख (Volcanic Ash) मिलती है।
नितल पहाड़ियां (Continental Rise)
- महासागरीय नितल पर हजारों एकाकी नितल पहाड़ियाँ, समुद्री पर्वत तथा गाईऑट (Guyot) हैं।
- वह जलमग्न पर्वत जिसका शिखर नितल से 1000 मीटर से अधिक ऊँचा होता है, उसे समुद्री पर्वत (Sea Mount) कहा जाता है।
- सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गाईऑट (Guyots) कहते हैं। समुद्री भूगोलवेत्ताओं के अनुसार, लगभग 10,000 समुद्री पर्वत तथा गाईऑट प्रशांत महासागर में हैं।
महासागरीय गर्त अथवा खाइयाँ (Oceanic Deeps)
- महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps) महासागर के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये अपेक्षाकृत खड़े किनारे वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं। ये महासागरीय तली की अपेक्षा 3 से 5 किमी तक गहरे होते हैं।
- यह महाद्वीपीय ढाल के आधार तथा द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं एवं सक्रिय ज्वालामुखी तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। अब तक ज्ञात गर्तों में 32 प्रशांत महासागर में, 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में पाए गए हैं।
- प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर खाइयों की एक लंबी श्रृंखला पाई जाती है। इसमें गुआम द्वीपमाला के समीप स्थित मेरिआना गर्त विश्व की सबसे गहरी गर्त है, जिसकी गहराई लगभग 11 किमी है, जो माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई से भी अधिक गहरी है।
🌊 महासागरीय उच्चावच की अन्य आकृतियाँ
महासागरों में अन्य महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ, महासागरों के विभिन्न भागों में पाई जाती है, जो निम्न है-
मध्य महासागरीय कटक (Mid-Oceanic Ridge)
- मध्य-महासागरीय कटक (Mid-Oceanic Ridge) महासागरीय नितल पर सैकड़ों किमी चौड़ी तथा हजारों किमी तक लंबवत् पर्वत श्रेणी होती है अर्थात यह पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बना होता है, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग होता है।
- इन पर्वतों के शिखर की ऊँचाई 2500 मीटर तक हो सकती है तथा इनमें कुछ समुद्र की सतह तक भी हो सकती है।इसका उदाहरण आइसलैंड है, जो मध्य अटलांटिक कटक का एक भाग है।
- ये कटक या तो मंद ढाल वाले चौड़े पठार के समान होते हैं या तीव्र ढाल वाले पर्वत के समान हैं। ये विश्वव्यापी कटक-पृथ्वी पर विवर्तनिक संचरणों के साक्षी हैं। इनके शिखर जलस्तर से ऊपर उठकर द्वीप का भी निर्माण करते हैं।
समुद्री टीला (Sea Mount)
- समुद्री टीला (Sea Mount) नुकीलें शिखरों वाला एक पर्वत होता है, जो समुद्र के तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों की सतह तक नहीं पहुंच पाता है।
- ये ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं, जो 3000 से 4500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। ऐम्परर समुद्री टीला (Emperor Seamount) इसका एक अच्छा उदाहरण है, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप समूहो का विस्तार है।
जलमग्न केनियन (Submarin Canyon)
- महासागरीय नितल पर स्थित गहरे गॉर्जं को जलमग्न केनियन (Submarin Canyon) कहते हैं, ये तीव्र ढाल वाली गहरी घाटियाँ होती हैं। इनकी अनुदैर्ध्य परिच्छेदिकाएँ लंबी और अवतल होती हैं। ये समुद्रतटों के बाहर प्राय: सभी महासागरों के किनारों पर मिलती है।
- यह मुख्यतः महाद्वीपीय मग्नतट, ढाल तथा उत्थान तक सीमित होते हैं।
- हडसन एक विश्व प्रसिद्ध जलमग्न केनियन है, जो हडसन नदी के मुहाने से शुरू होकर अटलांटिक महासागर में चला गया है।
- कुछ केनियन को आकार की दृष्टि से देखा जा सकता है, जिसमें कोलोरेडो नदी की ग्रैंड केनियन सबसे बड़ी प्रसिद्ध केनियन है।
महासागरीय जल का तापमान
- तापमान (Temperature) महासागरीय जल का एक महत्त्वपूर्ण भौतिक गुण है, जो सामान्यतः 5°C से 33°C तक रहता है। तापमान विशालकाय महासागरीय जलराशियों के संचरण तथा उनकी विशेषताओं को नियंत्रित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है।
- महासागरीय जल भूमि की भाँति सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होता है। स्थल की तुलना में जल के तापमान व शीतलन की प्रक्रिया धीमी गति से होती है।
- महासागरीय जल के गर्म होने की दो मुख्य प्रक्रियाएँ हैं-
(i) सौर विकिरण का अवशोषण
(ii) पृथ्वी के आंतरिक भाग से महासागरीय नितल के मध्य ऊर्जा का संबंध - महासागरीय जल के ठंडे होने की मुख्य प्रक्रियाएँ हैं- समुद्री धरातल से ऊष्मा का विकिरण, संवहन तथा वाष्पीकरण आदि।
- इस प्रकार गर्म एवं ठंडा करने वाली प्रक्रियाएँ ही संयुक्त रूप से तापमन के वितरण को निर्धारित करती हैं।
- महासागरों के धरातलीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं पाया जाता है। इसका वितरण भी अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होता है।
तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
- अक्षांश (Latitude) ध्रुवों की ओर प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।
- स्थल एवं जल का असमान वितरण (Unequa] Distribution of land and Water) उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्द्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
- सनातन पवनें (Prevailing Winds) स्थल से महासागरों की ओर बहने वाली पवनें महासागरों के सतहीं गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नीचे का ठंडा जल ऊपर की ओर आ जाता है। परिणामस्वरूप तापमान में देशांतरीय अंतर आता है। इसके विपरीत अभितटीय पवनें (Onshore Winds) गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तापमान बढ़ जाता है।
- महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents) गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है, जबकि लेब्राडोर धारा (ठंडी धारा) उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट के समीप तापमान को कम कर देती है।
इसके अतिरिक्त वायुमंडल में सूर्यातप का ह्रान्स, दैनिक सूर्यातप की तीव्रता और अवधि, वायुधाराओं का बहना, स्थानीय मौसमी दशाएँ, जलमग्न कटकों की स्थिति, धरातल के द्वारा सौर ऊर्जा की अंतरिक्ष में परावर्तित मात्रा, जल का घनत्व, खारापन तथा वाष्पीकरण का स्वभाव और मात्रा एवं वाष्पीकरण तथा संघनन द्वारा ऊष्मा का स्थानातरण तथा समुद्र की स्थिति एवं आकार आदि महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार ये सभी कारक महासागरीय धाराओं के तापमान को स्थानिक रूप से प्रभावित करते हैं। निम्न अक्षांशो में स्थित परिवेष्ठित समुद्रों (Enclosed Sea) का तापमान खुले समुद्रों (Open Sea) की अपेक्षा अधिक होता है, जबकि उच्च अक्षाशों में स्थित परिवेष्ठित समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की अपेक्षा कम होता है।
तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण
तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण इस प्रकार है-
ऊर्ध्वाधर वितरण
- महासागरीय जल का धरातल अधिकतम सूर्यातप (Isolation) प्राप्त करता है। इसकी किरणें जैसे-जैसे जल के अंदर प्रवेश करती हैं, प्रकीर्णन (Scattering) तथा परावर्तन (Reflection) के कारण उनकी शक्ति घटती जाती है। अतः गहराई के बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है।
- महासागरीय जल की तापीय-गहराई का पार्श्वचित्र (Temperature-depth Profile) यह दिखाता है, कि बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान कैसे घटता है तथा यह महासागर के सतही जल एवं गहरी परतों (Deeper Layer) के मध्य सीमा क्षेत्र को भी दर्शाता है।
- यह सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक जाती है। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, वह ताप प्रवणता (Thermocline) कहलाती है।
- जल के कुल आयतन का लगभग 90% गहरे महासागर मे ताप प्रवणता के कारण नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0° सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
- मध्य एवं निम्न अक्षांशों में महासागरों के तापमान की संरचना को सतह से तली की ओर तीन परतों वाली प्रणाली के रूप में समझा जा सकता है-
- पहली परत (First layer) यह गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है, जो लगभग 500 मी मोटी होती है और इसका तापमान परत 20°C से 25°C के मध्य होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, जबकि मध्य अक्षांशो में यह केवल ग्रीष्म ऋतु में विकसित होती है।
- दूसरी परत (Second layer) इसे ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत कहा जाता है, यह पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसमें गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है। यहाँ थर्मोक्लाइन की मोटाई 500 से 1000 मीटर तक होती है।
- तीसरी परत (Third layer) यह परत बहुत अधिक ठंडी होती है तथा यह गंभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है।आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में, सतही जल का तापमान 0°C के निकट होता है और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहाँ ठंडे पानी की केवल एक ही परत पाई जाती है, जो सतह से गंभीर महासागरीय तली (Deep Ocean Floor) तक विस्तृत होती है।
क्षैतिज वितरण
- महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान (Average Temperature) लगभग 27°C होता है और यह विषुवत् वृत्त से ध्रुव की क्रमिक ढंग से कम होता है।
- अक्षांशों के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर सामान्यत: प्रति अक्षांश 0.5°C होती है। औसत तापमान 20°C अक्षांश पर लगभग 22°C, 40° अक्षांश पर 14°C तथा ध्रुवों के निकट 0°C पाया जाता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) के महासागरों का तापमान दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) की अपेक्षा अधिक होता है। उच्चतम तापमान विषुवत् वृत्त पर नहीं, बल्कि इससे कुछ उत्तर की ओर दर्ज किया जाता है। उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध का औसत वार्षिक तापमान क्रमशः 19°C तथा 16°C के आस-पास पाया जाता है। यह भिन्नता उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल एवं जल के असमान वितरण के कारण होती है।
- इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि महासागरों का उच्चतम तापमान सदैव उनकी ऊपरी सतहों पर होता है, क्योंकि वे सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं और यह ऊष्मा महासागरो के निचले भागों में संवहन की प्रक्रिया से पारेषित होती है।
- इसके परिणामस्वरूप गहराई के साथ-साथ तापमान में कमी आने लगती है, लेकिन तापमान के घटने की यह दर सभी स्थानों पर समान नहीं होती है।
- अतः महासागरीय सतह से 200 मीटर की गहराई तक तापमान बहुत तीव्र गति से गिरता है तथा उसके बाद तापमान के घटने की दर कम होती जाती है।
ताप प्रवणता (Thermocline) |
महासागरीय लवणता (Oceanic Salinity)
- सागरीय जल के भार एवं उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को सागरीय लवणता (Oceanic Salinity) कहते हैं।
- महासागरों का जल या वर्षा का जल सभी जलों में खनिज लवण घुले हुए होते हैं, जिसके कारण जल में लवणता का गुण पाया जाता है। लवणता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को निर्धारित करने में किया जाता है।
- इसका परिकलन 1000 ग्राम (1 किलोग्राम) समुद्री जल में घुले नमक (ग्राम) की मात्रा के द्वारा किया जाता है। इसे प्राय: प्रति 1000 भाग (PPT-Part Per Thousand) के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- समुद्री जल की औसत लवणता लगभग 35% पाई जाती है, जिसका अर्थ यह होता है कि एक किलोग्राम जल में 35 ग्राम लवण घोल के रूप में होता है। वहीं 24.7% की लवणता को खारे जल को सीमांकित करने की उच्च सीमा माना गया है।
- समुद्री जल की लवणता का कारण इसमें उपलब्ध तत्त्वों क्लोराइड तथा सल्फेट हैं, जिनका विवरण सारणी में दिया गया है।
महासागरीय लवण की मात्रा | ||
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महासागरीय लवण | लवणता (PPT में) | मात्रा (% में) |
सोडियम क्लोराइड (NaCl) | 27.213 | 77.8 |
मैंग्नीशियम क्लोराइड (MgCl) | 3.807 | 10.9 |
मैंग्नीशियम सल्फेट (MgSO₄) | 1.658 | 4.7 |
कैल्शियम सल्फेट (CaSO₄) | 1.260 | 3.6 |
पोटैशियम सल्फेट (KSO₄) | 0.863 | 2.5 |
कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) | 0.123 | 0.3 |
मैंग्नीशियम ब्रोमाइड (MgBr) | 0.076 | 0.2 |
योग | 35 | 100 |
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरीय जल की लवणता को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण इस प्रकार है-
- महासागरों की सतह के जल की लवणता मुख्यत: वाष्पीकरण (Evaporation) एवं वर्षण (Precipitation) पर निर्भर करती है।
- तटीय क्षेत्रों में सतह के जल की लवणता नदियों के द्वारा लाए गए ताजे जल के द्वारा तथा ध्रुवीय क्क्षेत्रों में बर्फ के जमने एवं पिघलने की क्रिया से अधिक प्रभावित होती है। पवन भी जल को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित करके लवणता को प्रभावित करती है।
- महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents) भी लवणता में भिन्नता उत्पन्न करने में सहयोग करती हैं। जल की लवणता, तापमान एवं घनत्व परस्पर सम्बंधित होते हैं। इसलिए तापमान अथवा घनत्व में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किसी क्षेत्र की लवणता को प्रभावित करता है। लवणता की मात्रा समुद्री जल की बनावट तथा संचरण, मछली तथा अन्य जीवो और प्लवकों के वितरण को भी अधिक मात्रा में प्रभावित करती है।
लवणता का वितरण
लवणता के वितरण को क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर वितरण के रूप में देखा जा सकता है-
लवणता का क्षैतिज वितरण
- सामान्यत: खुले महासागर की लवणता 33% से 37% के मध्य होती है। चारों ओर स्थल से घिरे लाल सागर में यह 41% आर्कटिक एवं ज्वारनदमुख (Estuary) में मौसम के अनुसार लवणता 0 से 35% के मध्य पाई जाती है।
- गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में, जहाँ वाष्पीकरण उच्च होता है, कभी-कभी वहाँ की लवणता 7% तक पहुँच जाती है। लवणता के क्षैतिज वितरण को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते हैं-
- प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) इसकी लवणता में भिन्नता मुख्यतः इसके आकार एवं अधिक विस्तार के कारण पाई जाती है उत्तरी गोलार्द्ध के पश्चिमी भागों में लवणता 35% से कम होकर 31% होती है, क्योंकि आर्कटिक क्षेत्र का पिघला हुआ जल वहाँ पहुँचता है। इसी प्रकार 15° से 20° दक्षिण के पश्चात् यह 33% तक हो जाती है।
- अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) इसकी औसत लवणता 36% के आस-पास पाई जाती है। उच्चतम लवणता 15° से 20° अक्षांश के मध्य दर्ज की गई है। अधिकतम लवणता 20°N एव 30°N तथा 20°w से 60°w के मध्य पाई जाती है। यह उत्तर की ओर क्रमिक रूप से घटती जाती है।
- उत्तरी सागर (North Sea) इसके उच्च अक्षांश में स्थित होने के बावजूद उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के द्वारा लाए गए अधिक लवणीय जल में अधिक लवणता पाई जाती है।
- बाल्टिक समुद्र (Baltic Sea) इसकी लवणता कम होती है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में नदियों का पानी प्रवेश करता है।
- भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) इसकी लवणता उच्च वाष्पीकरण होने के कारण अधिक पाई जाती है। वहीं काले सागर की लवणता नदियों के द्वारा अधिक मात्रा में लाए जाने वाले ताजे जल के कारण कम होती है।
- हिंद महासागर (Indian Ocean) इसकी औसत लवणता 35% है। बंगाल की खाड़ी में गंगा नदी के जल के मिलने से लवणता की प्रवृत्ति कम पाई जाती है। इसके विपरीत अरब सागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण एवं ताजे जल की कम प्राप्ति के कारण अधिक पाई जाती है।
लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण
- महासागरीय जल की लवणता में गहराई के साथ परिवर्तन आता है, लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। सतह की लवणता जल के बर्फ या वाष्प के रूप में परिवर्तित होने के कारण बढ़ जाती है या ताजे जल के मिल जाने से घटती है, जैसा कि नदियों के द्वारा होता है।
- जल की गहराई में लवणता लगभग नियत होती है, क्योंकि वहाँ किसी प्रकार से पानी का ह्रांस या नमक की मात्रा में वृद्धि नहीं होती है।
- महासागरों के सतही क्षेत्रों एवं गहरे क्षेत्रों के मध्य लवणता में अंतर स्पष्ट होता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व घनत्व वाले जल के ऊपर स्थित होता है।
- लवणता साधारणतः गहराई के साथ बढ़ती है तथा एक स्पष्ट क्षेत्र, जिसे हैलोक्लाइन (Halocline) कहा जाता है, इसमें लवणता तीव्रता के साथ बढ़ती है।
- लवणता समुद्री जल के घनत्व (Density of Water) को प्रभावित करती है तथा महासागरीय जल के स्तरीकरण (Stratification) को प्रभावित करती है। यदि अन्य कारक स्थिर रहें, तो समुद्री जल की बढ़ती लवणता उसके घनत्व को बढ़ाती है।
- उच्च लवणता वाला समुद्री जल प्रायः कम लवणता वाले जल के नीचे बैठ जाता है। इससे लवणता का स्तरीकरण हो जाता है।
- तुर्किये की वॉन झील (330%)
- ग्रेट साल्ट झील (220%)
- मृत सागर (238%)
विश्व के प्रमुख महासागर
विश्व के प्रमुख महासागरों का विवरण निम्नलिखित है-
प्रशांत महासागर (Pacific Ocean)
- प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) विश्व का सबसे बड़ा तथा गहरा महासागर है। अपने संलग्न समुद्रों के साथ यह पृथ्वी के धरातल के लगभग एक-तिहाई भाग पर विस्तृत है।
- इसकी आकृति लगभग त्रिभुजाकार है, जिसका शीर्ष उत्तर में बेरिंग के मुहाने पर है। इसके पश्चिम में एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप और द्वीप समूह की एक लंबी श्रृंखला है।
- इसके पूर्व में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप तथा दक्षिण में अंटार्कटिका महाद्वीप है। इसके बेसिन के अधिकांश भागों की गहराई लगभग 7300 मीटर तक है। इसके चारों ओर की सीमाओं पर अनेक तटीय सागर और खाड़ियाँ हैं।
- इस महासागर में 20,000 से भी अधिक द्वीप हैं, जिनका क्षेत्रफल कम है। महाद्वीपों के निकट स्थित महाद्वीपीय द्वीप हैं तथा महासागरों के मध्य में स्थत द्वीप अधिकांशत: प्रवाल (Coral) तथा ज्वालामुखी प्रक्रियाओं (Volcanic Activities) से निर्मित उपलब्ध हैं।
प्रशांत महासागर का नितल/अधस्तल
- प्रशांत महासागर का नितल प्रत्येक स्थान पर लगभग एक समान है, जिस पर चौड़े-चौड़े उभार और अवतल उपलब्ध हैं। इसका उत्तरी भाग सबसे अधिक गहरा है, जिसकी औसत गहराई 5000 से 6000 मीटर तक है।
- अल्युशियन, क्यूराइल, जापान तथा बेनिन इस मार्ग के प्रमुख गर्त हैं, जिनकी गहराई 7000 से 10,000 मीटर तक है। इसके मध्य भाग में असंख्य समुद्री पर्वत, गाईऑट तथा समानांतर और वृत्ताकार द्वीप श्रृंखलाएं हैं।
- इसके दक्षिण-पश्चिमी भाग में विभिन्न प्रकार के द्वीप, तटीय सागर, महाद्वीपीय मग्नतट तथा जलमग्न गर्त हैं। मिंडनाओ गर्त की गहराई 10,000 मीटर से भी अधिक है।
- दक्षिणी-पूर्वी प्रशांत में चौड़े जलमग्न कटक तथा पठार हैं। तटीय सागरों की अनुपस्थिति इस भाग की विशेषता है तथा अटाकामा तथा टोंगा में प्रमुख गर्त विद्यमान है, जिसकी गहराई क्रमशः 8000 मीटर और 9000 मीटर है।
अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean)
- अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) आकार में प्रशांत महासागर के लगभग आधा है। यह सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग छठे भाग में विस्तृत है। आकृति में यह अंग्रेजी के 'S' अक्षर से मिलता-जुलता है।
- इसके पश्चिम में अमेरिका तथा पूर्व में यूरोप और अफ्रीका स्थित हैं। दक्षिण में यह खुला है और अंटार्कटिका महाद्वीप तक विस्तृत है। उत्तर में यह ग्रीनलैंड, आइसलैंड तथा अन्य छोटे द्वीपों से घिरा हुआ लगता है।
अटलांटिक महासागर का नितल/अधस्तल
- अटलांटिक महासागर के चारों ओर विभिन्न चौड़ाइयों वाला महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelves) स्थित है। अफ्रीका के तट के समीप इसकी चौड़ाई 80 से 160 किमी तक है, किंतु उत्तर-पूर्वी अमेरिका तथा उत्तर-पश्चिमी यूरोप के तटों के समीप इसकी चौड़ाई 250 से 400 किमी तक है।
- अटलांटिक महासागर के दोनों किनारों पर विशेषकर उत्तरी भाग में अनेक तटीय सागर हैं। इनमें से अधिकांश तटीय महासागर महाद्वीपीय मग्नतटो पर स्थित हैं। हड़सन की खाड़ी, बाल्टिक सागर तथा उत्तरी सागर मग्नतटों पर स्थित हैं।
- इस महासागर का मुख्य लक्षण मध्य अटलांटिक कटक (Mid-Atlantic Ridge) है। यह भी 'S' की आकृति बनाते हुए उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है। यह कटक लगभग 14,400 किमी लम्बा तथा 4000 मीटर ऊँचा है। यह खिंचाव तथा भ्रंशन से बना है। इसका उभार सीढ़ीनुमा है और इसका शीर्ष विषम है।
- यह एक जलमग्न कटक है, परंतु इनकी अनेक चोटियाँ महासागरीय जलस्तर के ऊपर निकली हुई हैं। ये चोटियाँ ही मध्य अटलांटिक के द्वीप हैं। अर्जार्स का पाइको द्वीप तथा केप वर्ड द्वीप (Cape Verde) इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
- इसके अतिरिक्त बरमुडा सदृश कुछ प्रवाल द्वीप तथा असैसन, ट्रिस्टा दी कान्हा, सेंट हेलेना और गुआ सदृश अनेक ज्वालामुखी द्वीप हैं।
- अटलांटिक महासागर में उत्तरी केमन तथा पोर्टों-रिको नामक दो द्रोणियाँ तथा रोमांश (Romanche Deep) तथा दक्षिणी सैंडविच (South Sandwich) नामक दो गर्त हैं।
हिन्द महासागर (Indian Ocean)
- यह महासागर अटलांटिक महासागर से छोटा है। यह उत्तर के एशिया महाद्वीप से पूर्णत: अवरोधित है। इसे अर्द्ध महासागर माना जाता है।
- इसका उत्तरी किनारा बहुत कटा-फटा है। यह पश्चिम में अफ्रीका द्वारा तथा पूर्व में इंडोनेशिया की द्वीप श्रृंखलाओं और ऑस्ट्रेलिया द्वारा सीमित है।
- दक्षिण में यह अंटार्कटिका महाद्वीप तक विस्तृत है। यहाँ यह एक ओर प्रशांत तथा दूसरी ओर अटलांटिक महासागर से घिरा हुआ है।
- इसकी औसत गहराई लगभग 4000 मीटर है, जो अन्य महासागरों की गहराई की तुलना में कम है। वहीं इसके तटीय सागरों की संख्या कम है।
- हिन्द महासागर (Indian Ocean) का नितल भी अन्य महासागरों की तुलना में कम असमान है। रेखिक गर्त तो न के बराबर है। सुंडा गर्त (Sunda Trench) एक मात्र अपवाद है, जो जावा द्वीप के दक्षिण में उसके समांतर स्थित है।