1. परिचय:
चोल साम्राज्य, भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। इसकी स्थापना चोल वंश के राजा करिकाल थोंगका द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में की गई थी। चोल साम्राज्य ने भारतीय साम्राज्यों के बीच व्यापक व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। चोल राज्य मध्य काल के आरंभ में चोलमंडलम (कोरोमंडल) कहलाता था।
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2. शासन प्रणाली:
चोल साम्राज्य की शासन प्रणाली कारगिल (किंग्डम) आधारित थी, जिसमें राजा सर्वोच्च था। इसकी विशेषता यह थी कि यह सम्राट और उनके नेताओं ने स्थानीय ग्रामीणों को बहुत अधिक स्वतंत्रता दी और उन्हें शासन में शामिल किया। संगम साहित्य के माध्यम से चोलों के राजनीतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। उनकी राजनीतिक सत्ता का केंद्र उरईयूर था, जो सूती वस्त्रों के व्यापार हेतु प्रसिद्ध था। कारिकाल ने पुहार नगर की स्थापना की और कावेरी नदी के किनारे 160 किलोमीटर लंबा बांध बनवाया था। पुहार की पहचान कावेरीपट्टनम से की गई है जो कि चोलो की राजधानी हुआ करती थी। चोल शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था उसकी स्थानीय स्वशासन प्रणाली थी। चोल अभिलेखों में तीन प्रकार के ग्राम सभाओं का उल्लेख मिलता है- उर, सभा/महासभा और नगरम् ।
'उर' एक सामान्य प्रकार की ग्राम थी, इसकी कार्यकारिणी सभा को 'आलुंगणम' कहा जाता था।
'सभा/महासभा' ग्राम के वरिष्ठ ब्राह्मणों (जिन्हें अग्रहर कहा जाता था) की सभा थी।
'नगरम्' मुख्यतः व्यवसायियों की सभा थी।
3. सांस्कृतिक प्रभाव:
चोल साम्राज्य ने भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत अधिक प्रभाव डाला। कला, साहित्य, और विज्ञान में चोल साम्राज्य ने विकास की मिसालें प्रस्तुत कीं। चोलों के वैभव का मुख्य स्रोत सूती वस्त्रों का व्यापार था, साथ ही उनके पास कुशल नौसेना भी थी।
4. व्यापार और वाणिज्य:
चोल साम्राज्य ने व्यापार और वाणिज्य में भी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कीं। इसने दक्षिण भारतीय समुद्रतट के साथ ही विदेशों से व्यापार करने में भी सफलता प्राप्त की। संगम काल में चोलों का उरैयूर नगर सूती वस्त्र एवं कपास के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। उरैयूर नामक स्थान की चर्चा 'पेरिप्लस ऑफ द इरीथ्रीयन सी' नामक पुस्तक में हुई है अतः संभवतः चोलों के समृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत उनका सूती वस्त्र का व्यापार था।
5. अंत:
चोल साम्राज्य का अंत 13वीं सदी में हुआ, लेकिन इसका योगदान भारतीय इतिहास में अद्वितीय रहा। इसने भारतीय सांस्कृतिक और समाज में नए दिशाएँ प्रदान कीं और भूपृष्ठ नृत्य, सिलाम्बम, और कला में अपनी अनूठी पहचान बनाई।
चोल साम्राज्य से संबंधित महत्वपूर्ण घटक:
राजा राज चोल:
राजा राज चोला, जो कि चोला वंश के प्रसिद्ध राजा थे, ने अपने शासन काल में चोलमंडलम को विस्तृत किया और एक शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी। उनकी नीति ने चोला राजवंश को समृद्धि बनाया।
सेना और सामर्थ्य:
चोला वंश की सेना बहुत ही समर्पण और सामर्थ्य से भरी थी। वे दक्षिण भारत में अपने शत्रुओं के प्रति सक्रिय थे और अपने साम्राज्य की सीमाओं को बचाने में कुशल थे।
मध्यकालीन कला:
चोला काल ने मध्यकालीन कला में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। चोला काल में मंदिरों, स्तम्भों, और अन्य भवनों का निर्माण हुआ, जिनमें उनकी विशेष स्थापना और कला का प्रतिक्रिया दर्शाया गया।
सांस्कृति और साहित्य:
चोला वंश ने अपने समय में सांस्कृति और साहित्य को भी प्रोत्साहन दिया। वे तमिल भाषा में भी लिखे गए काव्य और ग्रंथों के लिए प्रसिद्ध हैं। पट्टुपाट्ट की एक कविता में करिकाल के युद्ध और स्वयं को राजा घोषित करने की गाथा कही गई है।
बृहदेश्वर मंदिर:
राजा राज चोल द्वारा बनाया गया बृहदीश्वर मंदिर, जिसे तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर उनकी प्रतिभा और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
चोल साम्राज्य से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी:
प्रश्न 1: चोल साम्राज्य कब स्थापित हुआ था?
उत्तर: चोल साम्राज्य का आरंभ लगभग 9वीं सदी में हुआ था और इसका समापन 13वीं सदी के आस-पास हुआ था।
प्रश्न 2: कौन था चोल साम्राज्य का प्रसिद्ध राजा जो चोलमंडलम को विस्तृत करने में सक्रिय थे?
उत्तर: चोल साम्राज्य के प्रसिद्ध राजा में से एक राजा राज चोला थे, जो चोलमंडलम को विस्तृत करने में सक्रिय रहे और इसे एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाने का कारण बने।
प्रश्न 3: चोल साम्राज्य की सेना की विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: चोल साम्राज्य की सेना बहुत ही समर्पण और सामर्थ्य से भरी थी। इसकी बलशाली नौसेना और तकनीकी ऊर्जा उसे अपने शत्रुओं के प्रति सशक्त बनाती थीं।
प्रश्न 4: चोल साम्राज्य का क्या योगदान था मध्यकालीन कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में?
उत्तर: चोल साम्राज्य ने मध्यकालीन कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया। इसका एक उदाहरण बृहदीश्वर मंदिर है, जो आज भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
प्रश्न 5: चोल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति कैसी थी और वह किस प्रकार के व्यापारिक गतिविधियों में सक्रिय था?
उत्तर: चोल साम्राज्य ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और व्यापार में विकास किया। वह उच्च स्थानीय निर्माण, उद्योग और व्यापार को प्रोत्साहित करते थे।
इस पोस्ट के माध्यम से हमने चोल साम्राज्य के महत्वपूर्ण पहलुओं की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत की है, जो भारतीय इतिहास के इस समय को समृद्धि और सृजनात्मकता से भरा हुआ बनाता है।